Monday, June 24, 2019

पाक सेना के गढ़ में बम विस्फोट, बच गया फिर से आतंकी मसूद अजहर

पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद के करीब रावलपिंडी शहर के उस सैन्य अस्पताल में रविवार शाम को एक जबरदस्त बम विस्फोट हुआ, जिसमें प्रतिबंधित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का चीफ मसूद अजहर भी भर्ती था। हालांकि यह जानकारी नहीं मिल सकी है कि विस्फोट में अजहर को भी कोई नुकसान है या नहीं।
विस्फोट में घायलों और मृतकों की पुष्ट संख्या का अधिकृत खुलासा नहीं हो सका है, लेकिन अपुष्ट सूत्रों ने कम से कम 16 लोगों को गंभीर हालत में आईसीयू में भर्ती कराए जाने की बात कही है। विस्फोट के कारणों का भी पता नहीं चल सका है।
Image: reuters

हालांकि कुछ लोगों ने विस्फोट की वजह गैस पाइपलाइन में हुई लीकेज बताई है, लेकिन पाकिस्तान सरकार या सेना की तरफ से देर रात तक कोई अधिकृत बयान जारी नहीं किया गया था। यह सैन्य अस्पताल पाकिस्तानी सेना के मुख्यालय के बेहद करीब सख्त सुरक्षा वाले क्षेत्र में मौजूद।

सेना व सरकार की तरफ से मीडिया को इस विस्फोट की कवरेज नहीं करने के सख्त निर्देश जारी किए गए हैं। इसके बावजूद विस्फोट से जुड़े कई वीडियो विभिन्न लोगों ने सोशल मीडिया पर शेयर किए हैं। इन वीडियो में अस्पताल की बिल्डिंग से बड़ी मात्रा में विस्फोट के बाद का धुआं निकलने और चारों तरफ बिखरा मलबा साफ दिखाई दे रहा है।
ANI

Saturday, May 26, 2018

कांग्रेस की अश्लील कथा भाग 1

वो खौफनाक सत्य, जिसे लोग भूल चुके :-

साल था 1992 । ख्वाजा की नगरी अजमेर में एक ऐसे बलात्कार कांड का खुलासा हुआ जिसने पूरे देश को हिला दिया । फारूक चिश्ती , नफीस चिश्ती और अनवर चिश्ती । तीन युवा ।  तीनों ही यूथ कांग्रेस के लीडर । इनमे से फारूक प्रेसिडेंट की पोस्ट पर । यानी अजमेर का युवा कांग्रेस अध्यक्ष। इन लोगों का परिवार अजमेर की प्रसिद्ध दरगाह के खादिमों (केयरटेकर्स) से जुड़ा । खादिमों तक पहुंच होने के कारण इनके पास राजनैतिक और धार्मिक, दोनों ही तरह की पॉवर।

बताते हैं फारूक चिश्ती ने सबसे पहले सोफ़िया स्कूल की एक लड़की को प्रेम जाल में फंसाया । सोफिया स्कूल उस दौर में न सिर्फ अजमेर या राजस्थान बल्कि पूरे उत्तर भारत का लड़कियों का सार्वधिक प्रतिष्ठित स्कूल गिना जाता था । एक दिन धोखे से फारुख ने उस नाबालिग लड़की को फार्म हाउस पर बुला बलात्कार या और लड़की की अश्लील फोटो खींच ली । बाद में इस फोटो के जरिये ब्लैकमेल करके और लड़कियां बुलाई गईं । फारुख और उसके दोस्तों ने उनका जम के यौन शोषण किया और सभी की नग्न फोटोज खींच ली। डर कर लड़कियां अपनी दोस्तों को भी फार्म हाउस ले जाने लगी । उनकी दोस्त अपनी और दोस्तों को । एक के बाद दूसरी, दूसरी के बाद तीसरी। ऐसे करके एक ही स्कूल की करीब सौ से ज्यादा लड़कियों के साथ ब्लैकमेल व घृणित बलात्कार हुआ। याद दिला दूँ की लड़कियां सब नाबालिग । 10वी , 12 वी में पढने वाली मासूम किशोरियां । आश्चर्य की बात यह कि रेप की गई लड़कियों में आईएएस , आईपीएस की बेटियां भी थीं। ये सब किया गया अश्लील फोटो खींच कर। पहले एक लड़की, फिर दूसरी और ऐसे करके सौ से ऊपर लड़कियों के साथ हुई ये हरकत। ये लड़कियां किसी गरीब या मिडिल क्लास बेबस घरों से नहीं, बल्कि अजमेर के जाने-माने घरों से आने वाली बच्चियां थीं ।कहते हैं कि बाकायदा लक्जरी गाड़ियां इन लड़कियों को लेने उनके घर आती थीं और घरों पर छोड़ कर भी जातीं ।

उस जमाने मे आज की तरह डिजिटल कैमरे नही थे । रील वाले थे । रील धुलने जिस स्टूडियो में गयी वह भी चिश्ती के दोस्त और समुदाय वाले का ही था । उसने भी एक्स्ट्रा कॉपी निकाल लड़कियों का शोषण किया । ये भी कहा जाता है कि स्कूल की इन लड़कियों के साथ रेप करने में नेता , सरकारी अधिकारी भी शामिल थे।आगे चलकर ब्लैकमैलिंग में और भी लोग जुड़ते गये ।आखिरी में कुल 18 ब्लैकमेलर्स हो गये। बलात्कार करने वाले इनसे तीन गुने। इन लोगों में लैब के मालिक के साथ-साथ नेगटिव से फोटोज डेवेलप करने वाला टेकनिशियन भी था । यह ब्लैकमेलर्स स्वयं तो बलात्कार करते ही , अपने नजदीकी अन्य लोगों को भी "ओब्लाइज" करते ।

जब इसका खुलासा हुआ तो हंगामा हो गया । इसे भारत का अब तक का सबसे बडा सेक्स स्कैंडल माना गया । इस केस ने बड़ी-बड़ी कोंट्रोवर्सीज की आग को हवा दी । जो भी लड़ने के लिए आगे आता, उसे धमका कर बैठा दिया जाता । अधिकारियों ने , कम्युनल टेंशन न हो जाये,  इसका हवाला दे कर आरोपियों को बचाया । खादिम चिश्ती परिवार का खौफ इतना था जिन लड़कियों की फोटोज खींची गई थीं, उनमें से कईयों ने सुसाइड कर लिया । एक समय अंतराल में 6-7 लड़कियां  ने आत्महत्या की । न सोसाइटी आगे आ रही थी, न उनके परिवार वाले। उस समय की 'मोमबत्ती गैंग' भी लड़कियों की बजाय आरोपियों को सपोर्ट कर रही थी । डिप्रेस्ड होकर इन लड़कियों ने आत्महत्या जैसा कदम उठाया । एक ही स्कूल की लड़कियों का एक साथ सुसाइड करना अजीब सा था। ये बात आगे चलकर केस को एक्सपोज करने में मददगार रही ।

पुलिस के कुछ अधिकारियों और इक्का दुक्का महिला संगठनों की कोशिशों के बावजूद लड़कियों के परिवार आगे नहीं आ रहे थे। इस गैंग में शामिल लोगों के कांग्रेसी नेताओं और खूंखार अपराधियों से कनेक्शन्स की वजह से लोगों ने मुंह नहीं खोला। बाद में फोटो और वीडियोज के जरिए तीस लड़कियों की शक्लें पहचानी गईं। इनसे जाकर बात की गई। केस फाइल करने को कहा गया।लेकिन सोसाइटी में बदनामी के नाम से बहुत परिवारों ने मना कर दिया। बारह लड़कियां ही केस फाइल करने को तैयार हुई। बाद में धमकियां  मिलने से  इनमे से भी दस लड़कियां पीछे हट गई। बाकी बची दो लड़कियों ने ही केस आगे बढ़ाया। इन लड़कियों ने सोलह आदमियों को पहचाना। ग्यारह लोगों को पुलिस ने अरेस्ट किया ।

जिला कोर्ट ने आठ लोगों को उम्र कैद की सजा सुनाई। इसी बीच फारूक चिशती ने अपना मेंटल बैलेंस खोने का सर्टिफिकेट पेश कर दिया । जिसकी वजह से उसकी ट्रायल पेंडिंग हो गई।बाद में डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने चार आरोपियों की सजा कम करते हुए उन्हें दस साल की जेल भेज दिया। कहा गया कि दस साल जेल की सजा ही काफी है ।

राजस्थान हाइकोर्ट की न्यायाधीश मोहम्मद रफीक की खंडपीठ ने सर्टिफिकेट के आधार पर फारुख चिश्ती को बरी कर दिया। कम होने बाद राजस्थान गवर्मेंट नें सुप्रीम कोर्ट में इस दस साल की सजा के खिलाफ अपील लगा दी। जजमेंट को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया ।सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान गवर्नमेंट और आरोपियों दोनों की फाइल्स को ख़ारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एन. संतोष हेगड़े और जस्टिस बी. पी. सिंह की बेंच को लगा कि इतने बलात्कारों के लिए दस साल की सजा तो काफी है ! बेहद आस्चार्यजनक!!

एक और आरोपी सलीम नफीस चिश्ती को उन्नीस साल बाद 2012 में पकड़ा गया। वो भी बेल पर छुट कर आ गया। बेल पर आने के बाद से उसके बारे में कोई खबर नहीं है।उसके बाद से इस केस के बारे में कोई  खबर नहीं आयी कि क्या हुआ उन रेपिस्ट्स का? सलीम कहां है? फारूक की दिमागी हालत ठीक हुई कि नहीं?

वो दौर सोशल मीडिया का नहीं पेड मीडिया का था। फिर पच्चीस तीस साल पुरानी ख़बरें कौन याद रखता है?
ये वो ख़बरें थी जिन्हें कांग्रेसी हुक्मरानों ने नोट और तुष्टीकरण की राजनीति के लिए दबा दिया था। अजमेर बलात्कार काण्ड के अपराधी चिश्तियों में से कोई भी अब जेल में नहीं है। बाकी आप जोड़ते रह सकते हैं, एक बलात्कार की सजा सात साल तो सौ बलात्कार की सजा कितनी होगी?

मैं पूछना चाहता हूं, क्या ख्वाजा की मजार पर मन्नते मांगने वाले ख्वाजा से ये सवाल पूछेंगे कि जब सैकड़ों लड़कियों की अस्मत उनके ही वंशजों द्वारा लूटी जा रही थी तब वे कहाँ थे? किसकी मन्नत पूरी कर रहे थे?

