Monday, August 31, 2015

राजपूत किरण देवी से अकबर ने मांगी थी अपने प्राणों की भीख !!

राजस्थान वीरों ओर योद्धाओं की धरती है। यहां के रेतीले धोरों का वीरता और शौर्य से बहुत पुराना रिश्ता रहा है। इतिहास आज भी ऐसे वीरों और वीरांगनाओं की कहानी कहता है जिनके त्याग और बलिदान ने इस धरा की शान बढ़ाई।
ऐसी ही प्राचीन कहानियों में एक वीरांगना किरण देवी का जिक्र आता है। कहते हैं कि उसने शहंशाह अकबर को झुकने के लिए मजबूर कर दिया था। अकबर ने किरण देवी से प्राणों की भीख मांगी थी।
मर्दानी किरणदेवी और महाविलासी अकबर की दास्तां फरहाना ताज अकबर प्रतिवर्ष नौरोज के मेले का आयोजन करता था, जिसमें वह सुंदर युवतियों को खोजता था, और उनसे अपने शरीर की भूख शांत करता है।

एक बार अकबर नौरोज के मेले में बुरका पहनकर सुंदर स्त्रियों की खोज कर ही रहा था, कि उसकी नजर मेले में घूम रही किरणदेवी पर जा पड़ी। वह किरणदेवी के रमणीय रूप पर मोहित हो गया। किरणदेवी मेवाड़ के महाराणा प्रतापसिंह के छोटे भाई शक्तिसिंह की पुत्री थी और उसका विवाह बीकानेर के प्रसिद्ध राजपूत वंश में उत्पन्न पृथ्वीराज राठौर के साथ हुआ था। अकबर ने बाद में किरणदेवी का पता लगा लिया कि यह तो तुम्हारे ही गुलाम की बीबी है, तो उसने पृथ्वीराज राठौर को जंग पर भेज दिया और किरण देवी को अपनी दूतियों के द्वारा बहाने से महल में आने का निमंत्रण दिया। अब किरणदेवी पहुंची अकबर के महल में, तो स्वागत तो होना ही था और इन शब्दो में हुआ, ‘‘हम तुम्हें अपनी बेगम नाना चाहते हैं।’’ कहता हुआ अकबर आगे बढ़ा, तो किरणदेवी पीछे को हटी...अकबर आगे बढ़ते गया और किरणदेवी उल्टे पांव पीछे हटती गयी...लेकिन कब तक हटती बेचारी पीछे को...उसकी कमर दीवार से जा ली।
‘‘बचकर कहाँ जाओगी,’’ अकबर मुस्कुराया, ‘‘ऐसा मौका फिर कब मिलेगा, तुम्हारी जगह पृथ्वीराज के झोंपड़ा में नहीं हमारा ही महल में है’’
‘‘हे भगवान, ’’ किरणदेवी ने मन-ही-मन में सोचा, ‘‘इस राक्षस से अपनी इज्जत आबरू कैसे बचाउ?’’
‘‘हे धरती माता, किसी म्लेच्छ के हाथों अपवित्र होने से पहले मुझे सीता की तरह अपनी गोद में ले लो।’’ व्यथा से कहते हुए उसकी आँखों से अश्रूधारा बहने लगी और निसहाय बनी धरती की ओर देखने लगी, तभी उसकी नजर कालीन पर पड़ी। उसने कालीन का किनारा पकड़कर उसे जोरदार झटका दिया। उसके ऐसा करते ही अकबर जो कालीन पर चल रहा था, पैर उलझने पर वह पीछे को सरपट गिर पड़ गया, ‘‘या अल्लाह!’’
उसके इतना कहते ही किरणदेवी को संभलने का मौका मिल गया और वह उछलकर अकबर की छाती पर जा बैठी और अपनी आंगी से कटार निकालकर उसे अकबर की गर्दन पर रखकर बोली, ‘‘अब बोलो शहंशाह, तुम्हारी आखिरी इच्छा क्या है? किसी स्त्री से अपनी हवश मिटाने की या कुछ ओर?’’
एकांत महल में गर्दन से सटी कटार को और क्रोध में दहाडती किरणदेवी को देखकर अकबर भयभीत हो गया। एक कवि ने उस स्थिति का चित्र इन शब्दों में खींचा है:
सिंहनी-सी झपट, दपट चढ़ी छाती पर,
मानो शठ दानव पर दुर्गा तेजधारी है।
गर्जकर बोली दुष्ट! मीना के बाजार में मिस,
छीना अबलाओं का सतीत्व दुराचारी है।
अकबर! आज राजपूतानी से पाला पड़ा,
पाजी चालबाजी सब भूलती तिहारी है।
करले खुदा को याद भेजती यमालय को,
देख! यह प्यासी तेरे खून की कटारी है।
