Sunday, October 2, 2011

लाल बहादुर शास्त्री और देश को उनका दिया गया योगदान


2 अक्टूबर के दिन भारत के दो महापुरुषों के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है | महात्मा गाँधी और लाल बहादुर शास्त्री दोनों भारत के दो महान सपूत जिन्होंने अपने कर्म से भारत को दुनिया के सामने और भी गौरवान्वित किया| लेकिन  दुःख इस बात का है की हमारे प्रधान मंत्री जो की एक महान और ईमानदार नेता और कुशल प्रशासक थे उनको एक दम से नजरंदाज कर देना कितनी दुखद बात है |
लालबहादुर शास्त्री (2 अक्तूबर, 1904 - 11 जनवरी, 1966),भारत के तीसरे और दूसरे स्थायी प्रधानमंत्री थे वह 1963-1965 के बीच भारत के प्रधान मन्त्री थे। उनका जन्म मुगलसराय, उत्तर प्रदेश मे हुआ था।
लालबहादुर शास्त्री का जन्म 1904 में मुगलसराय, उत्तर प्रदेश में लाल बहादुर श्रीवास्तव के रुप में हुआ था। उनके पिता शारदा प्रसाद एक गरीब शिक्षक थे, जो बाद में राजस्व कार्यालय में लिपिक (क्लर्क) बने।
भारत की स्वतंत्रता के पश्चात शास्त्रीजी को उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव के रुप में नियुक्त किया गया था। वो गोविंद बल्लभ पंत के मुख्यमंत्री के कार्यकाल में प्रहरी एवं यातायात मंत्री बने। यातायात मंत्री के समय में उन्होनें प्रथम बार किसी महिला को संवाहक (कंडक्टर) के पद में नियुक्त किया। प्रहरी विभाग के मंत्री होने के बाद उन्होने भीड़ को नियंत्रण में रखने के लिए लाठी के जगह पानी की बौछार का प्रयोग प्रारंभ कराया। 1951 में, जवाहर लाल नेहरु के नेतृत्व मे वह अखिल भारत काँग्रेस कमेटी के महासचिव नियुक्त किये गये। उन्होने 1952, 1957 1962 के चुनावों मे कांग्रेस पार्टी को भारी बहुमत से जिताने के लिए बहुत परिश्रम किया।
जवाहरलाल नेहरू का उनके प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान 27 मई, 1964 को देहावसान हो जाने के बाद, शास्त्री जी ने 9 जुन 1964 को प्रधान मंत्री का पद भार ग्रहण किया।
लालबहादुर शास्त्री का जीवन लखनऊ से दिल्ली तक काफी उथल-पुथल भरा रहा। आजादी के बाद उत्तर प्रदेश में गोविंदबल्लभ पंत जब मुख्यमंत्री बने तो लाल बहादुर शास्त्री को उत्तर प्रदेश का गृहमंत्री बना दिया गया। प्रयाग विश्वविद्यालय के गंगानाथ झा छात्रावास में नवंबर 1950 में एक आयोजन हुआ जिसमें लालबहादुरजी मुख्य अतिथि थे। नाटे कद कोमल स्वभाव वाले शास्त्री को देखकर किसी को कल्पना भी नहीं थी कि वह कभी भारत के दूसरे सबसे सफल प्रधानमंत्री बनेंगे। 1951 में बेंगलूरू में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन नेहरू ने संपूर्णानंद की सलाह पर जवाहर लाल नेहरू ने लालबहादुर शास्त्री को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का महामंत्री नियुक्त करा दिया, लेकिन लालबहादुर शास्त्री ने अनमने मन से ही पद ग्रहण किया। लालबहादुर शास्त्री ने महामंत्री पद तो ग्रहण कर लिया, परंतु सामने 1952 का प्रथम आम चुनाव एक बड़ी समस्या बन गया। नेहरू प्रधानमंत्री थे और उन्हीं की तरह लालबहादुर शास्त्री भी उच्च नैतिक मूल्यों वाले व्यक्ति थे। वह किसी उद्योगपति से धन मांगना नहीं चाहते थे।