Thursday, February 9, 2017

Muslims and UP Elections: Do They Have a Real Choice?



By Arshad Alam, New Age Islam
09 February 2017
It will be repeating the obvious if one says that Muslims in the upcoming Uttar Pradesh elections will not vote for the Bhartiya Janta Party (BJP). It cannot be denied that the BJP has upset Muslims in the past and even continues to so in the present. While for a while it looked like it will bypass targeting of Muslims through vitriolic speeches and focus on its agenda of development for all, it is now becoming increasingly clear that some of its members are not convinced of this strategy. We have had calls for abolition of triple Talaq by senior members of the party and growing chorus around the demand for building the grand temple at Ayodhya. While the issue of triple Talaq needs to be debated dispassionately and many Muslims have themselves come forward to condemn the practice, making it an election issue sends a very different signal. It is not surprising therefore that Muslims will be wary of voting for the BJP.
It needs to be said that in terms of a promise this has been a wasted opportunity for the BJP. Muslims have a historical baggage viz a viz the BJP and they have genuine complaints. However, in the present scenario when the BJP is trying to replace the Congress as the de-facto national party, the effort should have been to allay the fears of the minorities which has accrued through decades. The UP elections, having the most Muslim electorates, were a golden opportunity for the BJP to make a start in that direction. It could have talked about its governance model which it claims to be non-discriminatory and it could have opened various back channel dialogues with the Muslim community. Even in terms of its election manifesto, there is hardly any thought which has gone into addressing this problem. In fact, it looks like the Muslim outreach is hardly an issue for the current BJP, particularly in Uttar Pradesh.
But this is not to say Muslims will have any real choice when it comes to voting for other political formations who are currently clamouring for the Muslim vote. Let’s us start with the grand secular alliance of the SP and Congress. They are the favourites for the Muslim vote. But their record in terms of Muslim empowerment and security is not as good as it is made out to be. For one, Muslims have remained the most deprived category in Uttar Pradesh. The level of education and employment is appalling.
Not just that: A comparative analysis will show that within Indian Muslims, they are perhaps the most deprived in terms of social, educational and economic indicators. Let us not forget that for the better part of their political history, Muslims in Uttar Pradesh have chosen the Congress and SP to lead them. And then again, no one can perhaps forget the traumatic riots in Muzaffarnagar in which scores of Muslims lost their lives and became homeless. The ruling dispensation, the SP just cannot say that the riots were the handiwork of the BJP. After all, the SP was in power and it was within their capacity not to let the riots happen. In trying to play both ways, the SP ended up with playing with the lives of hundreds of Muslims. To argue that it was not in control is nothing short of abdicating responsibility of law and order which every state government is duty bound to uphold.
The Congress, after being out of power for so long, is also in the race for Muslims votes. But again, its history is chequered when it comes to representing Muslims. In Uttar Pradesh, series of riots took place when they were in power. Meerut and Moradabad are obvious examples which people have conveniently forgotten. But these were riots in which severe police brutality was wrecked upon ordinary Muslims and they have not got justice till now. Not only this but the sinister campaign that all riots happens because of BJP only means that Congress which perhaps has a bloodier record of organizing riots is today claiming to be the champion of secularism. Its role in the Babri Masjid demolition was dubious to say the least: it did not do anything to prevent it despite being the ruling party at the Centre.
The Bahujan Samaj Party (BSP) is another serious contender of the Muslim vote. Despite its past alliance with the BJP, Muslims are willing to give the party another chance in some places in UP. But a critical scrutiny of her own records belies any hopes that she has the best interest of Muslims in mind. It was during BSP’s regime that a series of terror charges were brought upon Muslim youths, most of whom were eventually found to be false by various courts. After destroying the lives of these ordinary Muslims, today she is positioning herself as the champion of Muslims. It must be said to the BSP’s credit that during her tenure there were hardly any riots against Muslims but then it also must be underlined that that was hardly any new initiative to improve the lives of ordinary Muslims.
In all probability, Muslims in UP will end up voting for the alliance or at places for the BSP. But then this is not going to be a positive vote. Essentially it will be a vote to defeat the perceived enemy: the BJP. The Muslims will gloat in that momentary happiness for a while and then go back to their business as usual till another Muzaffarnagar happens. In this fight between the secular and communal votes, it is the Muslims who are the biggest losers. A win for the alliance is not a win for secularism. A win for a non BJP party does not mean that Muslims will see any positive development in their well-being. Essentially they have become captive voters for these so called secular parties. Given the history of all these parties, Muslims in UP today have no real choice. Until they consciously dissociate themselves from this secular communal binary, they will not become masters of their own lives.
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Arshad Alam is a columnist with NewAgeIslam.com
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Wednesday, January 4, 2017

आखिर क्यों खान्ग्रेस/वामी/सेखुलर राज्यों में ही मुस्लिम प्रथाए शुरू होती है ?

बंगलुरु में जो मुस्लिमो की भीड़ ने नए साल पर लडकियों के साथ खूब छेड़खानी की असल में वो इस्लाम में जायज है ..इसे "तहर्रुश गेमिया" कहते है ... और ये तहर्रुश गेमिया पिछले साल मुसलमानों ने जर्मनी में खूब किया था ...
क्या है 'तहर्रुश गेमिया'? 'तहर्रुश गेमिया' अरबी शब्द है जिसका मतलब होता है 'संयुक्त रुप से छेड़छाड़'। इस खेल में युवा सार्वजनिक स्थान पर अकेली लड़की को निशाना बनाते हैं। झुंड में ये लड़के या तो लड़की के साथ शारीरिक रुप से छेड़छाड़ करते हैं या फिर उसका बलात्कार करते हैं।

सबसे पहले लड़के एक घेरा बनाकर अकेली लड़की को घेर लेते हैं फिर अंदर वाले घेरे में मौजूद लड़के लड़की का यौन शोषण करते हैं जबकि बाहरी घेरे वाले लड़के भीड़ को दूर रखते हैं। 'तहर्रुश गेमिया',की रिपोर्टर भी हुई थी शिकार 2011 में मिस्र में पहली बार ये घिनौना खेल देखा गया था। साउथ अफ़्रीका की रिपोर्टर लारा लोगन काहिरा के तहरीर स्क्वैयर से रिपोर्टिंग कर रही थी तभी लड़को के एक झुंड ने उन्हें घेर लिया और उनसे छेड़छाड़ की। लारा ने इस घटना के काफी बाद बताया हुए कहा था , "अचानक इसके पहले कि मुझे कुछ समझ में आए कुछ लोगों ने मुझे घेर लिया और मेरे शरीर पर जगह जगह छूने लगे। वो एक-दो नही की सारे थे। ये ऐसा सिलसिला था जो लगातार चल रहा था। 'तहर्रुश गेमिया' चला अरब से यूरोप की ओर ये अमानवीय केल अब यूरोप में जड़े जमाने लगा है। नये साल पर जर्मनी में कई जगह ऐसी घटनाओं के होनी की ख़बर मिली है। बताया जाता है कि ये लोग जर्मनी के नहीं किसी अन्य देश के थे। पुलिस को अंदेशा है कि ये 'तहर्रुश गेमिया' ही था जो अब यहां भी शुरु होगया है। ये एक धटना कोलोन की है जहां भीड़ पर पहले पटाखे छोड़े गये फिर नशे में धुत्त अरब या उत्तरी अफ़्रीकी लोगों ने महिलाओं के साथ बदतमीज़ी की। आश्चर्य की हात ये है कि पुलिस मूकदर्शक बनकर तमाशा देखती रही। उसका कहना है कि भीड़ को संभालने के लिये पुलिस बल नाकाफी था।

चूँकि बगलौर की घटना मुस्लिमो ने अंजाम दिया इसलिए देश के सेकुलर सूअर खामोश है  बाकी आप खुद दोनों तस्वीरों को देख के बता सकते है 


