Tuesday, November 24, 2015

सत्यमेव जयते के आमिर खान महिला मित्र पर डाला था भ्रूणहत्या का दबाव


#आमिर_खान #जेसिका_हाइंस #गर्भपात #बौद्धिक_जेहादी
जून 1998 में आमिर खान की एक फ़िल्म आई थी "गुलाम". फ़िल्म के सेट पर आमिर खान की मुलाक़ात "जेसिका हाइंस्" नाम की लेखिका से हुई.इसी महिला ने अमिताभ की बायोग्राफी भी लिखी थी। धीरे धीरे आमिर ने इस बिदेशी महिला को फ़िल्मी दुनिया का चकाचौध दिखाकर अपने ऐय्याशी के लिए प्रयोग करना शुरू कर दिया। उसके बाद आमिर ने जेसिका को प्यार के झांसे में फसा कर "लिव इन" व्यवस्था के अंतर्गत अपने वासना पूर्ति का स्थायी साधन बना लिया..समय बीतता गया और एक दिन जेसिका ने आमिर को बताया की वो गर्भवती है अर्थात आमिर खान के बच्चे की माँ बनने वाली है और आमिर से विवाह का प्रस्ताव रक्खा तो आमिर ने सबसे पहले उस महिला पर "एबॉर्शन" यानि गर्भपात कराने का दबाव बनाया मगर जब उस महिला ने बच्चे की "भ्रूणहत्या" करने से मना कर दिया तो आमिर को गर्भवती महिला के साथ रहने और उसे स्वीकारने में अपनी अय्याशी में खलल पड़ता दिखा तो उसने महिला को पहले किसी बहाने लन्दन भेजा फिर इण्डिया से खबर भिजवा दी की या तो बच्चे की "भ्रूणहत्या" करो या सारे सम्बन्ध भूल जाओ. उस महिला ने उस बच्चे को जन्म देने का निर्णय लिया और आमिर और जेसिका हाइंस के अवैध सम्बन्ध का परिणाम के रूप में एक बालक का जन्म हुआ जिसका नाम "जान" है..

सन 2005 में जेसिका ने बच्चे को उसका हक़ दिलाने का प्रयास किया मामला टीवी मिडिया में छाया रहा मगर आमिर खान ने ऊपर तक पहुँच और पैसे के बल पर मामला दब गया और सलटा लिया गया..आज आमिर का वो लड़का लगभग 12 साल का है और मॉडलिंग करता है..
मैंने जेहादी आमिर का "सत्यमेव जयते" आज तक नहीं देखा मगर इसने भ्रूणहत्या पर जरूर कार्यक्रम किया होगा ऐसी आशा है..आखिर ऐसी दोगलपंथी की अपने बच्चे तक को न स्वीकारो??? आज आमिर को भारत में #असहिष्णुता दिख रही है क्या अपने बच्चे को माँ के पेट में ही मारने का कुत्सित प्रयास सहिष्णुता माना जाये..ये तो एक केस है ऐसे पता नहीं कितने "जान" आमिर की ऐय्याशी के कारण विश्व के किसी कोने में किराए के बाप की तलाश में होंगे। इसी आमिर खान ने अपने बड़े मानसिक रूप से अस्वस्थ भाई और अभिनेता "फैजल खान" को आमिर ने अपने घर में जबरिया बंधक बना के रक्खा था और आमिर के पिता के कोर्ट जाने के बाद कोर्ट के आदेश पर आमिर के पिता को फैजल खान की कस्टडी मिली..
खैर ये तो है इस जेहादी अभिनेता का चरित्र जिसे हम और आप "मिस्टर परफेक्ट" और फलाना ढिमका कहते हैं। सरकारो की मजबूरी होती है इस प्रकार के प्रसिद्ध लोगो को ढोना सर पर बैठाना क्योंकि करोडो युवा ऐसे नचनियों को आदर्श बना बैठे हैं...मगर इसके पीछे हम और आप है जो इनकी फिल्मो को हिट कराते हैं ये अरबो कमा कर भी #भारत_माता का खुलेआम #अपमान करके पुरे देश को विश्व में बदनाम करते हैं.
आइये आमिर और शाहरुख़ से ही शुरुवात करें की इन नचनियों की फ़िल्म नहीं देखेंगे। अगर इन के नाच गाने पर फिर भी किसी का दिल आ गया है तो जल्द से जल्द इसकी हर रिलीज होने वाली फ़िल्म की CD को इंटरनेट मार्केट में डाल दें जिससे इन जेहादियों को मिलने वाली रेवेन्यू पर रोक लगे...

