भारत-चीन युद्ध: नेहरू-मेनन ने देश को छला, भारतीय महिलाओं को लूटा और वामपंथियों ने चीन का बाहें फैला कर स्वागत किया।#TheTruIndianHistory
संदीप देव। वामपंथी और कांग्रेसियों के खून में जो गद्दारी दिखती है, देश में उसका सबसे बेहतरीन उदाहरण सन 1962 में हुआ भारत-चीन युद्ध था, जिसमें नेहरू ने देश को छला और भारत की कम्यूनिस्ट पार्टियों ने चीन का बाहें फैलाकर स्वागत किया था।
अक्टूबर 1962 में चीनी सेना ने मैकमोहन रेखा पार कर भारत पर आक्रमण कर दिया था। भारतीय सेना युद्ध के लिए किसी भी तरह तैयार नहीं थी।, उसके अस्त्र-शस्त्र पुराने थे। उस समय रक्षा मंत्री कृष्णा मेनन थे। नेहरू सरकार ने उस वक्त इतना बड़ा घाेटाला किया था कि आप चौंक जाएंगे। कागज व नक्शे में चीन की सीमा तक सड़क का निर्माण दिखाया गया था, सड़क निर्माण का फंड भी गायब था, लेकिन जब सैनिक वहां पहुंचे तो पाया कि नक्शे में जहां सड़क दिखाई गई है, वहीं कभी सड़क बनी ही नहीं।
तो फिर सवाल उठता है कि सड़क निर्माण पर तो रकम खर्च की गई थी, उसे कौन डकार गया। आज तक 60 साल के शासन में किसी सरकार ने इसकी जांच क्यों नहीं कराई है। मेरी बातों पर भरोसा न तो तो आप अक्टूबर 1962 का अखबार उठा कर देख लीजिए। बनारस के नागरी प्रचारिणी सभा में 1928 से सारा अखबार मौजूद है। मैंने वहीं से इसे नोट किया है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि नेहरू सरकार के समय सेना की हालत बेहद खस्ताहाल थी। सरकार का कहना था कि सेना का क्या काम है। खाली समय में सेना टमाटर आदि की खेती करे तो ज्यादा उचित होगा।
चीन ने जब आक्रमण कर दिया तो नेहरू सरकार ने जनता को लूटने का मन बनाया और घोषणा की कि सेना के पास अस्त्र-शस्त्र नहीं है और न ही सरकार के बजट में इसे खरीदने के लिए धन है। माताएं-बहने घर से बाहर आएं और अपना-अपना जेवर युद्ध के लिए दान करें। जगजीवनराम जैसे बड़े कांग्रेसी नेता सभा कर कर महिलाओं से जेवर मांग रहे थे।
बनारस की उनकी सभा में जेवरों का ढेर लग गया था। उनके भीख मांगने पर भारत की महिलाओं ने खुल कर अपने आभूषणों का दान दिया, लेकिन आपको आश्चर्य होगा कि वह आभूषण भी कई जगह स्थानीय कांग्रेस कमेटी के सदस्यों ने डकार लिया। हल्के जेवरात तो सरकारी खजाने में जमा कराए गए और भारी-भारी आभूषण कांग्रेस कमेटी के सदस्यों ने अपनी बीबी और बहनों के लिए या फिर उसे बेच कर धन कमाने के लिए गायब कर दिया था।
अखबार की रिपोर्टिंग आप देखेंगे तो उस वक्त जनता में इसे लेकर गजब का आक्रोश था, लेकिन हमारे वामपंथी इतिहासकारों ने इतिहास की पुस्तकों में न इस घोटाले का और न ही उस जन आक्रोश का ठीक से वर्णन ही नहीं किया है। आपको आश्चर्य होगा कि कृष्णा मेनन रक्षा मंत्री थे, लेकिन कभी भारत-चीन सीमा पर वह गए ही नहीं थे।
अखबार मेनन को हटाने की मुहिम चला रहे थे, लेकिन लोग दूसरी बात कह रहे थे। लोग कह रहे थे, '' क्या नेहरू बच्चे थे जो मेनन के बहकावे में आ गए। वह देश के प्रधानमंत्री हैं और सारी जिम्मेवारी उनकी है। अपने मंत्रीमंडल के सदस्यों के काम का पता यदि प्रधानमंत्री नहीं रखेगा तो फिर ऐसे प्रधानमंत्री का क्या काम।'' जैसे-तैसे मेनन से इस्तीफा लिया गया ताकि नेहरू के प्रति बढ रहा जनआक्रोश कम किया जा सके। लोगों ने कहा, ''चलो मेनन की बली चढा कर नेहरू ने स्वयं को बचा लिया। नेहरू की गददी तो बच गई, पर देश बचे तब तो।''