Sunday, January 1, 2017

छत्रपति बिना बलिदान के नहीं बनते

"युद्ध की तैयारी करो बाजी...शायद यह हमारा अंतिम युद्ध है...हमारी सेना उनके मुकाबले बहुत कम है...उनके मुकाबले के हथियार हमारे पास नहीं है..लगता है हम विशालगढ तक नहीं पहूंच पायेंगे।"...शिवाजी ने बिजापूर से लड़ने आयी विशाल सेना को देखते हुये कहा। "महाराज आप जाइये ! जब तक मैं खड़ा हूँ मैं इन्हें यह गोलखिंडी दर्रा(घाटी) पार नहीं करने दूँगा। स्वराज को आपकी जरूरत है", बाजीप्रभू देशपांडे ने शिवाजी के पैर छुते हुये कहा।
शिवाजी ने बाजी प्रभु को गले लगाया और कहा "जैसे ही मैं उपर पहूंच कर तोप दाग दूँ तो समझ जाना मैं सुरक्षित उपर पहूंच गया हूँ। तुम तुरंत वापस आ जाना।
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शिवाजी के लगातार हमलों से भड़के बिजापूर के बादशाह ने सिद्दी जौहर, अफजल खां की मौत का बदला लेने के लिये धधक रहे उसके बेटे फाजल खां के नेतृत्व में सेना भेजी।शिवाजी ने चकमा दे कर पन्हाला किले से 600 सैनिकों के साथ विशालगढ़ की ओर निकल गये।उन्होंने 300 सैनिकों को अपने साथ लिया और 300 बाजीप्रभू को सौंप दिये। सिद्दी जौहर ने अपने दामाद सिद्दी मसूद और फाजल खां को 4000 सैनिकों के साथ शिवाजी को पकड़ने उनके पिछे भेज दिया।
शिवाजी बाजीप्रभू को गोलखिंडी दर्रे पर छोड़ विशालगढ की ओर बढ गये। विपक्षी सेना की पहली टुकड़ी दर्रे के नीचे आ खड़ी हुई। मराठाओं की तादात बहुत कम थी। लेकिन ऐसे पहाड़ी युद्ध करने में वह हमेशा से ही पारंगत थे। हथियार कम थे इसलिये बाजीप्रभू ने बड़ी मात्रा में पत्थर इकट्ठे किये। और पुरी ताकत से नीचे से उपर आती सिद्दी जौहर की सेना पर भीषण हमला किया। बिजापूर की सेना हैरान परेशान थी। उन्हें इस तरह के युद्ध की कल्पना नहीं थी। इस हमले में उन्हें भयानक क्षति पहूंची। बड़ी संख्या में विरोधी सैनिक मारे गये। सेना पिछे हट गयी। तभी दुसरी टुकड़ी मदत के लिये पहूंच गयी। पत्थर खतम हो गये थे। अब बारी थी सीधे हमले की। इसमें भी मराठाओं ने विरोधीयों को रौंद दिया। पर मराठाओं के भी बड़े से सैनिक मारे गये। लगातार युद्ध से बाजीप्रभू थकने लगे।
वहाँ विशालगढ के रास्ते में भी बीजापूरी सेना तैनात थी। उन्हें हरा शिवाजी आगे बढे। इधर बाजीप्रभू का शरीर खुन से लथपथ था पर उनकी आँखे शत्रु पर हाथ हथियार पर तथा कान तोप की आवाज के लिये विशालगढ पर थे। इतने में फाजल खां की सेना भी पहूंच गयी। मराठाओं ने हार नहीं मानी। अंत तक लड़े। भागे नहीं। लगभग सारे सैनिक मारे गये। गोलखिंडी दर्रा खुन से लाल हो गया। लड़ते लड़ते तीर बाजीप्रभू के छाती में धंस गया। तभी विशालगढ से तोप की गर्जना हुुई। महाराज सुरक्षित पहूंच गये थे। तब जा कर बाजी प्रभू ने बचे हुये मुठ्ठी भर सैनिकों को वापस जाने कहा। और अपना कर्तव्य पुरा कर प्राण त्याग दिये। महज 279 सैनिक गंवा कर 3000 हजार सैनिकों को मराठाओं ने खतम कर दिया।
इस युद्ध में दोनों पक्षों को भारी नुकसान हुआ। मराठाओं से लड़ कर टुट चुकी सिद्दी जौहर और फाजलं खान की सेना तोप से हुये हमलों के सामने टिक नहीं पायी। बाप अफजल खां जिसकी शिवाजी महाराज ने पेट फाड़ अतड़ीयाँ निकाल दी थी उसका बदला लेने आया बेटा फाजल खां वहाँ से भाग खड़ा हुआ। और महज अपने वचन निभाने और स्वराज्य के लिये शिवाजी को जिंदा रखने हेतु महान योद्धा बाजीप्रभू देशपांडे ने प्राणों की आहुति दे दी। महाराज ने इस बलिदान को पूजते हुये दर्रे का नाम गोलखिंडी से पावन खिंडी कर दिया।
समय लगता है स्वराज्य बनने में। छत्रपति बिना बलिदान के नहीं बनते। कुछ घंटे की लाइनों और निजी नुकसान से हारना नहीं है। मैदान छोड़ भागना नहीं है।
सनद् रहे हम कौन हैं....

Saturday, August 6, 2016

काश्मीर की एक कहानी

बात 1967 की है .....यानी कि पलायन करने के 23 वर्ष पहले की । श्रीनगर में एक विधवा काश्मीरी हिन्दू रहती थी जिसकी एक सुंदर , सुशिक्षित , सुसंस्कृत बेटी थी , जिसका नाम परमेश्वरी हंडू था। वह काश्मीरी बेटी स्टेट काॅपरेटीव विभाग में नौकरी करती थी एवं अपने माँ की सहारा थी । उसी विभाग में गुलाम रसूल नाम का एक काश्मीरी मुस्लिम भी काम करता था जो परमेश्वरी की सुंदरता पर मोहित हो गया था। एक तरफा प्यार में वो इतना पागल हो गया कि कोई और रास्ता न देख वह उसका अपहरण करवा कर उसे कहीं छुपा दिया। उसे अनेकों यातनाएँ दिया ..मार पीट करके उसे इस हालात तक ले आया कि वो उससे शादी करने को मजबूर हो गई । पर उसका अता पता किसी को नहीं चल पा रहा था।

परमेश्वरी की विधवा माँ के लिए ये हालात असहनीय बन गया ...वह एक जिंदा लाश बन गई । पर उसने हार ना मानते हुए उस समय के मुख्यमंत्री मोहम्मद सादिक तक अपनी गुहार लगाई...। पर हफ्तों तक सुनवाई नहीं हुई तो फिर वह पंडितों के नेताओं से मिली ।
अब तक यह बात काफी फैल चुकी थी , जिसकी वजह से पंडितों में भारी रोष हो गया था। समूची घाटी के पंडित इस घटना के विरोध में लामबंद होने लगे। धरना प्रदर्शन का दौर शुरू हो गया। पंडितों ने शांतिपूर्ण सत्याग्रह करने का फैसला किया..और अपनी बेटी को वापस लाने की इस मुहिम को एक दिशा देने के लिए एक कमिटी बनाई गई जिसका नाम रखा गया "हिन्दू एक्शन कमिटी "जिसका मुख्यालय श्रीनगर के शीतलनाथ भवन में बनाया गया। सात महीने तक शीतलनाथ परिसर में लगातार धरना प्रदर्शन चलता रहा ।
परिसर में जो जयकारे लगते थे वे थे...भारत माता की जय , हर हर महादेव , परमेश्वरी को वापस करो ,आदि। महिलाएँ, बच्चे, बूढ़े सभी आयु वर्ग के लोग इन प्रदर्शनों में रोजाना भारी संख्या में शामिल होने लगे।

इस प्रदर्शन की आँच जम्मू , दिल्ली , कलकत्ता , जयपुर, अमृतसर आदि शहरों तक पहुंचने लगी। अब घाटी के प्रदर्शनकारियों पर जुल्म शुरू होने लगे , पुलिस इनके उपर आँसू गैस,लाठीचार्ज एवं गोलियाँ तक चलाने लगी

राज्य सरकार के पास राजनैतिक मजबूरी थी परमेश्वरी के मामले को दबाने की ....क्योंकि मामला बहुसंख्यक मुस्लिमों को मनमानी को रोकने को लेकर भी था ....जिसे वे हर किमत पर करना चाहते थे , यही मुस्लिम मतदाता सरकार बनाते थे सो पक्षपात पूर्ण रवैया अपनाना सरकार को अनिवार्य हो गया।

अब तक चले प्रदर्शनों में आठ पंडितों की मौत हो चुकी थी..।वेटरन डोगरा नेता एवं विधायक प्रेमनाथ डोगरा ने विधान सभा में आवाज उठाई परंतु आवाज दबा दी गई। पंडितों के दो अखबार जो श्रीनगर से छपते थे..मार्तण्ड एवं ज्योति ....बंद करा दिए गए।
प्रदर्शन को और उग्र होता देख देश की प्रधानमंत्री ने अपने रक्षा मंत्री एस वी चाह्वाण को दुत बना कर मामले को शांत कराने के लिए श्रीनगर भेजा ,....बातें हुई ..मुख्यमंत्री ने दस दिनों के अंदर लड़की को घर वालों तक पहुँचाने का वादा किया ...चाह्वाण जी वापस दिल्ली आ गए पर वो दस दिन आज तक पूरा नहीं हो पाया।

उस पक्षपाती सरकार ने इतना अवश्य पता लगाया कि परमेश्वरी का नाम अब परवीन हो चुका है।

अब इस नालायक सरकार से उम्मीदें पूरी होती ना देख इस प्रदर्शन को पंडितों ने दिल्ली शिफ्ट कर लिया । उम्मीद ये भी थी कि वहाँ और भी हिन्दू भाइयों का साथ मिलेगा पर अफसोस ही रहा उन्हें , उनकी ये अकेली लड़ाई बन गई । दिल्ली में "हिन्दू महासभा " का भवन आंदोलन का केन्द्र बना । पंडितों ने भारी संख्या में गिरफ्तारी दी जिन्हें तिहाड़ जेल में रखा गया । प्रदर्शन को उग्र होता देख प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्री सादिक एवं काश्मीरी पंडित नेताओं की मीटिंग बुलाई ताकि गतिरोध समाप्त हो ..पर सादिक ने राजनैतिक मजबूरी बता कर प्रधानमंत्री के सुझाव को अनसुना कर दिया।

कोर्ट में केस चलता रहा पर एक बार भी लड़की को सरकार कोर्ट में पेश नहीं करवा पाई । हालाँकि कोर्ट का ये आदेश भी था सरकार के लिए कि वो हर हाल में कोर्ट मे उसकी उपस्थिति को सुनिश्चित कराए।

मुस्लिम धर्मान्थों के दबाव में सरकार हाथ पे हाथ धरकर बैठ गई , और यह मामला हमेशा के लिए दबा दिया गया।

काश्मीर घाटी में पंडितों द्वारा अपने अस्तित्व, इज्जत , प्रतिष्ठा के लिए लड़ी गई ये सबसे बड़ी लड़ाई थी ..
साभार:
Anand Kumar