‘‘मुझे माफ कर दो दुर्गा माता,’’ मुगल सम्राट अकबर गिड़गिड़ाया, ‘‘तुम निश्चय ही दुर्गा हो, कोई साधारण नारी नहीं, मैं तुमसे प्राणों की भीख माँगता हूँ। यही मैं मर गया तो यह देश अनाथ हो जाएगा।’’
‘‘ओह!’’ किरणदेवी बोली, ‘‘देश अनाथ हो जाएगा, जब इस देश में म्लेच्छ आक्रांता नहीं आए थे, तब क्या इसके सिर पर किसी के आशीष का हाथ नहीं था?’’
‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं है,’’ अकबर फिर गिड़गिड़ाया, ‘‘पर आज देश की ऐसी स्थिति है कि मुझे कुछ हो गया तो यह बर्बाद हो जाएगा।’’
‘‘अरे मूर्ख देश को बर्बाद तो तुम कर रहे हो, तुम्हारे जाने से तो यह आबाद हो जाएगा। महाराणा जैसे बहुत हैं, अभी यहाँ स्वतंत्रता के उपासक।’’
‘‘हाँ हैं,’’ वह फिर बोला, ‘‘लेकिन आर्य कभी किसी का नमक खाकर नमक हरामी नहीं करते।’’
‘‘नमक हमारी,’’ किरणदेवी बोली, ‘‘तुम कहना क्या चाहते हो?’’
‘‘तुम्हारे पति ने रामायण पर हाथ रखकर मरते समय तक वफादारी का कसम खायी थी और तुमने भी प्रीतिभोज में मेरे यहाँ भोजन किया था, फिर यदि तुम मेरी हत्या कर दोगी तो क्या यह विश्वासघात या नमकहरामी नहीं होगी।’’
‘‘विश्वासघाती से विश्वासघात करना कोई अधर्म नहीं राजन,’’ किरणदेवी फिर गरजी, ‘‘तुम कौनसे दूध के धुले हो?’’
‘‘हाँ मैं दूध का धुला हुआ नहीं, पर मुझे क्षमा कर दो, हिन्दुओं के धर्म के दस लक्षणों मेें क्षमा भी एक है, इसलिए तुम्हें तुम्हारे धर्म की कसम, मुझे अपनी गौ समझकर क्षमा कर दो।’’
‘‘पापी अपनी तुलना हमारी पवित्र गौ से मत करो,’’ फिर वह थोड़ी सी नरम पड़ गयी, ‘‘यदि तुम आज अपनी मौत और मेरी कटारी के बीच में धर्म और गाय को नहीं लाते तो मैं सचमुच तुम्हें मारकर धरती का भार हल्का कर देती।’’ फिर चेतावनी देते हुए बोली, ‘‘आज भले ही सारा भारत तुम्हारे पांवों पर शीश झुकाता हो? किंतु मेवाड़ का सिसोदिया वंश आज भी अपना सिर उचा किए खड़ा है। मैं उसी राजवंश की कन्या हूँ। मेरी धमनियों में बप्पा रावल और राणा सांगा का रक्त बह रहा है। हम राजपूत रमणियाँ अपने प्राणों से अधिक अपनी मर्यादा को मानती हैं और उसके लिए मर भी सकती हैं और मार भी सकती हैं। यदि तु आज बचना चाहता है तो अपनी माँ और कुरान की सच्ची कसम खाकर प्रतिज्ञा कर कि आगे से नौरोज मेला नहीं लगाएगा और किसी महिला की इज्जत नहीं लूटेगा। यदि तुझे यह स्वीकार नहीं है, तो मैं अभी तेरे प्राण ले लूंगी, भले ही तूने हिन्दू धर्म और गौ की दुहाई दी हो। मुझे अपनी मृत्यु का भय नहीं है।’’
अकबर को वास्तव में अनुभव हुआ कि तू मृत्यु के पाश में जकड़ा जा चुका है। जीवन और मौत का फासला मिट गया था। उसने माँ की कसम खाकर किरणदेवी की बात को माँ लिया, ‘‘मुझे मेरी माँ की सौगंध, मैं आज से संसार की सब स्त्राी जाति को अपनी बेटी समझूँगा और किसी भी स्त्राी के सामने आते ही मेरा सिर झुका जाएगा, भले ही कोई नवजात कन्या भी हो और कुरान-ए-पाक की कसम खाकर कहता हूँ कि आज ही नौरोज मेला बंद कराने का फरमान जारी कर दूँगा।’’
वीर पतिव्रता किरणदेवी ने दया करके अकबर को छोड़ दिया और तुरन्त अपने महल में लौट आयी। इस प्रकार एक पतिव्रता और साहसी महिला ने प्राणों की बाजी लगाकर न केवल अपनी इज्जत की रक्षा की, अपित भविष्य में नारियों को उसकी वासना का शिकार बनने से भी बचा लिया। और उसके बाद वास्तव में नौरोज मेला बंद हो गया। अकबर जैसे सम्राट को भी मेला बंद कर देने के लिए विवश कर देने वाली इस वीरांगना का साहस प्रशंसनीय है।