दिखने में साधारण और छोटे शास्त्री जी एक विशुद्ध गाँधी वादी और सादगी से रहने वाले इंसान थे भारत के प्रधान मंत्री होते हुए भी उन्होंने कोई घर नहीं ख़रीदा था, 1965 का वो दिन जब पाकिस्तान ने अचानक ही भारत पर सायं 7.30 बजे हवाई हमला कर दिया और उसके बाद तीनो सेनाओ के प्रमुखों के साथ बैठक में साफ साफ कह दिया की जो आपलोगों को करना है कीजिये और बताइए मैं आपलोगों के लिए क्या कर सकता हु और उसके बाद इतिहास गवाह है की इतना मुह तोड़  जवाब पाकिस्तान को शायद ही कभी मिला हो रात को 11 बजे 350 लड़ाकू जहाजो के काफिले ने कराची से लेकर पेशावर तक पाकिस्तान को ध्वस्त कर दिया और ऐसा गहरा जख्म दिया  जिसे वो भूल नहीं पाए और उसके बाद शुरू हुआ अमेरिका का गन्दा खेल उसने धमकी दी की वो गेंहू की खेप रोक दी जाएगी  जो की उन दिनों हम अमेरिका से मंगाते थे लेकिन शास्त्री जी ने साफ साफ बोल दिया की हम आपके बहकावे में नहीं आयेंगे और कहा की हम आधी पेट खा कर भी ये युद्ध लड़ेंगे और पुरे देश में बहुत सारे लोगो ने जिन्होंने उनका अनुसरण किया और तब तो और भी हद हो गयी जब अमेरिका ने अपना युद्ध पोत लाकर अरब सागर में खड़ा कर दिया मानसिक दबाव के लिए लेकिन शास्त्री जी इन सब से बगैर बिचलित हुए अपना रुख जरी रखा और लगे हाथ चीन ने भी धमकी दे दी की भारत अपने कुछ हथियारका उपयोग चीन के क्षेत्र में भी कर रहा है लेकिन चीन को भी वैसा ही जवाब मिला जैसा की अमेरिका को मिला था और  शास्त्रीजी ने इस युद्ध में पं. नेहरू के मुकाबले राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और जय जवान-जय किसान का नारा दिया। इससे भारत की जनता का मनोबल बढ़ा और सब एकजुट हो गए। इसकी कल्पना पाकिस्तान ने कभी नहीं की थी। क्या अब के नेताओ में ऐसी मानसिक मजबूती है ? जिनके लिए रणनीति का मतलब बस अपने विपक्ष के नेताओ के खिलाफ ही बनाना है वो क्या कभी ऐसा कठोर कदम और मानसिक दृढ़ता दिखा पाएंगे ?
जनवरी 11 को भारत और पाकिस्तान के बीच समझौते के लिए उस समय के संगठित रूस और आज के उज्बेकिस्तान के शहर ताशकंद शास्त्री जी गए हुए थे और अगले ही दिन दिल का दौरा पड़ने के चलते उनका निधन हो गया वो भारत के पहले प्रधान मंत्री है जिनका निधन कार्यकाल में हुआ | उनकी मौत को लेके अभी भी रहस्य ही है जैसा की उनकी पत्नी ने दावा किया था की उनको जहर दिया गया है और बाद में रूस के एक खुफिया संस्था ने भी ये दावा किया  उन्हें जहर दिया गया है|
शास्त्रीजी
को उनकी सादगी, देशभक्ति और इमानदारी के लिये पूरा भारत श्रद्धापूर्वक याद करता है। उन्हे वर्ष 1966 मे भारत रत्न से सम्मनित किया गया। उनके याद में दिल्ली में एक स्मारक बनाया गया है जिसका नाम विजय घाट है
2005 में भारत सरकार ने उनके सम्मान में लोकतंत्र और शासन नाम का एक कुर्सी की निर्माण दिल्ली विश्वविद्यालय में किया |
--अक्षय कुमार ओझा (akshaykumar.ojha@gmail.com)