Sunday, February 14, 2016

काम-रेड कथा


अभी पुष्पा को कालेज आये चार ही दिन हुए थे कि उसकी मुलाक़ात एक क्रांतिकारी से हो गयी. ...ब्रांडेड जीन्स पर फटा हुआ कुरता पहने क्रान्ति की बोझ में इतना दबा था कि उसे दूर से देखने पर ही यकीन हो जाता था ..इसे नहाये मात्र सात दिन हुये हैं..... .बराबर उसके शरीर से क्रांति की गन्ध आती रहती थी... लाल गमछे के साथ झोला लटकाये सिगरेट फूंक कर क्रांति कर ही रहा था तब तक....
पुष्पा ने कहा..."नमस्ते भैया.. ..
"हुंह ये संघी हिप्पोक्रेसी."..काहें का भइया और काहें का नमस्ते?..हम इसी के खिलाफ तो लड़ रहे हैं...प्रगतिशीलता की लड़ाई...ये घीसे पीटे संस्कार...ये मानसिक गुलामी के सिवाय कुछ नहीं.....आज से सिर्फ लाल सलाम साथी कहना।
पुष्पा ने सकुचाते हुए पूछा.."आप क्या करते हैं ..क्रांतिकारी ने कहा.."हम क्रांति करते हैं....जल,जंगल,जमीन की लड़ाई लड़ते हैं..शोषितों वंचितों की आवाज उठातें हैं..
क्या तुम मेरे साथ क्रांति करोगी?
पुष्पा ने सर झुकाया और धीरे से कहा...."नहीं मैं यहाँ पढ़ने आई हूँ...कितने अरमानों से मेरे किसान पिता ने मुझे यहाँ भेजा है..पढ़ लिखकर कुछ बन जाऊं तो समाज सेवा मेरा भी सपना है.....".
क्रांतिकारी ने सिगरेट जलाई और बेतरतीब दाढ़ी को खुजाते हुए कहा....यही बात मार्क्स सोचे होते...लेनिन और मावो सोचे होते....कामरेड चे ग्वेरा....?बोलो?
तुमने पाश की वो कविता पढ़ी है...
"सबसे खतरनाक होता है मुर्दा शान्ति से भर जाना"
तुम ज़िंदा हो पुष्पा.मुर्दा मत बनों....क्रांति को तुम्हारी जरूरत है....लो ये सिगरेट पियो...."
पुष्पा ने कहा..."सिगरेट से क्रांति कैसे होगी..?
क्रांतिकारी ने कहा.."याद करो मावो और चे को वो सिगरेट पीते थे...और जब लड़का पी सकता है तो लड़की क्यों नहीं....हम इसी की तो लड़ाई लड़ रहे हैं..." यही तो साम्यवाद है ।
और सुनों कल हमारे प्रखर नेता कामरेड फलाना आ रहे हैं....हम उनका भाषण सुनेंगे..और अपने आदिवासी साथियों के विद्रोह को मजबूत करेंगे...लाल सलाम.चे.मावो..लेनिन.."
पुष्पा ने कहा..."लेकिन ये तो सरासर अन्याय है...कामरेड फलाना के लड़के तो अमेरिका में पढ़ते हैं...वो एसी कमरे में बिसलेरी पीते हुए जल जंगल जमीन पर लेक्चर देते हैं...और वो चाहतें हैं की कुछ लोग अपना सब कुछ छोड़कर नक्सली बन जाएँ और बन्दूक के बल पर दिल्ली पर अपना अधिकार कर लें...ये क्या पागलपन है..उनके अपने लड़के क्यों नहीं लड़ते ये लड़ाई. हमें क्यों लड़ा रहे.? क्या यही क्रांति है"?
क्रांतिकारी को गुस्सा आया...उसने कहा.."तुम पागल हो..जाहिल लड़की..तुम्हें ये सब बिलकुल समझ नहीं आएगा...तुमने न अभी दास कैपिटल पढ़ा है न कम्युनिस्ट मैनूफेस्टो...न तुम अभी साम्यवाद को ठीक से जानती हो न पूंजीवाद को..."
पुष्पा ने प्रतिवाद करते हुए कहा...."लेकिन इतना जरूर जानती हूँ कामरेड कि मार्क्सवाद शुद्ध विचार नही है..इसमें मैन्यूफैक्चरिंग फॉल्ट है।
यह हीगल के द्वन्दवाद,इंग्लैण्ड के पूँजीवाद.और फ्रांस के समाजवाद का मिला जुला रायता है.....जो न ही भारतीय हित में है न भारतीय जन मानस से मैच करता है।.
क्रांतिकारी ने तीसरी सिगरेट जलाई...और हंसते हुए कहा..."ये बुर्जुर्वा हिप्पोक्रेसी..तुम कुछ नहीं जानती... छोड़ो...तुम्हें अभी और पढ़ने की जरूरत है...कल आवो हम फैज़ को गाएंगे...." बोल के लब आजाद हैं तेरे'
पाश को गुनगुनाएंगे..हम क्रांति करेंगे...."आई विल फाइट कामरेड"
"हम लड़ेंगे साथी..उदास मौसम के खिलाफ"
अगले दिन उदास मौसम के खिलाफ खूब लड़ाई हुई...पोस्टर बैनर नारे लगे...साथ जनगीत डफली बजाकर गाया गया और क्रांति साइलेंट मोड में चली गयी.. तब तक दारु की बोतलें खुल चूकीं थीं.....
क्रांतिकारी ने कहा..."पुष्पा ये तुम्हारा नाम बड़ा कम्युनल लगता है..पुष्पा पांडे....नाम से मनुवाद की बू आती है...कुछ प्रोग्रेसिव नाम होना चाहिए..... आई थिंक..कामरेड पूसी सटीक रहेगा।
पुष्पा अपना कामरेडी नामकरण संस्कार सुनकर हंस ही रही थी तब तक क्रान्तिकारी ने दारु की गिलास को आगे कर दिया....
पुष्पा ने दूर हटते हुए कहा...."नहीं...ये नहीं..हो सकता।"
क्रान्तिकारी ने कहा..."तुम पागल हो..क्रान्ति का रास्ता दारु से होकर जाता है..याद करो मावो लेनिन और चे को...सबने लेने के बाद ही क्रांति किया है.."
पुष्पा ने कहा..लेकिन दारु तो ये अमेरिकन लग रही...हम अभी कुछ देर पहले अमेरिका को जी भरके गरिया रहे थे......
क्रांतिकारी ने गिलास मुंह के पास सटाकर काजू का नमकीन उठाया और कहा..."अरे वो सब छोड़ो पागल..समय नहीं ..क्रान्ति करो. दुनिया को तेरी जरूरत है....याद करो चे को मावो को.....हाय मार्क्स।
पुष्पा का सारा विरोध मार्क्स लेनिन और साम्यवाद के मोटे मोटे सूत्रों के बोझ तले दब गया.....वो कुछ ही समय बाद नशे में थी....
क्रांतिकारी ने क्रांति के अगले सोपान पर जाकर कहा..."कामरेड पुसी ..अपनी ब्रा खोल दो.."
पुष्पा ने कहा.."इससे क्या होगा?...
क्रांतिकारी ने उसका हाथ दबाते हुए कहा.. "अरे तुम महसूस करो की तुम आजाद हो..ये गुलामी का प्रतीक है..ये पितृसत्ता के खिलाफ तुम्हारे विरोध का तरीका है..तुम नहीं जानती सैकड़ों सालों से पुरुषों ने स्त्रियों का शोषण किया है.....हम जल्द ही एक प्रोटेस्ट करने वाले हैं...."फिलिंग फ्रिडम थ्रो ब्रा" जिसमें लड़कियां कैम्पस में बिना ब्रा पहने घूमेंगी।"
पुष्पा अकबका गई..."ये सब क्या बकवास है कामरेड..ब्रा न पहनने से आजादी का क्या रिश्ता"?
क्रांतिकारी ने कहा....'यही तो स्त्री सशक्तिकरण है कामरेड पुसी...देह की आजादी...जब पुरुष कई स्त्रियों को भोग सकता है...तो स्त्री क्यों नहीं....क्या तुम उन सभी शोषित स्त्रियों का बदल लेना चाहोगी?"
पुष्पा ने पूछा...."हाँ लेकिन कैसे"?...
क्रान्तिकारी ने कहा..."देखो जैसे पुरुष किसी स्त्री को भोगकर छोड़ देता है...वैसे तुम भी किसी पुरुष को भोगकर छोड़ दो...."
पुष्पा को नशा चढ़ गया था...
"कैसे बदला लूँ..कामरेड...?
क्रांतिकारी की बांछें खिल गयीं..उसने झट से कहा..."अरे मैं हूँ न..पुरुष का प्रतीक मुझे मान लो..मुझे भोगो कामरेड और हजारों सालों से शोषण का शिकार हो रही स्त्री का बदला लो।" बदला लो कामरेड.....उस दैत्य पुरुष की छाती पर चढ़कर बदला लो।"
कहतें हैं फिर रात भर लाल सलाम और क्रान्ति के साथ बिस्तर पर स्त्री सशक्तिकरण का दौर चला.. बार बार क्रांति स्खलित होती रही......कामरेड ने दास कैपिटल को किनारे रखकर कामसूत्र का गहन अध्ययन किया....
अध्ययन के बाद सुबह पुष्पा उठी तो...आँखों में आंशू थे..क्या करने आई थी ये क्या करने लगी...गरीब माँ बाप का चेहरा याद आया...हाय.....कुछ् दिन से कितनी चिड़चिड़ी होती जा रही...चेहरा इतना मुरझाया सा...अस्तित्व की हर चीज से नफरत होती जा रही.नकारात्मक बातें ही हर पल दिमाग में आती है....हर पल एक द्वन्द सा बना रहता है...."अरे क्या पुरुषों की तरह काम करने से स्त्री सशक्तिकरण होगा की स्त्री को हर जगह शिक्षा और रोजगार के उचित अवसर देकर.....पुष्पा का द्वन्द जारी था...
उसने देखा क्रांतिकारी दूर खड़ा होकर गाँजा फूंक रहा है....
पुष्पा ने कहा."सुनों मुझे मन्दिर जाने का मन कर रहा है.....अजीब सी बेचैनी हो रही है...लग रहा पागल हो जाउंगी....."
क्रांतिकारी ने गाँजा फूंकते हुए कहा.."पागल हो गयी हो..क्या तुम नहीं जानती की धर्म अफीम है"?
जल्दी से तैयार हो जा..हमारे कामरेड साथी आज हमारा इन्तजार कर रहे...हम आज संघियों के सामने ही "किस आफ लव करेंगे"...
शाम को याकूब,इशरत और अफजल के समर्थन में एक कैंडील मार्च निकालेंगे...
पुष्पा ने कहा..."इससे क्या होगा ये सब तो आतंकी हैं. देशद्रोही....सैकड़ों बेगुनाहों को हत्या की है...कितनों का सिंदूर उजाड़ा है...कितनों का अनाथ किया है.....
क्रांतिकारी ने कहा..."तुम पागल हो लड़की....
पुष्पा जोर से रोइ...."नहिं मुझे नहीं जाना... मुझे आज शाम दुर्गा जी के मन्दिर जाना है...मुझे नहीं करनी क्रांति...मैं पढ़ने आई हूँ यहाँ...मेरे माँ बाप क्या क्या सपने देखें हैं मेरे लिए.....नहीं ये सब हमसे न होगा...."
क्रांतिकारी ने पुष्पा के चेहरे को हाथ में लेकर कहा....."तुमको हमसे प्रेम नहीं.?...गर है तो ये सब बकवास सोचना छोड़ो....." याद करो मार्क्स और चे के चेहरे को...सोचो जरा क्या वो परेशानियों के आगे घुटने टेक दिए...नहीं...उन्होंने क्रान्ति किया। आई विल फाइट कामरेड....
पुष्पा रोइ...लेकिन हम किससे फाइट कर रहे हैं..?
क्रांतिकारी ने आवाज तेज की और कहा ये सोचने का समय नहीं.....हम आज शाम को ही महिषासुर की पूजा करेंगे...और रात को बीफ पार्टी करके मनुवाद की ऐसी की तैसी कर देंगे.. फिर बाद दारु के साथ चरस गाँजा की भी व्यवस्था है।
पुष्पा को गुस्सा आया..चेहरा तमतमाकर बोली...."अरे जब दुर्गा जी को मिथकीय कपोल कल्पना मानते हो तो महिषासुर की पूजा क्यों....?
क्रान्तिकारी ने कहा.अब ये समझाने का बिलकुल वक्त नहीं...तुम चलो...मुझसे थोड़ा भी प्रेम है तो चलों..हाय चे हाय मावो...हाय क्रांति...".
इस तरह से क्रांति की विधिवत शुरुवात हुई.... धीरे धीरे कुछ दिन लगातार दिन में क्रांति और रात में बिस्तर पर क्रांति होती रही...पुष्पा अब सर्टिफाइड क्रांतिकारी हो गयी थी......पढ़ाई लिखाई छोड़कर सब कुछ करने लगी थी...कमरे की दीवाल पर दुर्गा जी हनुमान जी की जगह चे और मावो थे....अगरबत्ती की जगह..सिगरेट..और गर्भ निरोधक के साथ सर दर्द और नींद की गोलियां....अब पुष्पा के सर पे क्रांति का नशा हमेशा सवार रहता...
कुछ दिन बीते.एक साँझ की बात है पुष्पा ने अपने क्रांतिकारी से कहा..."सुनो क्रांतिकारी..तुम अपने बच्चे के पापा बनने वाले हो...आवो हम अब शादी कर लें?
कहते हैं तब क्रांतिकारी की हवा निकल गयी...
मैंनफोर्स और मूड्स के बिज्ञापनों से विश्वास उठ गया..उसने जोर से कहा.."नहीं पुष्पा...कैसे शादी होगी..मेरे घर वाले इसे स्वीकार नहीं करेंगे....हमारी जाति और रहन सहन सब अलग है......यार सेक्स अलग बात है और शादी वादी वही बुर्जुवा हिप्पोक्रेसी....मुझे ये सब पसन्द नहीं..हम इसी के खिलाफ तो लड़ रहे हैं। ?"
पुष्पा तेज तेज रोने लगी.... वो नफरत और प्रतिशोध से भर गयी...लेकिन अब वो वहां खड़ी थी जहाँ से पीछे लौटना आसान न था।
कहतें हैं क्रांति के पैदा होने से पहले क्रांतिकारी पुष्पा को छोड़कर भाग खड़ा हुआ और क्रान्ति गर्भपात का शिकार हो गयी।
लेकिन इधर पता चला है की क्रांतिकारी अपनी जाति में विवाह करके एक ऊँचे विश्वविद्यालय में पढ़ा रहा।
और कामरेड पुष्पा अवसाद के हिमालय पर खड़े होकर सार्वजनिक गर्भपात के दर्द से उबरने के बाद जोर से नारा लगा रही..
"भारत की बर्बादी तक जंग चलेगी जंग चलेगी
काश्मीर की आजादी तक जंग चलेगी जंग चलेगी।"
Atul Kumar Rai 