Sunday, August 23, 2015

जानिए बीर युवती बीना दास को जिसने गवर्नर मारने दुसाहस किया

वो 6 फरवरी 1932 का दिन था जब कलकत्ता विश्वविद्यालय के कनवोकेशन हाल में बैठे सैकड़ों लोग एक युवती द्वारा लगातार चलायी जा रही गोलियों से स्तब्ध रह गए, जिनका निशाना कोई और नहीं बल्कि बंगाल का तत्कालीन गवर्नर स्टेनले जैक्सन था| हालाँकि जैक्सन बच गया पर युवा लड़की के इस साहस ने पूरे ब्रिटिश साम्राज्य को थर्रा कर रख दिया| क्रान्तिकारी और राष्ट्रवादी विचारों से ओत प्रोत वो युवती थीं
बीना दास, जिनका 24 अगस्त को जन्म दिवस है|बंगाल के कृष्णानगर में 24 अगस्त 1911 को प्रसिद्द ब्रह्मसमाजी शिक्षक बेनी माधव दास और समाजसेविका सरला देवी के घर जन्मीं बीना दास अपने अध्ययनकाल में ही अंग्रेजों के खिलाफ निकाले जाने वाले विरोध मार्चों और रैलियों में बढ़ चढ़ कर भाग लेने लगी थीं, परन्तु शीघ्र ही उनके मन में ये भावना घर कर गयी कि सशस्त्र क्रान्ति ही अंग्रेजों के मन में भय उत्पन्न करने का एकमात्र मार्ग है| अपनी इसी सोच को साकार रूप देने के लिए वो कलकत्ता के क्रान्तिकारी समूह छात्र संघ में सक्रिय रूप से भाग लेने लगीं|अग्रेजों को सबक सिखाने की उनकी इच्छा शीघ्र ही पूरी हुयी जब उनके संगठन ने उन्हें बंगाल के क्रूर गवर्नर को कलकत्ता विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में मारने का काम सौंपा| सभागार में बैठे अनेकों स्नातकों में से एक बीना दास भी थी, जिन्होंने जैक्सन के अपने निकट पहुँचते ही उस पर एक के बाद एक 5 गोलियां दाग दीं | हालांकि दुर्भाग्य से जैक्सन बच गया और बीना दास को गिरफ्तार कर 9 वर्ष के कठोर कारावास की सजा दी गयी| 1939 में रिहाई के बाद भी बीना दास ने अंग्रेजों का विरोध जारी रखा और भारत छोडो आन्दोलन में भाग लेने की कारण फिर से 1942 से 1945 तक जेल यात्रा की और अनेकों कष्ट उठाये|बाद में उन्होंने प्रसिद्द क्रान्तिकारी संगठन युगांतर के सक्रिय सदस्य रहे जतीश चन्द्र भौमिक से विवाह कर लिया| पति की मृत्यु के बाद वो ऋषिकेश में एकाकी जीवन बिताने लगीं और वहीँ पर 26 दिसंबर 1986 को उनकी मृत्यु हो गयी| खेदजनक है कि 'दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग, बिना ढाल' जैसे तरानों में मस्त रहने वाले इस देश में किसी ने भी कभी इस क्रान्तिकारी के बारे में जानने की कोशिश नहीं की और अपनी युवावस्था देश के नाम करने वाली बीना दास गुमनामी के अंधेरों में रहते हुए ही इस नश्वर संसार को छोड़ गयीं| उनके जन्मदिवस पर कोटिशः नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि|