आशुतोष की कलम से

यूरोप ने हजारों पाकिस्तानियों को देश छोड़ने को कहा

यूरोप हजारों पाकिस्तानी प्रवासियों को अपने देशों से निकालने की योजना बना रहा है। सोमवार को एक सीनियर रायनयिक ने कहा कि ऐसा वैध शरणार्थियों को जगह और संसाधन देने के लिए किया जा रहा है। पलायन, होम अफेयर्स और नागरिकता से जुड़े यूरोपीयन कमिश्नर दिमित्रीज अवरामोपॉलस ने पाकिस्तान दौरे में शरणार्थियों के संकट पर यह बात कही। हालांकि हाल में सीरियाई और अफगानी शरणार्थी बड़ी संख्या में यूरोप पहुंचे हैं। पाकिस्तानी भी यूरोप में शरण चाहते हैं। उन्होंने कहा कि शरणार्थियों के कारण यूरोप में तनाव की स्थिति है। दिमित्री ने कहा कि इस साल 760,000 प्रवासी यूरोप पहुंचे हैं।

हालांकि पाकिस्तान अपेक्षाकृत इस्लामिक आतंकवाद के मामले में थोड़ा स्थिर है। आधिकारिक रूप से बताया गया है कि 20 पर्सेंट से कम पाकिस्तानियों को यूरोप में शरण मिली हुई है। बताया जा रहा है कि ये सभी अवैध रूप से यहां पहुंचे हैं। दिमित्री ने कहा कि पाकिस्तानी राजनीतिक शरणार्थी के योग्य नहीं हैं। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में लोकतांत्रिक प्रक्रिया जारी है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान वैसा देश नहीं है जहां नागरिकों को प्रताड़ित किया जा रहा है। पाकिस्तान में विकास के काम हुए हैं।


यहां तक कि इस साल शरणार्थी संकट के कारण करीब 168,000 अवैध पाकिस्तानी प्रवासियों को 28 देशों वाला यूरोपीय यूनियन ने निकल जाने का आदेश दिया था। ये सभी 2008 से 2004 के बीच आए थे। लेकिन फ्लाइट्स के अभाव और नौकरशाही देरी के कारण केवल 55,750 पाकिस्तानियों को ही यूरोप से निकाला जा सका। दिमित्री की यात्रा से पहले पाकिस्तानियों को स्वदेश भेजने में काफी दिक्कतों का साामना करना पड़ा रहा था। पिछले हफ्ते पाकिस्तानी गृह मंत्री ने कहा था कि पाकिस्तानी एयरलाइंस लंबे समय तक लोगों को वापस लाने में सक्षम नहीं है।

अन्य शिकायतों के अलावा पाकिस्तानी गृह मंत्री चौधरी अली खान निसार ने कहा कि यूरोपीय यूनियन के देश उन लोगों की राष्ट्रीयता नहीं बता रहे जिन्हें भेजा जा चुका है। खान इसलिए भी नाराज हैं क्योंकि कुछ वैसे पाकिस्तानियों को भी गलत तरीके से आतंकियों से संबंध को लेकर संदिग्ध बता पाकिस्तान भेज दिया गया। उन्होंने शनिवार को कहा कि यह पाकिस्तानियों और मानवता को अपमानित करने जैसा है। खान ने कहा कि प्रवासियों को उनके गृह देश के बजाय पाकिस्तान भेजा जा रहा है।

खान ने कहा कि हम पाकिस्तानी नागरिक के नाम पर अफगानी, बांग्लादेशी, बर्मन और भारतीयों को स्वीकार नहीं करेंगे। खान ने कहा कि इन्होंने रिश्वत देकर फर्जी दस्तावेज बनाए हैं। लेकिन दिमित्री ने अपनी पाकिस्तान यात्रा के दौरान खान के साथ भी बैठक की। इसके बाद से दोनों देशों की बीच एक किस्म की सहमति बनी है। दोनों पक्ष पाकिस्तानी नागरिक की वापसी पर सहमत हो गए हैं।