Monday, February 8, 2016

कैसे बनाया अमेरिका ने अरविंद केजरीवाल को, जानिए पूरी कहानी....!!!!

 कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली एनजीओ गिरोह ‘राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी)’ ने घोर सांप्रदायिक ‘सांप्रदायिक और लक्ष्य केंद्रित हिंसा निवारण अधिनियम’ का ड्राफ्ट तैयार किया है। एनएसी की एक प्रमुख सदस्य अरुणा राय के साथ मिलकर अरविंद केजरीवाल ने सरकारी नौकरी में रहते हुए एनजीओ की कार्यप्रणाली समझी और फिर ‘परिवर्तन’ नामक एनजीओ से जुड़ गए। अरविंद लंबे अरसे तक राजस्व विभाग से छुटटी लेकर भी सरकारी तनख्वाह ले रहे थे और एनजीओ से भी वेतन उठा रहे थे, जो ‘श्रीमान ईमानदार’ को कानूनन भ्रष्‍टाचारी की श्रेणी में रखता है। वर्ष 2006 में ‘परिवर्तन’ में काम करने के दौरान ही उन्हें अमेरिकी ‘फोर्ड फाउंडेशन’ व ‘रॉकफेलर ब्रदर्स फंड’ ने ‘उभरते नेतृत्व’ के लिए ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ पुरस्कार दिया, जबकि उस वक्त तक अरविंद ने ऐसा कोई काम नहीं किया था, जिसे उभरते हुए नेतृत्व का प्रतीक माना जा सके। इसके बाद अरविंद अपने पुराने सहयोगी मनीष सिसोदिया के एनजीओ ‘कबीर’ से जुड़ गए, जिसका गठन इन दोनों ने मिलकर वर्ष 2005 में किया था।
अरविंद को समझने से पहले ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ को समझ लीजिए!
अमेरिकी नीतियों को पूरी दुनिया में लागू कराने के लिए अमेरिकी खुफिया ब्यूरो ‘सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (सीआईए)’ अमेरिका की मशहूर कार निर्माता कंपनी ‘फोर्ड’ द्वारा संचालित ‘फोर्ड फाउंडेशन’ एवं कई अन्य फंडिंग एजेंसी के साथ मिलकर काम करती रही है। 1953 में फिलिपिंस की पूरी राजनीति व चुनाव को सीआईए ने अपने कब्जे में ले लिया था। भारतीय अरविंद केजरीवाल की ही तरह सीआईए ने उस वक्त फिलिपिंस में ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ को खड़ा किया था और उन्हें फिलिपिंस का राष्ट्रपति बनवा दिया था। अरविंद केजरीवाल की ही तरह ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ का भी पूर्व का कोई राजनैतिक इतिहास नहीं था। ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ के जरिए फिलिपिंस की राजनीति को पूरी तरह से अपने कब्जे में करने के लिए अमेरिका ने उस जमाने में प्रचार के जरिए उनका राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय ‘छवि निर्माण’ से लेकर उन्हें ‘नॉसियोनालिस्टा पार्टी’ का उम्मीदवार बनाने और चुनाव जिताने के लिए करीब 5 मिलियन डॉलर खर्च किया था। तत्कालीन सीआईए प्रमुख एलन डॉउल्स की निगरानी में इस पूरी योजना को उस समय के सीआईए अधिकारी ‘एडवर्ड लैंडस्ले’ ने अंजाम दिया था। इसकी पुष्टि 1972 में एडवर्ड लैंडस्ले द्वारा दिए गए एक साक्षात्कार में हुई।