जानिए गंधासुर को जो भारत को बर्बाद कर के राष्ट्रपिता बन गया

शायद इतिहास में यही पढ़ाया जाता है कि गाँधीजी. . .आइये आज जानते है उनकी कुछ महानताए
@ महानता 1. . . . . .शहीद-ए-आजम भगतसिंह को फांसी दिए जाने पर अहिंसा के महान पुजारी गांधी ने कहा था. . .‘हमें ब्रिटेन के विनाश के बदले अपनी आजादी नहीं चाहिए।’’ और आगे कहा. . .‘‘भगतसिंह की पूजा से देश को बहुत हानि हुई और हो रही है वहीं (फांसी) इसका परिणाम गुंडागर्दी का पतन है। ऐसे बदमाशो को फांसी शीघ्र दे दी जाए ताकि 30 मार्च से करांची में होने वाले कांग्रेस अधिवेशन में कोई बाधा न आवे" ।
अर्थात् गांधी की परिभाषा में किसी को फांसी देना हिंसा नहीं थी ।
@ महानता 2 . . . . . . इसी प्रकार एक ओर महान्क्रा न्तिकारी जतिनदास को जब आगरा में अंग्रेजों ने शहीद किया तो गांधी आगरा में ही थे और जब गांधी को उनके पार्थिक शरीर पर माला चढ़ाने को कहा गया तो उन्होंने साफ इनकार कर दिया अर्थात् उस नौजवान द्वारा खुद को देश के लिए कुर्बान करने पर भी गांधी के दिल में किसी प्रकार की दया और सहानुभूति नहीं उपजी, ऐसे थे हमारे अहिंसावादी गांधी।
@ महानता 3 . . . . . जब सन् 1937 में कांग्रेस अध्यक्ष के लिए नेताजी सुभाष और गांधी द्वारा मनोनीत सीतारमैया के मध्य मुकाबला हुआ तो गांधी ने कहा. . .यदि रमैया चुनाव हार गया तो वे राजनीति छोड़ देंगेलेकिन उन्होंने अपने मरने तक राजनीति नहीं छोड़ी जबकि रमैया चुनाव हार गए थे।
@ महानता 4 . . . . . .इसी प्रकार गांधी ने कहा था. . . . .“पाकिस्तान उनकी लाश पर बनेगा” लेकिन पाकिस्तानउनके समर्थन से ही बना । ऐसे थे हमारे सत्यवादी गांधी ।
@ महानता 5 . . . . . . इससे भी बढ़कर गांधी और कांग्रेस ने दूसरे विश्वयुद्ध में अंग्रेजों का समर्थन किया तो फिर क्या लड़ाई में हिंसा थी या लड्डू बंट रहे थे ? पाठक स्वयं बतलाएं ?
@ महानता 6 . . . . . .गांधी ने अपने जीवन में तीन आन्दोलन (सत्याग्रह) चलाए और तीनों को ही बीच में वापिस ले लिया गया फिर भी लोग कहते हैं कि आजादी गांधी ने दिलवाई।
@ महानता 7 . . . . .इससे भी बढ़कर जब देश के महान सपूत उधमसिंह ने इंग्लैण्ड में माईकल डायर को मारा तो गांधी ने उन्हें पागल कहा इसलिए नीरद चौधरी ने गांधी को दुनियां का सबसे बड़ा सफल पाखण्डी लिखा है।
@ महानता 8 . . . . . इस आजादी के बारे में इतिहासकार CR मजूमदार लिखते हैं “भारत की आजादी का सेहरा गांधी के सिर बांधना सच्चाई से मजाक होगा।
यह कहना कि सत्याग्रह व चरखे से आजादी दिलाई बहुत बड़ी मूर्खता होगी।
इसलिए गांधी को आजादी का ‘हीरो’ कहना उन क्रान्तिकारियों का अपमान है जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना खून बहाया। ”यदि चरखों की आजादी की रक्षा सम्भव होती है तो बार्डर पर टैंकों की जगह चरखे क्यों नहीं रखवा दिए जाते. . . . . .?
अगर आप सहमत है तो इसकी सच्चाई "Share" कर देश के सामने पाखण्डी को उजागर करें।. . . . . .जय हिन्द. . . . .जय भारत
शहीदे आज़म भगत सिंह को फांसी कि सजा सुनाई जा चुकी थी, इसके कारण हुतात्मा चंद्रशेखर आज़ाद काफी परेशान और चिंतित हो गए।
भगत सिंह की फांसी को रोकने के लिए आज़ाद ने ब्रिटिश सरकार पर दवाब बनाने का फैसला लिया इसके लिए आज़ाद ने गांधी से मिलने का वक्त माँगा लेकिन गांधी ने कहा कि वो किसी भीउग्रवादी से नहीं मिल सकते।
गांधी जानते थे कि अगर भगतसिंह और आज़ाद जैसे क्रन्तिकारी और ज्यादा दिन जीवित रह गए तो वो युवाओं के हीरो बन जायेंगे। ऐसी स्थिति में गांधी को पूछनेवाला कोई ना रहता।
हमने आपको कई बार बताया है कि किस तरह गांधी ने भगत सिंह को मरवाने के लिए एक दिन पहले फांसी दिलवाई। खैर हम फिर से आज़ाद कि व्याख्या पर आते है। गांधी से वक्त ना मिल पाने का बाद आज़ाद ने नेहरू से मिलने का फैसला लिया , 27 फरवरी 1931 के दिन आज़ाद ने नेहरू से मुलाकात की।
ठीक इसी दिन आज़ाद ने नेहरू के सामने भगत सिंह की फांसी को रोकने की विनती की।
बैठक में आज़ाद ने पूरी तैयारी के साथ भगत सिंह को बचाने का सफल प्लान रख दिया।
जिसे देखकर नेहरू हक्का -बक्का रह गया क्यूंकि इस प्लान के तहत भगत सिंह को आसानी से बचाया जा सकता था।
नेहरू ने आज़ाद को मदद देने से साफ़ मना कर दिया इस पर आज़ाद नाराज हो गए और नेहरू से जोरदार बहस हो गई फिर आज़ाद नाराज होकर अपनी साइकिल पर सवार होकर अल्फ्रेड पार्क की होकर निकल गए।
पार्क में कुछ देर बैठने के बाद ही आज़ाद को पोलिस ने चारो तरफ से घेर लिया। पोलिस पूरी तैयारी के साथ आई थी जेसे उसे मालूम हो कि आज़ाद पार्क में ही मौजूद है।
@ आखरी साँस और आखरी गोली तक वो जाबांज अंग्रेजो के हाथ नहीं लगा ,आज़ाद की पिस्तौल में जब तक गोलियाँ बाकि थी तब तक कोई अंग्रेज उनके करीब नहीं आ सका।
आखिरकार आज़ाद जीवन भरा आज़ाद ही रहा और उस ने आज़ादी में ही वीरगति को प्राप्त किया।
अब अक्ल का अँधा भी समझ सकता है कि नेहरु के घर से बहस करके निकल कर पार्क में 15 मिनट अंदर भारी पोलिस बल आज़ाद को पकड़ने के लिए बिना नेहरू की गद्दारी के नहीं पहुँचा जा सकता था।
नेहरू ने पोलिस को खबर दी कि आज़ाद इस वक्त पार्क में है और कुछ देर वहीं रुकने वाला है। साथ ही कहा कि आज़ाद को जिन्दा पकड़ने की भूल ना करें नहीं तो भगतसिंह
की तरफ मामला बढ़ सकता है।
लेकिन फिर भी कांग्रेस कि सरकार ने नेहरू को किताबो में बच्चो का क्रन्तिकारी चाचा नेहरू बना दिया और आज भी किताबो में आज़ाद को "उग्रवादी" लिखा जाता है।
लेकिन आज सच को सामने लाकर उस जाँबाज को आखरी सलाम देना चाहते हो तो इस पोस्ट को शेयर करके सच्चाई को सभी के सामने लाने में मदद करें।
. . . . . . . . . . वन्दे मातरम |