दूसरी तरफ देशद्रोही वामपंथी थे। भारत की सभी कम्यूनिस्ट पार्टियां यह झूठा प्रचार करने में जुटी थी कि ''चीन ने हमारे देश पर आक्रमण नहीं किया है। वह अपनी ही जमीन पर आगे बढ़ रहा है। अंग्रेज अधिकारी मैकमोहन ने झूठी व काल्पनिक रेखा खींच कर चीन की जमीन भारत में मिला दी थी, जिसे चीन ले रहा है तो कौन सा गुनाह कर रहा है। चीन अपनी जमीन पर सेना का मूवमेंट कर रहा है। इससे देश को आपत्ति नहीं होनी चाहिए।''
अखबार ने लिखा था, ''रुस्तम सटीन के नेतृत्व में कम्युनिस्टों का एक दल नक्शे लेकर बाजार में दुकान दुकान जनता को समझा रहा था कि चीन ने आक्रमण नहीं किया है। वह अपनी सीमा के भीतर सेनाओं को सक्रिय कर रहा है।चीन ने भारत पर आक्रमण नहीं किया है, बल्कि भारतीय सेना ही चीन के क्षेत्र में घुस गई है।'
कैंप पर जनता सैनिकों का उत्साहवर्धन करने के लिए जाती थी। जनता का आभार व्यक्त करते हुए मुगलसराय कैंप के एक कैप्टन ने कहा था, '' आपने यह माला किसी सैनिक के गले में नहीं, वरन एक जीवित शहीद के गले में डाली है। हम सब शहीद होने के लिए बॉर्डर पर जा रहे हैं। जब हमारे पास आधुनिक हथियार ही नहीं हो, जब नक्शे में सड़क हो और जमीन पर वह गायब हो तो ऐसे में हम क्या कर सकते हैं। हम तो उसे तलाशते ही रह जाते हैं और वह हमें घेर कर हम पर वार कर देता है। ऐसे में शहीद होने के अलावा हमारे पास कोई चारा ही नहीं है।' कैप्टन ने यहां तक कहा था, यह हमारी हताशा नहीं बोल रही है, बल्कि अपने नेताओं के कमीनेपन पर हमारा आक्रेश है। शायद आपको यह आक्रेश न हो क्योंकि आप लोग जमीनी हकीकत से वाकिफ नहीं हैं।''
चीन ने बोमडिला तक का सारा क्षेत्र अपने कब्जें में ले लिाय और एक तरफा युद्ध विराम की घोषणा कर दी। बेशर्म नेहरू ने कहा, '' चीन ने जिस क्षेत्र पर कब्जा किया है, वह 'नो मैन लैंड' है। वह एकदम उजाड़ है।'' जनता ने जबरदस्त प्रतिक्रिया दी। जनता का बयान देखिए, '' नेहरू के हिसाब से तो भारत में बिना आदमी का घर और बिना पानी का नहर चीन जहां भी देखेगा हथिया लेगा, क्योंकि वह भी तो उसके लिए 'नो मैन लैंड' ही होगा।''
देशद्रोही कम्यूनिस्टों ने कहा, ''जीतने वाली सेना कभी एकरफ युद्ध विराम करती है, लेकिन चीन ने किया है। इसी से साबित होता है कि चीन हमलावर नहीं था, बल्कि वह अपनी जमीन लेने आया था, जो भारत के कब्जे में था।'' सोचिए कांग्रेस और कम्यूनिस्ट, आज यही दोनों देशद्रोही पार्टियां और इसकी विचारधारा के लोग हमें देशभक्ति सिखला रहे हैं, टीवी पर बैठकर प्रवचन दे रहे हैं।
आपको-हमको इतिहास की टेस्टबुक में इनकी घटिया कारास्तानी नहीं मिलेगी, क्योंकि एनसीईआरटी एवं अन्य टेक्सटबुक तो कांग्रेसी व वामपंथी चापलूस इतिहासरों ने लिखा है। लेकिन उस वक्त के सभी अखबार दस्तावेज है, जो आज भी देश के विभिन्न पुस्तकालयों में मौजूद हैं और जिन्हें हर हाल में पलट कर नए इतिहास को लिखने की जरूरत है। मैंने कुछ घटनाओं को तो नोट कर लिया था, लेकिन इसमें इतना श्रम, समय और पैसा चाहिए कि एक अकेला आदमी पूरी तरह से बिखर जाएगा। यह तो संगठित रूप से किया जाने वाला प्रयास है। देखते हैं यह कैसे होता है। मेरी PMO India Narendra Modi से अपील है कि वह देश के इतिहास के पुनर्लेखन को प्राथमिकता दें, क्योंकि हमारे बच्चे देशद्रोहियों को देशभक्त के रूप में पढ़ पढ़ कर गुमराह हो रहे हैं।
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