ठीक अरविंद केजरीवाल की ही तरह रेमॉन मेग्सेसाय की ईमानदार छवि को गढ़ा गया और ‘डर्टी ट्रिक्स’ के जरिए विरोधी नेता और फिलिपिंस के तत्कालीन राष्ट्रपति ‘क्वायरिनो’ की छवि धूमिल की गई। यह प्रचारित किया गया कि क्वायरिनो भाषण देने से पहले अपना आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए ड्रग का उपयोग करते हैं। रेमॉन मेग्सेसाय की ‘गढ़ी गई ईमानदार छवि’ और क्वायरिनो की ‘कुप्रचारित पतित छवि’ ने रेमॉन मेग्सेसाय को दो तिहाई बहुमत से जीत दिला दी और अमेरिका अपने मकसद में कामयाब रहा था। भारत में इस समय अरविंद केजरीवाल बनाम अन्य राजनीतिज्ञों की बीच अंतर दर्शाने के लिए छवि गढ़ने का जो प्रचारित खेल चल रहा है वह अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए द्वारा अपनाए गए तरीके और प्रचार से बहुत कुछ मेल खाता है।
उन्हीं ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ के नाम पर एशिया में अमेरिकी नीतियों के पक्ष में माहौल बनाने वालों, वॉलेंटियर तैयार करने वालों, अपने देश की नीतियों को अमेरिकी हित में प्रभावित करने वालों, भ्रष्‍टाचार के नाम पर देश की चुनी हुई सरकारों को अस्थिर करने वालों को ‘फोर्ड फाउंडेशन’ व ‘रॉकफेलर ब्रदर्स फंड’ मिलकर अप्रैल 1957 से ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ अवार्ड प्रदान कर रही है। ‘आम आदमी पार्टी’ के संयोजक अरविंद केजरीवाल और उनके साथी व ‘आम आदमी पार्टी’ के विधायक मनीष सिसोदिया को भी वही ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ पुरस्कार मिला है और सीआईए के लिए फंडिंग करने वाली उसी ‘फोर्ड फाउंडेशन’ के फंड से उनका एनजीओ ‘कबीर’ और ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ मूवमेंट खड़ा हुआ है।
भारत में राजनैतिक अस्थिरता के लिए एनजीओ और मीडिया में विदेशी फंडिंग!
‘फोर्ड फाउंडेशन’ के एक अधिकारी स्टीवन सॉलनिक के मुताबिक ‘‘कबीर को फोर्ड फाउंडेशन की ओर से वर्ष 2005 में 1 लाख 72 हजार डॉलर एवं वर्ष 2008 में 1 लाख 97 हजार अमेरिकी डॉलर का फंड दिया गया।’’ यही नहीं, ‘कबीर’ को ‘डच दूतावास’ से भी मोटी रकम फंड के रूप में मिली। अमेरिका के साथ मिलकर नीदरलैंड भी अपने दूतावासों के जरिए दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में अमेरिकी-यूरोपीय हस्तक्षेप बढ़ाने के लिए वहां की गैर सरकारी संस्थाओं यानी एनजीओ को जबरदस्त फंडिंग करती है।
अंग्रेजी अखबार ‘पॉयनियर’ में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक डच यानी नीदरलैंड दूतावास अपनी ही एक एनजीओ ‘हिवोस’ के जरिए नरेंद्र मोदी की गुजरात सरकार को अस्थिर करने में लगे विभिन्‍न भारतीय एनजीओ को अप्रैल 2008 से 2012 के बीच लगभग 13 लाख यूरो, मतलब करीब सवा नौ करोड़ रुपए की फंडिंग कर चुकी है। इसमें एक अरविंद केजरीवाल का एनजीओ भी शामिल है। ‘हिवोस’ को फोर्ड फाउंडेशन भी फंडिंग करती है।
डच एनजीओ ‘हिवोस’ दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में केवल उन्हीं एनजीओ को फंडिंग करती है,जो अपने देश व वहां के राज्यों में अमेरिका व यूरोप के हित में राजनैतिक अस्थिरता पैदा करने की क्षमता को साबित करते हैं। इसके लिए मीडिया हाउस को भी जबरदस्त फंडिंग की जाती है। एशियाई देशों की मीडिया को फंडिंग करने के लिए अमेरिका व यूरोपीय देशों ने ‘पनोस’ नामक संस्था का गठन कर रखा है। दक्षिण एशिया में इस समय ‘पनोस’ के करीब आधा दर्जन कार्यालय काम कर रहे हैं। ‘पनोस’ में भी फोर्ड फाउंडेशन का पैसा आता है। माना जा रहा है कि अरविंद केजरीवाल के मीडिया उभार के पीछे इसी ‘पनोस’ के जरिए ‘फोर्ड फाउंडेशन’ की फंडिंग काम कर रही है। ‘सीएनएन-आईबीएन’ व ‘आईबीएन-7’ चैनल के प्रधान संपादक राजदीप सरदेसाई ‘पॉपुलेशन काउंसिल’ नामक संस्था के सदस्य हैं, जिसकी फंडिंग अमेरिका की वही ‘रॉकफेलर ब्रदर्स’ करती है जो ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ पुरस्कार के लिए ‘फोर्ड फाउंडेशन’ के साथ मिलकर फंडिंग करती है।
माना जा रहा है कि ‘पनोस’ और ‘रॉकफेलर ब्रदर्स फंड’ की फंडिंग का ही यह कमाल है कि राजदीप सरदेसाई का अंग्रेजी चैनल ‘सीएनएन-आईबीएन’ व हिंदी चैनल ‘आईबीएन-7’ न केवल अरविंद केजरीवाल को ‘गढ़ने’ में सबसे आगे रहे हैं, बल्कि 21 दिसंबर 2013 को ‘इंडियन ऑफ द ईयर’ का पुरस्कार भी उसे प्रदान किया है। ‘इंडियन ऑफ द ईयर’ के पुरस्कार की प्रयोजक कंपनी ‘जीएमआर’ भ्रष्‍टाचार में में घिरी है।
‘जीएमआर’ के स्वामित्व वाली ‘डायल’ कंपनी ने देश की राजधानी दिल्ली में इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा विकसित करने के लिए यूपीए सरकार से महज 100 रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से जमीन हासिल किया है। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ‘सीएजी’ ने 17 अगस्त 2012 को संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा था कि जीएमआर को सस्ते दर पर दी गई जमीन के कारण सरकारी खजाने को 1 लाख 63 हजार करोड़ रुपए का चूना लगा है। इतना ही नहीं, रिश्वत देकर अवैध तरीके से ठेका हासिल करने के कारण ही मालदीव सरकार ने अपने देश में निर्मित हो रहे माले हवाई अड्डा का ठेका जीएमआर से छीन लिया था। सिंगापुर की अदालत ने जीएमआर कंपनी को भ्रष्‍टाचार में शामिल होने का दोषी करार दिया था। तात्पर्य यह है कि अमेरिकी-यूरोपीय फंड, भारतीय मीडिया और यहां यूपीए सरकार के साथ घोटाले में साझीदार कारपोरेट कंपनियों ने मिलकर अरविंद केजरीवाल को ‘गढ़ा’ है, जिसका मकसद आगे पढ़ने पर आपको पता चलेगा।
‘जनलोकपाल आंदोलन’ से ‘आम आदमी पार्टी’ तक का शातिर सफर!
आरोप है कि विदेशी पुरस्कार और फंडिंग हासिल करने के बाद अमेरिकी हित में अरविंद केजरीवाल व मनीष सिसोदिया ने इस देश को अस्थिर करने के लिए ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ का नारा देते हुए वर्ष 2011 में ‘जनलोकपाल आंदोलन’ की रूप रेखा खिंची। इसके लिए सबसे पहले बाबा रामदेव का उपयोग किया गया, लेकिन रामदेव इन सभी की मंशाओं को थोड़ा-थोड़ा समझ गए थे। स्वामी रामदेव के मना करने पर उनके मंच का उपयोग करते हुए महाराष्ट्र के सीधे-साधे, लेकिन भ्रष्‍टाचार के विरुद्ध कई मुहीम में सफलता हासिल करने वाले अन्ना हजारे को अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली से उत्तर भारत में ‘लॉंच’ कर दिया। अन्ना हजारे को अरिवंद केजरीवाल की मंशा समझने में काफी वक्त लगा, लेकिन तब तक जनलोकपाल आंदोलन के बहाने अरविंद ‘कांग्रेस पार्टी व विदेशी फंडेड मीडिया’ के जरिए देश में प्रमुख चेहरा बन चुके थे। जनलोकपाल आंदोलन के दौरान जो मीडिया अन्ना-अन्ना की गाथा गा रही थी, ‘आम आदमी पार्टी’ के गठन के बाद वही मीडिया अन्ना को असफल साबित करने और अरविंद केजरीवाल के महिमा मंडन में जुट गई।
विदेशी फंडिंग तो अंदरूनी जानकारी है, लेकिन उस दौर से लेकर आज तक अरविंद केजरीवाल को प्रमोट करने वाली हर मीडिया संस्थान और पत्रकारों के चेहरे को गौर से देखिए। इनमें से अधिकांश वो हैं, जो कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के द्वारा अंजाम दिए गए 1 लाख 76 हजार करोड़ के 2जी स्पेक्ट्रम, 1 लाख 86 हजार करोड़ के कोल ब्लॉक आवंटन, 70 हजार करोड़ के कॉमनवेल्थ गेम्स और ‘कैश फॉर वोट’ घोटाले में समान रूप से भागीदार हैं।
आगे बढ़ते हैं…! अन्ना जब अरविंद और मनीष सिसोदिया के पीछे की विदेशी फंडिंग और उनकी छुपी हुई मंशा से परिचित हुए तो वह अलग हो गए, लेकिन इसी अन्ना के कंधे पर पैर रखकर अरविंद अपनी ‘आम आदमी पार्टी’ खड़ा करने में सफल रहे। जनलोकपाल आंदोलन के पीछे ‘फोर्ड फाउंडेशन’ के फंड को लेकर जब सवाल उठने लगा तो अरविंद-मनीष के आग्रह व न्यूयॉर्क स्थित अपने मुख्यालय के आदेश पर फोर्ड फाउंडेशन ने अपनी वेबसाइट से ‘कबीर’ व उसकी फंडिंग का पूरा ब्यौरा ही हटा दिया। लेकिन उससे पहले अन्ना आंदोलन के दौरान 31 अगस्त 2011 में ही फोर्ड के प्रतिनिधि स्टीवेन सॉलनिक ने ‘बिजनस स्टैंडर’ अखबार में एक साक्षात्कार दिया था, जिसमें यह कबूल किया था कि फोर्ड फाउंडेशन ने ‘कबीर’ को दो बार में 3 लाख 69 हजार डॉलर की फंडिंग की है। स्टीवेन सॉलनिक के इस साक्षात्कार के कारण यह मामला पूरी तरह से दबने से बच गया और अरविंद का चेहरा कम संख्या में ही सही, लेकिन लोगों के सामने आ गया।
सूचना के मुताबिक अमेरिका की एक अन्य संस्था ‘आवाज’ की ओर से भी अरविंद केजरीवाल को जनलोकपाल आंदोलन के लिए फंड उपलब्ध कराया गया था और इसी ‘आवाज’ ने दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए भी अरविंद केजरीवाल की ‘आम आदमी पार्टी’ को फंड उपलब्ध कराया। सीरिया, इजिप्ट, लीबिया आदि देश में सरकार को अस्थिर करने के लिए अमेरिका की इसी ‘आवाज’ संस्था ने वहां के एनजीओ, ट्रस्ट व बुद्धिजीवियों को जमकर फंडिंग की थी। इससे इस विवाद को बल मिलता है कि अमेरिका के हित में हर देश की पॉलिसी को प्रभावित करने के लिए अमेरिकी संस्था जिस ‘फंडिंग का खेल’ खेल खेलती आई हैं, भारत में अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और ‘आम आदमी पार्टी’ उसी की देन हैं।
सुप्रीम कोर्ट के वकील एम.एल.शर्मा ने अरविंद केजरीवाल व मनीष सिसोदिया के एनजीओ व उनकी ‘आम आदमी पार्टी’ में चुनावी चंदे के रूप में आए विदेशी फंडिंग की पूरी जांच के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल कर रखी है। अदालत ने इसकी जांच का निर्देश दे रखा है, लेकिन केंद्रीय गृहमंत्रालय इसकी जांच कराने के प्रति उदासीनता बरत रही है, जो केंद्र सरकार को संदेह के दायरे में खड़ा करता है। वकील एम.एल.शर्मा कहते हैं कि ‘फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट-2010’ के मुताबिक विदेशी धन पाने के लिए भारत सरकार की अनुमति लेना आवश्यक है। यही नहीं, उस राशि को खर्च करने के लिए निर्धारित मानकों का पालन करना भी जरूरी है। कोई भी विदेशी देश चुनावी चंदे या फंड के जरिए भारत की संप्रभुता व राजनैतिक गतिविधियों को प्रभावित नहीं कर सके, इसलिए यह कानूनी प्रावधान किया गया था, लेकिन अरविंद केजरीवाल व उनकी टीम ने इसका पूरी तरह से उल्लंघन किया है। बाबा रामदेव के खिलाफ एक ही दिन में 80 से अधिक मुकदमे दर्ज करने वाली कांग्रेस सरकार की उदासीनता दर्शाती है कि अरविंद केजरीवाल को वह अपने राजनैतिक फायदे के लिए प्रोत्साहित कर रही है।
अमेरिकी ‘कल्चरल कोल्ड वार’ के हथियार हैं अरविंद केजरीवाल!