Wednesday, August 19, 2015

यूपी में हैवानियत की हदें पार, रेप के बाद दलित लड़की की आंखें निकाली

अब राज्य के सत्ताधारी पार्टी के मुखिया जी जब रेप करने वालो के साथ होंगे वहा पर तो ऐसा होना आम बात ही है बात है राजधानी लखनऊ से सटे हरदोई जिले से दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है. हरदोई के सुरसा थाना क्षेत्र के फातियापुर इलाके में एक 13 साल की दलित लड़की के साथ रेप के बाद आरोपियों ने अपनी पहचान छुपाने के लिए उसकी आंखें निकल दी.


घटना बुधवार शाम की है जब नाबालिग लड़की अपने पिता के लिए दवा लेने गई थी. भूलवश वह दुकान पर ही दवा छोड़कर घर चली आई. जब परिवारवालों ने दवा मांगी तो उसने कहा कि दवा तो दुकान पर ही छूट गई. इसके बाद वह फिर से दवा लेने के बाजार गई लेकिन फिर वह लौट कर नहीं आई.

काफी देर तक जब लड़की घर नहीं लौटी तो परिवारवालों ने उसकी तलाश शुरू की. काफी देर तलाश करने के बाद भी जब लड़की नहीं मिली तो गांववालों ने आसपास भी उसकी तलाश शुरू की. इसके बाद लड़की का शव एक खेत में मिला. उसके शरीर पर कपड़े नहीं थे जबकि उसका चेहरा बुरी चाकुओं से गोदा गया था.
इतना ही नहीं बदमाशों ने अपनी पहचान छुपाने के लिए चाकुओं से उसकी आंखें निकाल ली थी. फिलहाल पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ रेप और हत्या का मामला दर्ज कर आरोपियों की तलाश में जुट गई है.

उत्तर प्रदेश में स्वतंत्रता दिवस के दिन ही हुआ राष्ट्रीय झंडे का अपमान


स्वतंत्रता दिवस पर जहां पूरा देश राष्ट्रीय ध्वज को नमन कर रहा था, वहीं उत्तर प्रदेश की दो बड़ी घटनाओं ने पूरे राष्ट्र को शर्मसार कर दिया। जिस वक्त लोग आजादी का जश्न मना रहे थे, गोरखपुर जिले के गोला में तिरंगे का अपमान करते हुए मुस्लिम युवक ने पाकिस्तानी झंडा फहरा दिया। पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। उधर शाहजहांपुर में सरकारी स्कूल के शिक्षक ने तिरंगे को नीचे उतार कर पैरों से रौंद कर अपमान किया। उसे निलंबित कर दिया गया है। अपमान का सिलसिला यहीं नहीं थमा। आन-बान-शान का प्रतीक राष्ट्र ध्वज कहीं उल्टा फहराया गया तो कहीं इसकी गरिमा को धूमिल किया गया। प्रतिबंध के बावजूद पालीथिन से बने ध्वज कई स्थानों पर अपमानजनक स्थिति में जमीन पर पड़े रहे।

गोरखपुर के गोला कस्बे में किराने की दुकान चलाने वाले अफरोज के फेसबुक पेज पर जमीन पर बिछे तिरंगे के ऊपर पाकिस्तान के झंडे की तस्वीर लगाने से स्थिति तनावपूर्ण हो गई। पुलिस ने आनन-फानन में अफरोज और उसके भाई को गिरफ्तार कर लिया। रविवार को दोनों को कोर्ट ने जेल भेज दिया। अफरोज ने 14 अगस्त की शाम यह तस्वीर पोस्ट की थी। उसने बताया कि तस्वीर गलती से छोटे भाई फिरोज ने पोस्ट की। भाई को किसी की वॉल पर यह तस्वीर दिख गई। उसे एडिट कर उसने पोस्ट कर दिया। इस तस्वीर में तिरंगा जमीन पर बिछा हुआ है। उसके ऊपर कुर्सीनुमा चबूतरा है। चबूतरे के ऊपर पाकिस्तानी झंडा फहराया गया है। अफरोज बीए तृतीय वर्ष का छात्र है, जबकि उसका भाई फिरोज छठवीं में पढ़ता है। पिता शौकत अली का कहना है कि मेरा पूरा परिवार दिल से हिन्दुस्तानी है। बेटे की नादानी ने मुझे शर्मसार कर दिया।

