तिरुपति से मेल्कोट आकर कई आयंगर ब्राह्मण बरसों पहले बसे थे | इस इलाके
को आज मांड्या जिले में माना जाता है | एक ही परिवार के थे तो सबका गोत्र
भी एक ही था – भारद्वाज | गोत्र और मूल ब्राह्मणों में एक ही परिवार के अलग
अलग जगह बसे सदस्यों को पहचानने का तरीका भी रहा है | इनकी तमिल भी थोड़ी
सी अलग होती है, इसे मंडयम तमिल कहते हैं |
टीपू सुलतान के एक मंत्री शमैयाह आयंगर इसी इलाके के मंडयम आयंगर थे | कहीं से टीपू सुलतान को उनके वोडेयर रानी लक्ष्माम्मानी से मिलने की खबर मिली | खबर की जांच करना टीपू सुलतान ने जरूरी नहीं समझा | तीसरे अँगरेज़ – मैसूर युद्ध की शर्तो से भड़के हुए टीपू सुलतान ने इलाके को जा घेरा |
मांडयम आयंगर उस समय नरका चतुर्दशी के बाद त्योहारों की तैयारी में लगे थे | गाँव के आठ सौ लोग बिना सवाल के काट दिए गए |
टीपू सुलतान के एक मंत्री शमैयाह आयंगर इसी इलाके के मंडयम आयंगर थे | कहीं से टीपू सुलतान को उनके वोडेयर रानी लक्ष्माम्मानी से मिलने की खबर मिली | खबर की जांच करना टीपू सुलतान ने जरूरी नहीं समझा | तीसरे अँगरेज़ – मैसूर युद्ध की शर्तो से भड़के हुए टीपू सुलतान ने इलाके को जा घेरा |
मांडयम आयंगर उस समय नरका चतुर्दशी के बाद त्योहारों की तैयारी में लगे थे | गाँव के आठ सौ लोग बिना सवाल के काट दिए गए |
तब से आज करीब दो ढाई सौ साल बाद भी ये मांडयम आयंगर नरका चतुर्दशी के बाद
त्यौहार रोक देते हैं | बरसों से इन घरों में कोई दीवाली नहीं हुई |
सेक्युलर परंपरा को ध्यान में रखते हुए हमारे इतिहासकार मानते रहे कि रानियाँ तो होती नहीं थी भारतीय इतिहास में ! इसलिए अपने पति की मृत्यु के बाद टीपू सुलतान के आस पास के इलाके में राज्य विस्तार की प्यास के वाबजूद अपने बेटे को राजगद्दी तक पहुँचाने वाली कोई होगी नहीं | बीच के इतने समय कोई वोडेयर रानी लक्ष्माम्मानी तो गद्दी संभालेगी नहीं न ?
और फिर सेक्युलर टीपू के मारे गए असहिष्णु हिन्दू परिवारों के सम्बन्धी आज भी दीपावली नहीं मनाते तो क्या हुआ ? टीपू की जयंती तो मनाई ही जा रही है !
बाकि लोग कहते हैं की टीपू सुल्तान, सेक्युलर था, धर्मनिरपेक्ष था, इन्साफ पसंद था तो सही ही कहते होंगे ! 800 लोगों को कटवा देना कोई जुर्म थोड़ी ना है ?
सेक्युलर परंपरा को ध्यान में रखते हुए हमारे इतिहासकार मानते रहे कि रानियाँ तो होती नहीं थी भारतीय इतिहास में ! इसलिए अपने पति की मृत्यु के बाद टीपू सुलतान के आस पास के इलाके में राज्य विस्तार की प्यास के वाबजूद अपने बेटे को राजगद्दी तक पहुँचाने वाली कोई होगी नहीं | बीच के इतने समय कोई वोडेयर रानी लक्ष्माम्मानी तो गद्दी संभालेगी नहीं न ?
और फिर सेक्युलर टीपू के मारे गए असहिष्णु हिन्दू परिवारों के सम्बन्धी आज भी दीपावली नहीं मनाते तो क्या हुआ ? टीपू की जयंती तो मनाई ही जा रही है !
बाकि लोग कहते हैं की टीपू सुल्तान, सेक्युलर था, धर्मनिरपेक्ष था, इन्साफ पसंद था तो सही ही कहते होंगे ! 800 लोगों को कटवा देना कोई जुर्म थोड़ी ना है ?
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