फंडिंग के जरिए पूरी दुनिया में राजनैतिक अस्थिरता पैदा करने की अमेरिका व उसकी खुफिया एजेंसी ‘सीआईए’ की नीति को ‘कल्चरल कोल्ड वार’ का नाम दिया गया है। इसमें किसी देश की राजनीति, संस्कृति व उसके लोकतंत्र को अपने वित्त व पुरस्कार पोषित समूह, एनजीओ, ट्रस्ट, सरकार में बैठे जनप्रतिनिधि, मीडिया और वामपंथी बुद्धिजीवियों के जरिए पूरी तरह से प्रभावित करने का प्रयास किया जाता है। अरविंद केजरीवाल ने ‘सेक्यूलरिज्म’ के नाम पर इसकी पहली झलक अन्ना के मंच से ‘भारत माता’ की तस्वीर को हटाकर दे दिया था। चूंकि इस देश में भारत माता के अपमान को ‘सेक्यूलरिज्म का फैशनेबल बुर्का’ समझा जाता है, इसलिए वामपंथी बुद्धिजीवी व मीडिया बिरादरी इसे अरविंद केजरीवाल की धर्मनिरपेक्षता साबित करने में सफल रही।
एक बार जो धर्मनिरपेक्षता का गंदा खेल शुरू हुआ तो फिर चल निकला और ‘आम आदमी पार्टी’ के नेता प्रशांत भूषण ने तत्काल कश्मीर में जनमत संग्रह कराने का सुझाव दे दिया। प्रशांत भूषण यहीं नहीं रुके, उन्होंने संसद हमले के मुख्य दोषी अफजल गुरु की फांसी का विरोध करते हुए यह तक कह दिया कि इससे भारत का असली चेहरा उजागर हो गया है। जैसे वह खुद भारत नहीं, बल्कि किसी दूसरे देश के नागरिक हों?
प्रशांत भूषण लगातार भारत विरोधी बयान देते चले गए और मीडिया व वामपंथी बुद्धिजीवी उनकी आम आदमी पार्टी को ‘क्रांतिकारी सेक्यूलर दल’ के रूप में प्रचारित करने लगी। प्रशांत भूषण को हौसला मिला और उन्होंने केंद्र सरकार से कश्मीर में लागू एएफएसपीए कानून को हटाने की मांग करते हुए कह दिया कि सेना ने कश्मीरियों को इस कानून के जरिए दबा रखा है। इसके उलट हमारी सेना यह कह चुकी है कि यदि इस कानून को हटाया जाता है तो अलगाववादी कश्मीर में हावी हो जाएंगे।
अमेरिका का हित इसमें है कि कश्मीर अस्थिर रहे या पूरी तरह से पाकिस्तान के पाले में चला जाए ताकि अमेरिका यहां अपना सैन्य व निगरानी केंद्र स्थापित कर सके। यहां से दक्षिण-पश्चिम व दक्षिण-पूर्वी एशिया व चीन पर नजर रखने में उसे आसानी होगी। आम आदमी पार्टी के नेता प्रशांत भूषण अपनी झूठी मानवाधिकारवादी छवि व वकालत के जरिए इसकी कोशिश पहले से ही करते रहे हैं और अब जब उनकी ‘अपनी राजनैतिक पार्टी’ हो गई है तो वह इसे राजनैतिक रूप से अंजाम देने में जुटे हैं। यह एक तरह से ‘लिटमस टेस्ट’ था, जिसके जरिए आम आदमी पार्टी ‘ईमानदारी’ और ‘छद्म धर्मनिरपेक्षता’ का ‘कॉकटेल’ तैयार कर रही थी।
8 दिसंबर 2013 को दिल्ली की 70 सदस्यीय विधानसभा चुनाव में 28 सीटें जीतने के बाद अपनी सरकार बनाने के लिए अरविंद केजरीवाल व उनकी पार्टी द्वारा आम जनता को अधिकार देने के नाम पर जनमत संग्रह का जो नाटक खेला गया, वह काफी हद तक इस ‘कॉकटेल’ का ही परीक्षण है। सवाल उठने लगा है कि यदि देश में आम आदमी पार्टी की सरकार बन जाए और वह कश्मीर में जनमत संग्रह कराते हुए उसे पाकिस्तान के पक्ष में बता दे तो फिर क्या होगा?
आखिर जनमत संग्रह के नाम पर उनके ‘एसएमएस कैंपेन’ की पारदर्शिता ही कितनी है? अन्ना हजारे भी एसएमएस कार्ड के नाम पर अरविंद केजरीवाल व उनकी पार्टी द्वारा की गई धोखाधड़ी का मामला उठा चुके हैं। दिल्ली के पटियाला हाउस अदालत में अन्ना व अरविंद को पक्षकार बनाते हुए एसएमएस कार्ड के नाम पर 100 करोड़ के घोटाले का एक मुकदमा दर्ज है। इस पर अन्ना ने कहा, ‘‘मैं इससे दुखी हूं, क्योंकि मेरे नाम पर अरविंद के द्वारा किए गए इस कार्य का कुछ भी पता नहीं है और मुझे अदालत में घसीट दिया गया है, जो मेरे लिए बेहद शर्म की बात है।’’
प्रशांत भूषण, अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और उनके ‘पंजीकृत आम आदमी’ ने जब देखा कि ‘भारत माता’ के अपमान व कश्मीर को भारत से अलग करने जैसे वक्तव्य पर ‘मीडिया-बुद्धिजीवी समर्थन का खेल’ शुरू हो चुका है तो उन्होंने अपनी ईमानदारी की चासनी में कांग्रेस के छद्म सेक्यूलरवाद को मिला लिया। उनके बयान देखिए, प्रशांत भूषण ने कहा, ‘इस देश में हिंदू आतंकवाद चरम पर है’, तो प्रशांत के सुर में सुर मिलाते हुए अरविंद ने कहा कि ‘बाटला हाउस एनकाउंटर फर्जी था और उसमें मारे गए मुस्लिम युवा निर्दोष थे।’ इससे दो कदम आगे बढ़ते हुए अरविंद केजरीवाल उत्तरप्रदेश के बरेली में दंगा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार हो चुके तौकीर रजा और जामा मस्जिद के मौलाना इमाम बुखारी से मिलकर समर्थन देने की मांग की।
याद रखिए, यही इमाम बुखरी हैं, जो खुले आम दिल्ली पुलिस को चुनौती देते हुए कह चुके हैं कि ‘हां, मैं पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का एजेंट हूं, यदि हिम्मत है तो मुझे गिरफ्तार करके दिखाओ।’ उन पर कई आपराधिक मामले दर्ज हैं, अदालत ने उन्हें भगोड़ा घोषित कर रखा है लेकिन दिल्ली पुलिस की इतनी हिम्मत नहीं है कि वह जामा मस्जिद जाकर उन्हें गिरफ्तार कर सके। वहीं तौकीर रजा का पुराना सांप्रदायिक इतिहास है। वह समय-समय पर कांग्रेस और मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी के पक्ष में मुसलमानों के लिए फतवा जारी करते रहे हैं। इतना ही नहीं, वह मशहूर बंग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन की हत्या करने वालों को ईनाम देने जैसा घोर अमानवीय फतवा भी जारी कर चुके हैं।
नरेंद्र मोदी के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए फेंका गया ‘आखिरी पत्ता’ हैं अरविंद!
दरअसल विदेश में अमेरिका, सउदी अरब व पाकिस्तान और भारत में कांग्रेस व क्षेत्रीय पाटियों की पूरी कोशिश नरेंद्र मोदी के बढ़ते प्रभाव को रोकने की है। मोदी न अमेरिका के हित में हैं, न सउदी अरब व पाकिस्तान के हित में और न ही कांग्रेस पार्टी व धर्मनिरेपक्षता का ढोंग करने वाली क्षेत्रीय पार्टियों के हित में। मोदी के आते ही अमेरिका की एशिया केंद्रित पूरी विदेश, आर्थिक व रक्षा नीति तो प्रभावित होगी ही, देश के अंदर लूट मचाने में दशकों से जुटी हुई पार्टियों व नेताओं के लिए भी जेल यात्रा का माहौल बन जाएगा। इसलिए उसी भ्रष्‍टाचार को रोकने के नाम पर जनता का भावनात्मक दोहन करते हुए ईमानदारी की स्वनिर्मित धरातल पर ‘आम आदमी पार्टी’ का निर्माण कराया गया है।
दिल्ली में भ्रष्‍टाचार और कुशासन में फंसी कांग्रेस की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की 15 वर्षीय सत्ता के विरोध में उत्पन्न लहर को भाजपा के पास सीधे जाने से रोककर और फिर उसी कांग्रेस पार्टी के सहयोग से ‘आम आदमी पार्टी’ की सरकार बनाने का ड्रामा रचकर अरविंद केजरीवाल ने भाजपा को रोकने की अपनी क्षमता को दर्शा दिया है। अरविंद केजरीवाल द्वारा सरकार बनाने की हामी भरते ही केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा, ‘‘भाजपा के पास 32 सीटें थी, लेकिन वो बहुमत के लिए 4 सीटों का जुगाड़ नहीं कर पाई। हमारे पास केवल 8 सीटें थीं, लेकिन हमने 28 सीटों का जुगाड़ कर लिया और सरकार भी बना ली।’’
कपिल सिब्बल का यह बयान भाजपा को रोकने के लिए अरविंद केजरीवाल और उनकी ‘आम आदमी पार्टी’ को खड़ा करने में कांग्रेस की छुपी हुई भूमिका को उजागर कर देता है। वैसे भी अरविंद केजरीवाल और शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित एनजीओ के लिए साथ काम कर चुके हैं। तभी तो दिसंबर-2011 में अन्ना आंदोलन को समाप्त कराने की जिम्मेवारी यूपीए सरकार ने संदीप दीक्षित को सौंपी थी। ‘फोर्ड फाउंडेशन’ ने अरविंद व मनीष सिसोदिया के एनजीओ को 3 लाख 69 हजार डॉलर तो संदीप दीक्षित के एनजीओ को 6 लाख 50 हजार डॉलर का फंड उपलब्ध कराया है। शुरू-शुरू में अरविंद केजरीवाल को कुछ मीडिया हाउस ने शीला-संदीप का ‘ब्रेन चाइल्ड’ बताया भी था, लेकिन यूपीए सरकार का इशारा पाते ही इस पूरे मामले पर खामोशी अख्तियार कर ली गई।
‘आम आदमी पार्टी’ व उसके नेता अरविंद केजरीवाल की पूरी मंशा को इस पार्टी के संस्थापक सदस्य व प्रशांत भूषण के पिता शांति भूषण ने ‘मेल टुडे’ अखबार में लिखे अपने एक लेख में जाहिर भी कर दिया था, लेकिन बाद में प्रशांत-अरविंद के दबाव के कारण उन्होंने अपने ही लेख से पल्ला झाड़ लिया और ‘मेल टुडे’ अखबार के खिलाफ मुकदमा कर दिया। ‘मेल टुडे’ से जुड़े सूत्र बताते हैं कि यूपीए सरकार के एक मंत्री के फोन पर ‘टुडे ग्रुप’ ने भी इसे झूठ कहने में समय नहीं लगाया, लेकिन तब तक इस लेख के जरिए नरेंद्र मोदी को रोकने लिए ‘कांग्रेस-केजरी’ गठबंधन की समूची साजिश का पर्दाफाश हो गया। यह अलग बात है कि कम प्रसार संख्या और अंग्रेजी में होने के कारण ‘मेल टुडे’ के लेख से बड़ी संख्या में देश की जनता अवगत नहीं हो सकी, इसलिए उस लेख के प्रमुख हिस्से को मैं यहां जस का तस रख रहा हूं, जिसमें नरेंद्र मोदी को रोकने के लिए गठित ‘आम आदमी पार्टी’ की असलियत का पूरा ब्यौरा है।
शांति भूषण ने इंडिया टुडे समूह के अंग्रेजी अखबार ‘मेल टुडे’ में लिखा था, ‘‘अरविंद केजरीवाल ने बड़ी ही चतुराई से भ्रष्‍टाचार के मुद्दे पर भाजपा को भी निशाने पर ले लिया और उसे कांग्रेस के समान बता डाला। वहीं खुद वह सेक्यूलरिज्म के नाम पर मुस्लिम नेताओं से मिले ताकि उन मुसलमानों को अपने पक्ष में कर सकें जो बीजेपी का विरोध तो करते हैं, लेकिन कांग्रेस से उकता गए हैं। केजरीवाल और आम आदमी पार्टी उस अन्ना हजारे के आंदोलन की देन हैं जो कांग्रेस के करप्शन और मनमोहन सरकार की कारगुजारियों के खिलाफ शुरू हुआ था। लेकिन बाद में अरविंद केजरीवाल की मदद से इस पूरे आंदोलन ने अपना रुख मोड़कर बीजेपी की तरफ कर दिया, जिससे जनता कंफ्यूज हो गई और आंदोलन की धार कुंद पड़ गई।’’
‘‘आंदोलन के फ्लॉप होने के बाद भी केजरीवाल ने हार नहीं मानी। जिस राजनीति का वह कड़ा विरोध करते रहे थे, उन्होंने उसी राजनीति में आने का फैसला लिया। अन्ना इससे सहमत नहीं हुए । अन्ना की असहमति केजरीवाल की महत्वाकांक्षाओं की राह में रोड़ा बन गई थी। इसलिए केजरीवाल ने अन्ना को दरकिनार करते हुए ‘आम आदमी पार्टी’ के नाम से पार्टी बना ली और इसे दोनों बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों के खिलाफ खड़ा कर दिया। केजरीवाल ने जानबूझ कर शरारतपूर्ण ढंग से नितिन गडकरी के भ्रष्‍टाचार की बात उठाई और उन्हें कांग्रेस के भ्रष्‍ट नेताओं की कतार में खड़ा कर दिया ताकि खुद को ईमानदार व सेक्यूलर दिखा सकें। एक खास वर्ग को तुष्ट करने के लिए बीजेपी का नाम खराब किया गया। वर्ना बीजेपी तो सत्ता के आसपास भी नहीं थी, ऐसे में उसके भ्रष्‍टाचार का सवाल कहां पैदा होता है?’’
‘‘बीजेपी ‘आम आदमी पार्टी’ को नजरअंदाज करती रही और इसका केजरीवाल ने खूब फायदा उठाया। भले ही बाहर से वह कांग्रेस के खिलाफ थे, लेकिन अंदर से चुपचाप भाजपा के खिलाफ जुटे हुए थे। केजरीवाल ने लोगों की भावनाओं का इस्तेमाल करते हुए इसका पूरा फायदा दिल्ली की चुनाव में उठाया और भ्रष्‍टाचार का आरोप बड़ी ही चालाकी से कांग्रेस के साथ-साथ भाजपा पर भी मढ़ दिया। ऐसा उन्होंने अल्पसंख्यक वोट बटोरने के लिए किया।’’
‘‘दिल्ली की कामयाबी के बाद अब अरविंद केजरीवाल राष्ट्रीय राजनीति में आने जा रहे हैं। वह सिर्फ भ्रष्‍टाचार की बात कर रहे हैं, लेकिन गवर्नेंस का मतलब सिर्फ भ्रष्‍टाचार का खात्मा करना ही नहीं होता।