हालांकि यूरोपीय यूनियन के अधिकारी दोनों नेताओं के बीच बनी सहमति से बहुत खुश नहीं हैं क्योंकि यह समझौता वैध पाकिस्तानी प्रवासियों पर लागू नहीं होगा। यूरोपीयन देशों ने स्वीकार किया है कि 50,000 पाकिस्तानियों के हर साल परिवार वालों से मिलने, गेस्ट वर्कर प्रोग्राम्स, उच्च शिक्षा और अन्य तरह के अनुरोध आते हैं। दिमित्री ने कहा कि अब इस तरह के आवेदन पाकिस्तान में होने चाहिए।

Thursday, November 12, 2015

टीपू सुल्तान, सेक्युलर था, धर्मनिरपेक्ष था, इन्साफ पसंद था तो सही ही कहते होंगे ! 800 लोगों को कटवा देना कोई जुर्म थोड़ी ना है ?

तिरुपति से मेल्कोट आकर कई आयंगर ब्राह्मण बरसों पहले बसे थे | इस इलाके को आज मांड्या जिले में माना जाता है | एक ही परिवार के थे तो सबका गोत्र भी एक ही था – भारद्वाज | गोत्र और मूल ब्राह्मणों में एक ही परिवार के अलग अलग जगह बसे सदस्यों को पहचानने का तरीका भी रहा है | इनकी तमिल भी थोड़ी सी अलग होती है, इसे मंडयम तमिल कहते हैं |

टीपू सुलतान के एक मंत्री शमैयाह आयंगर इसी इलाके के मंडयम आयंगर थे | कहीं से टीपू सुलतान को उनके वोडेयर रानी लक्ष्माम्मानी से मिलने की खबर मिली | खबर की जांच करना टीपू सुलतान ने जरूरी नहीं समझा | तीसरे अँगरेज़ – मैसूर युद्ध की शर्तो से भड़के हुए टीपू सुलतान ने इलाके को जा घेरा |
मांडयम आयंगर उस समय नरका चतुर्दशी के बाद त्योहारों की तैयारी में लगे थे | गाँव के आठ सौ लोग बिना सवाल के काट दिए गए |

तब से आज करीब दो ढाई सौ साल बाद भी ये मांडयम आयंगर नरका चतुर्दशी के बाद त्यौहार रोक देते हैं | बरसों से इन घरों में कोई दीवाली नहीं हुई |
सेक्युलर परंपरा को ध्यान में रखते हुए हमारे इतिहासकार मानते रहे कि रानियाँ तो होती नहीं थी भारतीय इतिहास में ! इसलिए अपने पति की मृत्यु के बाद टीपू सुलतान के आस पास के इलाके में राज्य विस्तार की प्यास के वाबजूद अपने बेटे को राजगद्दी तक पहुँचाने वाली कोई होगी नहीं | बीच के इतने समय कोई वोडेयर रानी लक्ष्माम्मानी तो गद्दी संभालेगी नहीं न ?
और फिर सेक्युलर टीपू के मारे गए असहिष्णु हिन्दू परिवारों के सम्बन्धी आज भी दीपावली नहीं मनाते तो क्या हुआ ? टीपू की जयंती तो मनाई ही जा रही है !
बाकि लोग कहते हैं की टीपू सुल्तान, सेक्युलर था, धर्मनिरपेक्ष था, इन्साफ पसंद था तो सही ही कहते होंगे ! 800 लोगों को कटवा देना कोई जुर्म थोड़ी ना है ?

लाल झंडे के सिपाहियों जरा इस मुद्दे पर भी गौर फरमा लो

जब भारत का बंटवारा होकर पकिस्तान बना तो भारत में कई हिन्दू शरणार्थी भी आने लगे. शुरू में आने वाले अमीर लोग थे, उन्होंने अपने लिए घर का रोज़गार का इंतजाम कर लिया.

धीरे धीरे बाकी बचे उन लोगों को भी समझ आने लगा जो पकिस्तान को अपना घर मानकर रुक गए थे. गरीबी से त्रस्त लोगों को जब शोषण झेलना पड़ा तो धीरे धीरे उन्होंने भी भारत में आना शुरू किया.