उधर महराजगंज के ब्लाक संसाधन केंद्र लक्ष्मीपुर पर स्वतंत्रता दिवस पर प्रशिक्षुओं द्वारा शिक्षक जावेद खान की पिटाई करने पर जमकर हंगामा हुआ। शिक्षक के किसी बात पर अमर्यादित भाषा का प्रयोग कर शिक्षक प्रशिक्षुओं के सभागार में बाहर से ताला बंद कर भाग गया। सभागार में बंद प्रशिक्षु खिड़की तोड़ कर बाहर आये और धरने पर बैठ गये। अफसरों ने शिक्षक पर मुकदमा दर्ज कराया और उसके निलंबन की संस्तुति कर मामला निपटाया।
शाहजहांपुर जिले में भावलखेड़ा ब्लाक के जूनियर हाईस्कूल चौड़ेरा में जूनियर हाईस्कूल सैजना के शिक्षक रामआसरे यादव ने आरोहण के बाद राष्ट्रीय ध्वज को जमीन पर फेंककर जूतों से रौंद दिया। इससे गुस्साये साथियों ने उसे पकडऩे का प्रयास किया, लेकिन वह साथी के साथ बाइक से भाग गया। बीएसए ने उसे तत्काल निलंबित कर कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। वह मूलरूप से आजमगढ़ जिले का है। स्कूल से जुड़े लोगों के मुताबिक वह मंदबुद्धि है और पूर्व में भीमराव अंबेडकर की फोटो फाड़ चुका है। कोतवाल एनडी पाठक ने उसके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करने से मना कर दिया।

आगरा के शिक्षा भवन में अफसरों ने उल्टा तिरंगा फहरा दिया। अधिकारी आधे घंटे तक उल्टे तिरंगे के नीचे शान से भाषण भी करते रहे। हापुड़ जिले में शहीदों की कर्मस्थली लघु मेवाड़ क्षेत्र धौलाना में राष्ट्र ध्वज का जमकर अपमान हुआ। केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के पुत्र नीरज सिंह ने गांव बझैड़ा खुर्द में करीब दो बजे ध्वजारोहण किया। तब तक ध्वज की गांठ नहीं खोली गयी। गांव बासतपुर के ग्रेट मिशन एनआर इंटर कालेज में भी ग्यारह बजे तक ध्वज गांठ में बंधा रहा। गांव सिखैड़ा के जूनियर हाईस्कूल में दीवार के सहारे लगाया ध्वज भवन से बहुत नीचे रह गया। वहीं हापुड़़ में तहसील चौपले पर तिरंगा आड़ा फहराया गया। बुलंदशहर में चोला क्षेत्र के बिरोड़ी ताजपुर प्राथमिक विद्यालय में झंडा न फहराने पर लोगों ने जमकर हंगामा किया। आरोप है कि तीन वर्ष से प्रधानाध्यापक जरीना 15 अगस्त और 26 जनवरी को तिरंगा नहीं फहरातीं। बीएसए महेश चंद ने जांच कर कार्रवाई की बात कही है।

पहला आतंकी हमला: आजम

संसदीय कार्य एवं नगर विकास मंत्री आजम खां ने कहा कि आजाद भारत में पहला आतंकी हमला महात्मा गांधी पर हुआ। बापू के सीने पर चली पहली गोली से ही देश में आतंकवाद की शुरुआत हुई। गांधी समाधि पर ध्वजारोहण एवं रामपुर पहाड़ी गेट पर राजकीय इंटर कालेज का उद्घाटन करने के मौके पर उन्होने कहा कि कुछ लोग सत्ता के घमंड में अपनी सीमाएं भूल जाते हैं। लोगों को अपनी हद में रहना चाहिए। हमें उन महापुरुषों की कुर्बानी को याद करना चाहिए, जिनकी वजह से देश आजाद हुआ।

Sunday, August 9, 2015

राधे माता साईं के बाद हिन्दू आस्था का व्यापारीकरण का दूसरा भाग

राधे माता का नाम आजकल सुर्खियो में है, हिन्दू समाज के विश्वास और धार्मिक आस्था को तार तार करने वाली इस महिला का असली नाम सुखबिंदर कौर है और इसकी शादी 17 साल की उम्र में मोहन सिंह नाम के आदमी के साथ हुई, क्या आपको पता है ये तथाकथित माता के 6 बच्चे भी है| हा तो बात चल रही थी इनके राधा के अवतार की तो इनका पति इतने बच्चों के जीविका के लिए क़तर चला गया और भारत में सुखविंदर कौर उर्फ़ राधे माँ को आजादी मिल गयी बाबाओ के साथ गोरखधंधा करने की और ये चली आई कई साधू संतो के समागम के बाद मुंबई  और वही इसकी जानपहचान मुंबई के विज्ञापन एजेंसी चलाने वाले गुप्ता परिवार के साथ हो गयी फिर क्या था सुखबिंदर कौर को भी सफलता चाहिए थी और गुप्ता जी की भी विज्ञापन एजेंसी को कुछ काम नहीं मिल रहा था तो उन्होंने अपने मुंबई में खाली पड़े सारे होर्डिंग्स पर विज्ञापन लगवा दिया राधे माँ का और यहाँ से शुरू हुआ धर्म और आस्था को तार तार कर देने वाला गन्दा धंधा|