Sunday, January 24, 2016

सरकार के दी हुई लैपटॉप से ही करता था आतंकवादियो की भर्ती: जानिए ISIS से जुड़े सभी देशद्रोहियों को



January 24, 2016



कुशीनगर से गिरफ्तार हुए संदिग्‍ध ISIS आतंकी रिजवान के मामले में बड़ा खुलासा हुआ है। बताया जा रहा है कि रिजवान आईएसआईएस सरगना अबू बकर अल-बगदादी से सीधे टच में था। वहीं, लखनऊ में अरेस्ट हुआ अलीम अहमद सरकार से मिले लैपटॉप पर टेररिस्ट वेबसाइट सर्च करता था।

अलीम ने बेच दिया सरकार से मिला लैपटॉप
एक अन्य सस्पेक्ट अलीम को भी एनआईए और एसटीएफ की टीम ने अरेस्ट किया। हैदराबाद की क्राइम ब्रांच की टीम भी लखनऊ में मौजूद थी।
वह हैदराबाद के चार संदिग्धों के साथ लगातार टच में था।
अकील के एक बैंक खाते की भी जानकारी मिली है। खाते में 1500 रुपए जमा बताए जा रहे हैं।
एजेंसियों का मानना है कि अलीम साइबर कैफे का इस्तेमाल नहीं करता था। सारा काम वह लैपटॉप के जरिए करता था।
अलीम को पता चल गया था कि उसकी तलाश की जा रही है। इसलिए वह लखनऊ में बहन के यहां रह रहा था।
अलीम के पेरेंट्स के मुताबिक 12th के बाद उसे यूपी सरकार ने लैपटॉप दिया था। जो कुछ समय इस्तेमाल के बाद उसने बेच दिया।
हालांकि, अभी लैपटॉप बरामद नहीं हुआ है।

रिजवान चला रहा था ISIS का रीजनल ऑफिस
एटीएस की रिजवान से पूछताछ के बाद कई खुलासे हुए हैं।
ऑपरेशन से जुड़े सूत्रों के मुताबिक 20 साल का रिजवान जन्नत पाना चाहता था। इसके लिए वह सीरिया जाकर अमेरिकी सेना से ISIS के लिए लड़ना चाहता था।
गोवा में वह 30 हजार रुपए किराए का कमरा लेकर रहता था।
यहीं से आईएसआईएस का रीजनल ऑफिस चला रहा था।
फेसबुक से आया था आईएसआईएस के संपर्क में
रिजवान फेसबुक के जरिए 8 महीने से आईएसआईएस के टच में था।
एक्टिविटी देख उसे चेन्नई बुलाया गया, जहां एक लाख रुपए देकर जिम्मेदारी सौंपी गई।
बाद में और रुपए देने का लालच दिया गया।
स्लीपिंग मॉड्यूल कर रहा था तैयार
सूत्रों के मुताबिक, रिजवान जगह-जगह घूमकर स्लीपिंग मॉड्यूल भी तैयार कर रहा था।
बताया जा रहा है कि इसके लिए उसे सीधे बगदादी से आदेश मिला था।
यह भी लालच दिया गया था कि कामयाब हुए तो काफी फायदा होगा।
जानकारी के मुताबिक रिजवान एक बड़ी साजिश को भी अंजाम देने में जुटा हुआ था।
वह देश में कई स्थानों पर इंडियन मुजाहिदीन के संग मिलकर धमाके करने की तैयारी कर रहा था।
वह कुशीनगर (यूपी) में भी सीरियल ब्लास्ट करने की योजना बना रहा था।
पिता करता है बीड़ी फैक्ट्री में काम, बेटा निकला IS संदिग्ध
अरेस्ट संदिग्धों में राजस्थान के टोंक में रहने वाला अबु अनस भी है।
अनस हैदराबाद में टीडब्ल्यूजी इंटरनेशनल कंपनी में बतौर इंफॉरमेशन सिक्यूरिटी एनालिस्ट काम कर रहा था।
उनके पिता मुश्ताक अहमद बीड़ी फैक्ट्री में काम करते हैं। वो भी इस समय भी हैरान हैं।
अनस के पिता अहमद का कहना है कि उसके बेटे की उम्र 25 साल है और वह जेईसीआरसी यूनिवर्सिटी से पासआउट है।
वह धार्मिक प्रवृत्ति का है और नियमित तौर पर नमाज अदा करता है।
नए कपड़े पहनता था, पल्‍सर बाइक से चलता था रिजवान
रिजवान कुशीनगर के बुद्ध इंटर कॉलेज में इंटर की पढ़ाई कर रहा है।
कॉलेज के टीचरों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि इधर कुछ महीनों से उसका अंदाज बदला-बदला सा नजर आ रहा था।
वह लास्ट बेंचर बन गया था। कभी-कभी बीच में लम्बे समय के लिए गायब हो जाया करता था।
नए कपड़े बदल-बदल कर पहनता था और पल्सर बाइक से स्कूल आता था।
फैमिली मेंबर बोले- उसे गोली मार देनी चाहिए
एंटी-नेशनल एक्टिविटीज से जुड़े रिजवान की गिरफ्तारी से पूरे गांव के लोग सहम गए हैं।
रिजवान के चाचा रियाजुद्दीन के मुताबिक, वह कैसे आतंकवादी संगठनों से जुड़ा, इसकी जांच होनी चाहिए।
उन्होंने यहां तक कह डाला कि रिजवान को गोली मार देनी चाहिए।
रिजवान के पिता कुशीनगर जिले के खड्डा तहसील क्षेत्र में लेखपाल हैं, जबकि दो मामा आर्मी में हैं।
ट्रांजिट रिमांड पर है रिजवान

रिजवान को मुंबई और बनारस की ज्वॉइंट एटीएस टीम ने शनिवार को गठित विशेष अदालत में पेश किया।
एसीजेएम आशीष कुमार चौरसिया ने उसे ट्रांजिट रिमांड पर एटीएस को सौंप दिया।
रिजवान को कुशीनगर के कसया इलाके से एक अन्य युवक के साथ एटीएस ने गिरफ्तार किया था।
उसके पास से 60 मोबाइल सेट और पांच लाख रुपए से अधिक कैश बरामद किया गया।
दोनों से एटीएस के अधिकारियों ने कसया के एक होटल में पूछताछ की।
ट्रांजिट रिमांड मिलने के बाद एटीएस उसे आगे की पूछताछ के लिए ले गई है।