आज महाराणा प्रताप की जन्म जयंती (9 May 1540 – 29 January 1597) है। इस देश के कांग्रेसी और वामपंथी इतिहासकारों से अच्छे तो विदेशी इतिहासकार कर्नल जेम्स टाड हैं, जिनके कारण हमें मेवाड़ का वास्तविक इतिहास का पता चलता है। अकबर ने 10 वर्ष लगाकर मेवाड़ के जीन क्षेत्रों को विजित किया था, महाराणा प्रताप ने अपने पुत्र अमर सिंह के साथ मिलकर केवल एक वर्ष में न केवल उन क्षेत्रों को जीत लिया, बल्कि उससे कहीं अधिक क्षेत्र अपने राज्य में मिला लिया, जो उन्हें राज्यारोहण के वक्त मिला था।
जेम्स टाड लिखते हैं, ''एक बेहद कम समय के अभियान में महाराणा ने सारा मेवाड़ पुन: प्राप्त कर लिया, सिवा चित्तौड़, अजमेर और मांडलगढ़ को छोड़कर। अकबर के सेनापति मानसिंह ने राणा प्रताप को चेतावनी दी थी कि तुम्हें 'संकट के दिन काटने पड़ेंगे'। महाराणा ने संकट के दिन काटे और जब वह वापस लौटे तो प्रतिउत्तर में और भी उत्साह से मानसिंह के ही राज्य आंबेर पर हमला कर दिया और उसकी मुख्य व्यापारिक मंडी मालपुरा को लूट लिया।''
'मेवाड़ के महाराणा और शहंशाह अकबर' पुस्तक के लेखक राजेंद्र शंकर भटट ने लिखा है, ''हल्दीघाटी के बाद प्रताप ने चांवड को मेवाड़ की नयी राजधानी बनायी और यहां बैठकर अपने सैनिक व शासन व्यवस्था को सुदृढ किया। प्रताप का पहला कर्त्तव्य मुगलों से अपने राज्य को मुक्त कराना था, लेकिन यह इतनी जल्दी नहीं हो सकता था। उसने साल-डेढ साल तक जन-धन, आवश्यक साधन व संगठन का प्रबंध किया और मुगल साम्राज्य पर चढ़ाई कर दिया। अपने पुत्र अमर सिंह के नेतृत्व में उसने दो सेनाएं संगठित कीं और दोनों दिशाओं से मुगलों के अधिकृत क्षेत्र पर आक्रमण कर दिया। शाही थाने और चौकियां एक एक कर मेवाड़ी सैनिकों के कब्जे में तेजी से आते गए। अमरसिंह तो इतनी तीव्रता से बढ रहा था कि एक दिन में पांच मुगल थाने उसने जीत लिए। एक वर्ष के भीतर लगभग 36 थाने खाली करा लिए गए, मेवाड़ की राजधानियां उदयपुर तथा गोगूंदा, हल्दीघाटी का संरक्षण करनेन वाला मोही और दिवेर के पास की सीमा पर पडने वाला भदारिया आदि सब फिर से प्रताप के कब्जे में आ गए। उत्तर पूर्प में जहाजपुरा परगना तक की जगह और चितौड से पूर्व का पहाडी क्षेत्र भी मुगलों से खाली करवा लिया गया। सिर्फ चितौड तथा मांडलगढ और उनको अजमेर से जोडने वाला मार्ग ही मुगलों के हाथ में बचा, अन्यथा सारा मेवाड फिर से स्वतंत्र हो गया।''
वह लिखते हैं, '' जो सफलता अकबर ने इतना समय और साधन लगाकर प्राप्त की थी, जिस पर उसने अपनी और अपने प्रमुख सेनानियों की प्रतिष्ठा दाव पर लगा दी थी, उसे सिर्फ एक वर्ष में समाप्त कर प्रताप ने मित्र-शत्रु सबको आश्चर्य में डाल दिया।''
यहां यह जानने योग्य भी है कि अकबर ने जब चित्तौड को जीता था तब प्रताप के पिता महाराणा उदयसिंह मेवाड़ के राणा थे, न कि प्रताप। इस तरह से प्रताप ने अपने राज्यारोहण में प्राप्त भूमि से अधिक भूमि जीतकर अकबर को परास्त किया। प्रताप की इसी वीरता के कारण राजप्रशस्ति में 'रावल के समान पराक्रमी' कहा गया है।
मुझे आश्चर्य होता है कि अपनी मातृभूमि को मुगलों से बचा ले जाने वाला, अफगानिस्तान तक राज्य करने वाले अकबर को बुरी तरह से परास्त करने वाला महाराणा प्रताप आजादी के बाद कांग्रेसियों और वामपंथियों की लिखी पुस्तक में 'महान' और 'द ग्रेट' क्यों नहीं कहे गए। महाराणा प्रताप जैसों के वास्तविक इतिहास को दबाकर कांग्रेसी व वामपंथी इतिहासकारों ने यह तो दर्शा ही दिया है कि उन्होंने भारत का नहीं, बल्कि केवल शासकों का इतिहास लिखा है।
-संदीप देव
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