Tuesday, August 30, 2011

भाषा की मर्यादा और हमारे राजनेता


आजकल हमारे संसद के माननीय लोग किरण बेदी और ओम पुरी के पीछे हाथ धो के पड़ गए है | माननीयो का कहना है की न सिर्फ किरण बेदी और ओम पुरी  खिलाफ विशेषाधिकार हनन नोटिस दिया जाये  बल्कि उन्हें जेल भी हो | लेकिन हमारे कई ऐसे मंत्री है जिन्होंने खुल्लेआम बाबा रामदेव को ठग, चोर और अन्ना जी को मदारी और ब्लैकमेलर कहा तो क्या हमारी संसद इनके खिलाफ भी कोई नोटिस देगी ?
जब हमारे मंत्री महोदय जिनसे की अपेक्षा की जाती हैं की ये लोग पुरे संयमित रहेंगे और आदर्श व्यवहार करेंगे लेकिन आज कल ये लोग दुसरे को क्या बोलेंगे जब ये खुद ही मर्यादा भूल कर गली के टपोरियो की तरह व्यवहार करने लगते है, अभी ज्यादा पीछे जाये तो कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी को ही ले लीजिये, सता पक्ष के प्रवक्ता है इतनी बड़ी जिम्मेदारी है फिर भी अन्ना को लेके तू तू मैं मैं पर उतर गए थे | हालाँकि बाद में माफ़ी भी मांग ली पर पुरे एक सप्ताह बाद इनको अपनी गलती का अहसास हुआ और इन्होने माफ़ी मांगी | लेकिन ये बात संसद में नहीं गूंजी के एक गांधीवादी और  वृद्ध सामाजिक कार्यकर्त्ता जो की देशहित में शांतिपूर्वक आन्दोलन कर रहा था उसके खिलाफ ऐसे अपमानजनक भाषा का प्रयोग किया गया वो भी अगर कोई आम आदमी होता तो इसको नजरंदाज किया जा सकता था लेकिन देश के सबसे बड़े पार्टी के प्रवक्ता के मुह से ऐसे अल्फाज किसी को भी हजम नहीं हुआ था, और इसी पार्टी के तो सचिव महोदय दिग्विजय सिंह जी का तो इसमें कोई महारत हासिल है किसी को भी बुरा भला कह देना और आततायी बिन लादेन जो की धरती पर आतंक का दूसरा नाम था और कितनी इंसानी जिंदगियो को तबाह किया उसके लिए ओसामा जी जैसे संज्ञा प्रयोग करने वाले पर भी संसद और उसके माननीय सदस्य अगर चुप रहे तो क्या हम ये सोच ले की मंत्री और संसद सदस्यों को कुछ भी बोलने और करने की आजादी है और उनके खिलाफ कोई भी कुछ नहीं कर सकता या फिर हम ये सोचे की कांग्रेस ने खास कर ऐसे महानुभाओ को ऐसे ऐसे महान कार्य करने के लिए नियुक्त कर रखा है
अब आते है किरण बेदी जी और ओम पुरी जी पर तो अगर इन्होने किसी को गंवार यार अनपढ़ बोला है, "हमारा नेता चोर है" बोला है तो इसमें बुरा लगने वाली बात ही क्या हैअगर आप सच में अनपढ़ है और गंवार तो भी ये सच्चाई है और आप इसे स्वीकार कीजिये और अगर आप अनपढ़ और गंवार नहीं है तो फिर इसमें तमतमाने वाली क्या बात है, वहीं किरन बेदी ने नेताओं की नकल उतारते हुए कहा था कि वे मुखौटे पहनते हैं। तो इसमें गलत ही क्या बोला हैं, जैसे अन्ना प्रकरण पर सरकार ने पल पल रंग बदला है उसे देखते हुए तो यही बोलना उचित लगा था | इन तमाम नेताओ ने भी तो बाबा रामदेव को चोर, ठग और अन्ना जी को भी भ्रष्टाचारी बोला था तो किसी ने भी हाय तौबा नहीं मचाई थी तो फिर अब ये फिजूल का हल्ला क्यों ? क्या इससे  ये लोग ये लोग हल्ला करके क्या साबित करना चाह रहे है ? ये सब समझ के बहार है | इन माननीय संसद सदस्य पहले अपना व्यवहार और भाषा के देखे और आत्मचिंतन करे | आखिर आप बबूल का पेड़ लगा के आम की उम्मीद कैसे कर सकते हैं
-- अक्षय कुमार ओझा
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