इन्हें बसने के लिए जगह देना एक समस्या थी. तो इन्हें लेकर बसाया गया दंडकारण्य में.  जी हाँ, वही जगह जिसका जिक्र आपने रामायण में सुना/ पढ़ा/ देखा होगा. बरसों तक ये शरणार्थी वहीँ रहते रहे. फिर एक दिन विपक्ष के एक नेता ज्योति बसु ने चिट्ठी लिखी कि ये शरणार्थी बंगाली हैं. इन्हें हम बंगाल में जगह देंगे.

बाद में जब पश्चिम बंगाल में वामपंथी सरकार आई तो मार्क्सिस्ट फॉरवर्ड ब्लाक के एक मंत्री राम चटर्जी दंडकारण्य के इन शरणार्थी शिविरों का हाल देखने गए. उन शरणार्थियों को अपने घर लौट आने का निवेदन भी किया.

तो इस तरह 1978 में बड़ी संख्या में शरणार्थी बंगाल आने लगे थे. लेकिन तब तक वामपंथी लेफ्ट फ्रंट अपनी सरकार बना चुकी थी, और उनका कहना था कि शरणार्थी तो भारत के हैं! बंगाल के थोड़ी न हैं शरणार्थी!

बंगाल में नामशुद्र के परिचय से पहचाने जाने वाली तथाकथित छोटी जाति के इन शरणार्थियों के लिए अब भयानक समस्या हो गई. अपने शिविर वो छोड़ आये थे और यहाँ रहने खाने का कोई ठिकाना नहीं. दंडकारण्य से आये करीब 1,50,000 (डेढ़ लाख) लोगों को जबरन वापिस भेजा जाने लगा.

इनमे से करीब 40,000 शरणार्थियों को हसनाबाद, मारिचझापी में जगह दी गई थी. ये इलाका सरकारी संरक्षित वन है. यहाँ सुंदरबन के बाघों को रहने की जगह दी गई है, हिन्दू शरणार्थियों का वहां क्या काम? तो इस तरह 24 जनवरी, 1979 को इस इलाके में आर्थिक प्रतिबन्ध लगा दिए गए.

पश्चिम बंगाल की पुलिस स्थानीय प्रशासन की मदद में उतरी. तीस (30) मोटरबोट, लांच और नाव इस इलाके में गश्त पर जुट गए. वामपंथी सरकार ने इलाके का पानी और खाना रोक दिया.

कर्बला जैसी किसी जगह की याद आ रही हो तो जरा थामिए अपनी भावनाओं को! 31 जनवरी को भूखे लोगों पर वामपंथी पुलिस ने गोलियां भी चलाई थी. पंद्रह दिन बाद कलकात्ता के हाई कोर्ट का फरमान आया, लोगों को पानी, डॉक्टर और खाने जैसी जरुरी सुविधाओं से वंचित ना किया जाये.

आर्थिक प्रतिबंधों में नाकाम होने पर लेफ्ट फ्रंट की सरकार ने लोगों को मई में जबरन निकालने की कोशिश शुरू की. इस कैंप का नाम शरणार्थियों ने नेताजी नगर रखा था. इलाके से मीडियाकर्मियों को बाहर कर दिया गया और पुलिस बल की कार्रवाई शुरू हुई.

40,000 लोगों में जो बचे, उनमे से कुछ को बारासात के शिविर में रखा गया था, कुछ सियालदाह के रेलवे पटरी के पास जा बसे, कुछ हिंगलगंज, और कुछ कैनिंग के शिविरों में.

हिन्दुस्तान टाइम्स जैसे अखबार गिनती 1000 तक बताते हैं. लेफ्ट फ्रंट ने कितनो को मरवाया ये अज्ञात है. मगर लाल झंडे के रंग में खून कम तो नहीं लगा होगा!

