दोस्तों पुरे देश में
एक ज्वाला भड़का
हुआ है और
ये हमारे देश
और खुद हमारा
बोया हुआ आग
है जो आज
सबको जला रहा
है । आज
जो धरना प्रदर्शन हो
रहा है और
युवा साथी और
बहने भाग ले रही
है देख के
तो दिल में
उम्मीद आती है
लेकिन बस कैमरे
पर अपनी छवि
के अलावा इनमे
सच का कोई
भी गुस्सा या
प्रतिशोध नहीं है इस
घटिया समाज पर
और ये खुद
जो आज प्रदर्शन कर
रहे है वो
ही इसको बढ़ावा
देने का काम
करते है इनको
देशी शब्द और
राष्ट्रीयता से उतना ही
चिढ है जितना
की एक सांड
लाल कपड़ो से
चिढ़ता है ।
इस से पहले
की आप मुझे
गाली दे या
फिर कुछ बोले
मैं आपको कुछ
दिखाना चाहूँगा
1) अमेरिका में
हर साल तकरीबन
96000 बलात्कार होते
है और प्रति
100000 तकरीबन
33 बलात्कार होते
है
2) ब्रिटेन में
हर साल तकरीबन
16000 बलात्कार होते
है और प्रति
100000 उनका
आंकड़ा तकरीबन 29 है
3) आस्ट्रेलिया में
हर साल तकरीबन
19000 बलात्कार होते
है और प्रति
100000 उनका
आंकड़ा तकरीबन 92 के
करीब आता है
4) बेल्जियम में
हर साल तकरीबन
3000 बलात्कार होते
है और उनका
प्रति 100000 आंकड़ा 29 आता है
वैसे ही हर
एक पश्चिमी और
यूरोपीय देशो में बलात्कार बड़े
पैमानों पर होती है
और वो इसके
लिए गंभीर भी
नहीं है क्यूंकि उनके
समाज में खुलापन
है और वो
इस से इतना
चिंतित भी नहीं
है ।
अब जरा आइये
अपने देश की
स्थिति समझते है
80 के दशक
में हमारे देश
में प्रति साल
बलात्कार 700 और प्रति 100000 ये आंकड़ा
करीब 0.17 आता था
90 के दशक
में हमारे देश
में प्रति साल
बलात्कार 1800 और और प्रति
100000 ये
आंकड़ा करीब 0.70 आता था
2000 के दशक
में यही बलात्कार का
आंकड़ा बस दस
सालो में ही
बढ़कर अचानक ही
6000 और
प्रति 100000 ये आंकड़ा करीब 1.6
आ गया
और 2008 में
यही आंकड़ा 6000 से
बढ़कर करीब 9000 हो
गया और प्रति
100000 ये
आंकड़ा करीब 1.9 करीब आ
गया और अभी
वर्तमान में हमारे देश
में एक साल
में कम से
कम 19000 बहनों के साथ
ऐसा कुकर्म होता
है और प्रति
100000 ये
आंकड़ा करीब करीब
2.5 के
पर जा चूका
है फिर भी
ये पश्चिमी देशो
के मुकाबले बहुत
ही कम है
और आज के
हमारे यही युवा
जो फेसबुक और
रोड पर और
इंडिया गेट पर
हाथ में मोमबतिया लेके
खड़े रहते है
और लगता है
की हमारे देश
में कितने सुसंस्कृत युवा
रहते है, लेकिन इन रँगे हुए सियारों को कोई जनता नहीं है की जब जिस्म और मर्डर फिल्म आती है और कोई भी फिल्म जो की समाज में अपने परिवार वालो के साथ नहीं देख सकते है तब आप देखेंगे की ये ही रँगे हुए सियार वह भीड़ बनाये हुए है चाहे वो गूगल पर सन्नी लिओनि का सर्च हो या पूनम पाण्डेय और शर्लिन चोपड़ा के फोल्लोवेर्स हो सब यही है नहीं तो इन दो टेक की लडकियों की क्या औकात थी की ये पुरे भारत में लडकियो के प्रति सोच ही बदल के रख देती लेकिन ये हमारे रँगे हुए सियार ही है जो इन्हें आँखों और पलको पर बैठाते है अगर ये फिल्मे न देखते तो इन फिल्मो के जो भांड निर्माता फिर से हिम्मत नहीं करते लेकिन वो जब देखते है की हमारे देश के युवा को बस सेक्स चाहिए तो वो वही बनाते है क्यों सामाजिक मुद्दे पर फिल्मे फ्लॉप हो जाती है और बस उन्हें समाज का एक छोटा सा वर्ग ही पसंद करता है और क्यों एक छिछोरे से इन्सान को सुपर स्टार बना दिया जाता है वो इमरान जिसे एक सीधा संवाद बोलने नहीं आता वो आज का सुपर स्टार है क्यों बस इन्ही सियारों के वजह से कई ऐसी गन्दी लड़किया जिन्हें सभ्य समाज में देखना भी एक शर्म है वो आज टीवी और फिल्मो में आती है और तमाम विज्ञापनों में आती है क्यूंकि विज्ञापन बनाने वाला जनता है की इसका उपयोग युवा ही करता है और आज तो चाहे वो साबुन हो या खाने का कोई सामान या फिर पूजा या फिर कपडे का कोई विज्ञापन उसमे इतनी अश्लीलता परोसी जाती है क्यों क्यूंकि हम वही देखना पसंद करते है और इसी लिए वो बनते है हमें याद रखना चाहिए की किसी भी समाज को वही माहौल मिलता है जैसा की वो खुद चाहता है क्या हमने आज तक किसी अश्लील फिल्म को फ्लॉप करवाया है नहीं ? हम क्या गन्दी औरतो को अपना स्टार क्यों बनाते है ? हम बिग बॉस और रोडीज जैसे प्रोग्राम देखते है क्यू ?
क्यूंकि हम पर पश्चिमी सभ्यता एक दम जादू कर रखा है हम हर एक लाइन में cool, chill, fun और enjoy बोलते ही है हमें सीधापन पसंद नहीं है सीधा सा देहाती बोल के आपको बगल कर दिया जाता है। तो जब हम पश्चिमी सभ्यता को सर पर चढ़ाएंगे तो उसी ने अनुसार बलात्कार, और हमारी मानसिक नैतिकता का तो गिरना ही है तो फिर ये झूठा प्रदर्शन क्यों ? ये दोगलापन क्यों जब आप खुद ही आधुनिक बन ने का भुत है तो फिर आप खुद समाज में ये गंदगी फैला रहे हो और अब प्रदर्शन तो मत करो
अगर थोडा सा भी बदलाव महसूस किया हो ये पढ़ के तो कसम ले लो की आज के बाद न ही कोई c ग्रेड स्टार की d ग्रेड फिल्म देखेंगे न ही पश्चिमी सभ्यता के पीछे भागेंगे अपनी संस्कृति ऐसे ही पूरी दुनिया में बेजोड़ है कहा गया वो दौर जब पूर्व और पश्चिम टाइप की फिल्मे बनती थी हम ही इस देश का भविष्य है और हमें ही तय करना है की कैसे समाज में हमें रहना है
~~ अक्षय