गुप्ता जी की पहचान कुछ छोटे मोटे एक्टर्स और डायरेक्टर्स के साथ भी था साथ में कुछ “C” ग्रेड की अभिनेत्री जो की फिल्मो में काम न मिलने पर कुछ भी उल्टा सुलटा कर के अपना पेट चलती है सबने मिलके हिन्दू समुदाय को मुर्ख बनाने का महा षड्यंत्र की शुरुआत हुयी और पुरे मुंबई में राधे माँ का पोस्टर, होर्डिंग और बैनर लगाया गया, साथ में वो सारे बॉलीवुड के भांड भी जुड़ गए अपना मोटा हिस्सा कमाने के चक्कर में और इसमें पिस गयी भोली भाली जनता की गाढ़ी कमाई, कुछ हद तक ये षड्यंत्र पैसे के लिए वैसा ही किया गया जैसा की 90 के दशक में साईं के नाम पर किया गया था और ध्यान रहे की चाहे फिल्मो में भगवन को बुरा दिखाना हो या फिर वास्तव में भगवन और देवी देवता के नाम पर लुट मचानी हो, किसी आतंकवादी को समर्थन करना हो या फिर पोर्नोग्राफी का समर्थक करना हो ये फ़िल्मी भांड कभी भी पीछे नहीं रह सकते क्यूंकि इनकी अपनी कोई इज्जत नहीं होती और जिनकी अपनी कोई इज्जत नहीं होती वो दुसरे इज्जत और आस्था के बारे में सोच भी नहीं सकते |
आज भले ही ऋषि कपूर राधा माँ को गाली दे दे के थकते नहीं हो इसकी वजह ये भी हो सकता है की इनको इनका अपना हिस्सा नहीं मिला होगा क्यूंकि कुछ ही महीने पहले इन जनाब ने कहा था की गौमांस पर पाबंदी नहीं लगनी चाहिए और खुद इसी ने स्वीकार किया था की हा मैं भी गौमांस खाया है, फ़िल्मी भांडो के दोगलेपन का सबसे बड़ा उदाहरण की pk फिल्म में हिन्दू आस्था की धज्जिया उड़ने वाला बॉलीवुड राधे माँ की गोदी में बैठ के आशीर्वाद लेता है इस से बड़ा ढोंग क्या हो सकता है ? ये पूरा बॉलीवुड आज कुछ लोगो को छोड़ दिया जाये तो देशद्रोह के कार्य में लगा हुआ है
ED को राधे माता की कुल ११०० करोड़ की संपत्ति का पता चला है .. जिसमें उन्होंने दुबई में पाम जुमैरा में शानदार आठ विला भी लिया है .. मुंबई में कई सारी शॉपिंग कोम्पलेक्स, रिहाइशी बिल्डिंग भी है |

असल में ये सुखबिन्दर कौर एक मानसिक बीमारी से पीड़ित है .. जिसमें व्यक्ति खुद को भगवान मानने लगता है .. और इसका पूरा फायदा मुंबई के बोरीवली स्थित गुप्ता परिवार ने उठाया क्योकि उनका एडवर्टाइजिंग का बिजनस था और जब भी उनको क्लाइंट नही मिलते थे तब वो अपने आउटडोर बोर्ड पर राधे माल के बड़े बड़े पोस्टर लगाते थे ,.. इन्होने कमिशन पर कुछ सेलिब्रिटीज को भी उनका भक्त प्रचारित किया और आमदनी में से उन सेलिब्रिटीज को उनका हिस्सा भी दिया |
ये सच है की भारत का मध्यम वर्ग आज भी ऐसे बाबा, माता और गुरु के चक्कर में फस कर अपनी गाढ़ी कमाई इनपर लुटा देता है ऐसे कई बड़े नाम आपको मिल जायेंगे जैसे सतपाल बाबा , निर्मल बाबा, एक दिल्ली के सतपाल जी महाराज भी है इन्होने भी पुरे दिल्ली के झुग्गी झोपड़ियो में रहने वाले लोगो का खूब खून चूसा है, तो कहने का मतलब ये है की काटजू साहब जो की सुप्रीम कोर्ट में जज थे उन्होंने यूँही नहीं कहा था की भारत के 90% लोग मुर्ख है लोगो को हर २ महीने पर कोई न कोई आके काट जाता है और जनता है की काटने वाले को सर आँखों पर बैठा लेती है, जैसे की सलमान खान जिसे भारत की जनता ने पुरे विश्व में लोकप्रिय बनाया लेकिन उस भांड ने आखिर कर अपनी औकात दिखा दी और आतंकवादी याकूब के फांसी के सवाल पर देश के सुप्रीम कोर्ट तक को झूठा साबित कर दिया और हम है की उसी भाई जान की फिल्म के लिए मरे जा रहे है सही है मूर्खो लगे रहो ऐसी ही भक्ति में


Thursday, August 6, 2015

कहानी एक बेरोजगार वकील से कांग्रेस के जनरल सेकेरट्री और फिर देश का प्रधानमंत्री बने जवाहरलाल नेहरू की