-आनंद कुमार की फेसबुक पोस्ट

Saturday, November 7, 2015

देशद्रोही ताकतों के हाथो बिका हुआ है मोदी पर इल्जाम लगाने वाला रिटायर आईपीएस आरबी श्रीकुमार



जिस आईपीएस अधिकारी आरबी श्रीकुमार ने प्रख्यात वैज्ञानिक नम्बी नारायणन को 1994 के इसरो जासूसी कांड में झूठे फंसाकर देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम को धक्का पंहुचाया था, वही बाद में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली गुजरात सरकार के विरूद्ध मुहिम चला रही तीस्ता सेतलवाड जैसे राष्ट्र-विरोधी तत्वों से मिल गया है।

'गुजरात के पूर्व डीजीपी और गुजरात सरकार के खिलाफ दंगों और मुठभेड़ को उठाने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता के साथ जुड़े आरबी श्रीकुमार ने देशभक्त वैज्ञानिक नम्बी नारायण को एक सौदागर के रूप में बदनाम करने की कथित साजिश की और उनके विरूद्ध मामला बनाया। देश के हितों को नुकसान पहुंचाने वाले उनके इस जघन्य अपराध के बावजूद संप्रग सरकार ने उसके विरूद्ध अधिकांश आरोप वापस ले लिए।' नारायण ने 1970 के दशक की शुरुआत में भारत के लिक्विड फ्यूल टेक्नोलाजी की शुरुआत की जब पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम वैज्ञानिक थे और उनकी टीम सालिड मोटर्स पर काम कर रही थी। पोलर सेटेलाइट लांच व्हीकल में भी उनका योगदान है जिसकी बदौलत 2008 में चंद्रयान-1 भेजा गया।

                 तीस्ता सेतलवाड जैसे राष्ट्र-विरोधी  के  साथ पूर्व  आईपीएस अधिकारी आरबी श्रीकुमार

लेकिन दुर्भाग्यवश इसरो जासूसी मामले ने एक प्रतिभाशाली राकेट वैज्ञानिक का पूरा करियर खत्म कर दिया और इसका देश को नुकसान उठाना पड़ा। बाद में नारायणन को निर्दोष पाया गया। दिलचस्प बात यह है कि 2004 में ही साफ हो गया था कि कुछ लोगों के इशारे पर इसरो जासूसी मामले को मनगढंत बनाकर पेश किया गया है और इस तरह की शत्रुता इसरो और भारत के लिए हानिकारक है। इस मामले में धूर्तता करने वाला और कोई नहीं बल्कि एक ही व्यक्ति, श्रीकुमार है।'

लेकिन 2004 में संप्रग के सत्ता में आने पर चीजों ने पलटा खाया और श्रीकुमार को क्लीन चिट दे दी गई। गृह मंत्रालय ने एक आदेश जारी किया और बिना जांच के ही 9 में से 7 आरोप वापस ले लिए गए। बदले में श्रीकुमार से उम्मीद की गई कि वह राजनीतिक कारणों से गुजरात में भाजपा सरकार के खिलाफ झूठ और असत्य से भरे आक्षेप लगाएं। स्पष्ट रूप से श्रीकुमार को अपने राजनीतिक वादियों से निपटाने का काम दिया गया और वह आज भी उसे कर रहे हैं।' उनके अनुसार श्रीकुमार ने 4 नवंबर 2010 में तीस्ता सीतलवाड़ के पूर्व सहायक रईस खान के साथ बातचीत में स्वीकार किया कि जब मेरे खिलाफ आरोपपत्र दायर हुए तो तीस्ता ने मेरी मदद की।

1994 के दौरान श्रीकुमार तिरूअनंतपुरम में एसआईबी उप निदेशक थे और उन्हें इसरो जासूसी मामले की जांच सौपी गई। श्रीकुमार ने ना केवल नारायणन को सौदागर के रूप में बदनाम किया बल्कि उनका शारीरिक उत्पीड़न भी करने सहित उनके साथ दुव्र्यवहार किया। श्रीकुमार के इस आचरण पर 1999 में भारत सरकार ने उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की। उनके विरूद्ध चार्जशीट में कहा गया कि श्रीकुमार ने कानूनी औपचारिकताएं पूरी किए बिना केरल पुलिस की हिरासत से आरोपी व्यक्ति को अपने कब्जे में लिया और राज्य पुलिस को अलग करके स्वतंत्र जांच की। इसमैं यह भी कहा गया कि जासूसी कांड मामले में श्रीकुमार को यह बात पूरी तरह से पता थी कि उनकी टीम द्वारा तैयार रिपोर्ट विरोधाभास से भरी है। बाद में नारायणन सहित सभी आरोपी आरोपों मुक्त हो गए और 2001 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने नम्बी नारायणन को 10 लाख रूपए का अंतरिम मुआवजा देने का आदेश दिया।
- Jitendra Pratap Singh