कृपया इस पोस्ट की अमूल्य जानकारी को पूरा पढ़ लें ये जानकारी आपको शायद नहीं होगी
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मोतीलाल नेहरू जो इलाहबाद के जाने माने वकील थे और एक अच्छा पैसा कमाते थे वकालत में होती कमाई देखकर उन्होंने अपने बेटे जवाहर को जिन्हें वकालत में दिलचसबि नहीं थे वकालत की पढाई करवाई और वकील बनवाया

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मोतीलाल वकील के साथ नेता भी थे तो अक्सर इलाहबाद से बाहर जाते थे तो बेटे जवाहर के कामो पर ज्यादा नजर नहीं रख पाते थे, जवाहर ने जब वकालत पूरी की तो मोतीलाल ने उनको चैम्बर जाने तथा वकालत करने को कहा जब बहुत दिनों बाद मोतीलाल वापस इलाहबाद आये तो उन्हें पता चला की बेटा जवाहर चैम्बर नहीं जाता और कोई काम नहीं करता, कोई वकालत और आर्गुमेंट नहीं करता
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इस बात पर घर में मोतीलाल ने बेटे से कहा , तू चैम्बर क्यों नहीं जाता,काम क्यों नहीं करता इसपर जवाहर ने कहा की , मुझे कुछ समझ नहीं आता, मुझे आर्गुमेंट करना नहीं आता तो मोतीलाल ने गुस्से में कहा की फिर खायेगा कैसे, आज का खाना मत खा, घर से चला जा किसी दिन बीच में उस समय के और और नेता ब्रह्मचारी ,मोतीलाल से मिलने इलाहबाद पहुचे उन्होंने मोतीलाल से कहा, जवाहर दिख नहीं रहा इसपर मोतीलाल ने कहा की वो आवारा है, कुछ करता नहीं, यहाँ वहां घूमता रहता था ये बात ब्रह्मचारी ने गांधी को बताई
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गांधी ने बेरोजगार जवाहर को बुलाया और समझाया की तुम वकालत करो इसपर जवाहर ने गांधी को फिर कहा की मुझे कुछ समझ नहीं आता वकालत का गांधी समझ गए की जवाहर वकालत का काम नहीं कर सकता
तो गांधी ने जवाहर से कहा की तुमको कांग्रेस का जनरल सेकेरट्री बना देते है तुमको पद भी मिल जायेगा
और पार्टी फण्ड में से तनख्वाह भी मिलेगी, तो पिता मोतीलाल कुछ नहीं कहेंगे और बाद में मोतीलाल नेहरु ने कांग्रेस को एक मोती राशि दी ताकि उसी पैसे के दम पर लोग जवाहरलाल की बातो को माने

जवाहर ने ये बात मान ली, और एक बेरोजगार सीधे कांग्रेस का जनरल सेकेरट्री बन गया
जवाहर लाल नेहरू, इस से खुश होकर पूरी तरह गांधी के हिमायती बन गए देखते देखते भारत आज़ाद हुआ, कंग्रेस की कोर टीम बैठी जिसमे 15 लोग थे उनको फैसला करना था की प्रधानमंत्री कौन बनेगा, जवाहर लाल नेहरू या वल्लभभाई पटेल 13 लोगो ने पटेल का साथ दिया ,परंतु गांधी ने अपने चमचे या यूं कहें हिमायती नेहरू को रबर स्टाम्प की तरह प्रधानमंत्री बना दिया

ये है पूरी कहानी एक बेरोजगार वकील से कांग्रेस के जनरल सेकेरट्री और फिर देश का
प्रधानमंत्री बने जवाहरलाल नेहरू की और उनके पिता द्वारा उनको डांट की ये जानकारी किसी हीरे से भी अधिक कीमती है  शेयर करके देश को बताएं, और ऐसे इतिहास की अमूल्य जानकारियों के लिए दैनिक भारत से जुड़ें
जय हिन्द 

Wednesday, August 5, 2015

पाकिस्तानः 'वो दिन दूर नहीं जब एक भी हिंदू न बचे'

पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों को अक्सर यह शिकायत रही है कि उनके धर्म स्थलों को पाकिस्तान सरकार की ओर से सुरक्षा नहीं है. ऐसी कई शिकायतें रिकॉर्ड होने और धार्मिक स्थलों को नुक़सान पहुंचाए जाने की कई घटनाओं के सामने आने के बावजूद अब तक कोई सुनवाई नहीं है. मानवाधिकार संगठनों के अनुसार, पिछले पचास वर्षों में पाकिस्तान में बसे नब्बे प्रतिशत हिंदू देश छोड़ चुके हैं और अब उनके पूजा स्थल और प्राचीन मंदिर भी तेज़ी से ग़ायब हो रहे हैं. ऐसा ही एक मामला, पिछले बीस साल से चल रहा है और अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद इस पर कोई अमल नहीं हुआ.


बात है, पाकिस्तान के प्रांत ख़ैबर पख्तूनख़्वा ज़िले में कर्क के एक छोटे से गांव टेरी में स्थित एक समाधि की.
यहां किसी ज़माने में, कृष्ण द्वार नामक एक मंदिर भी मौजूद था. मगर अब इसके नामो निशान कहीं नहीं हैं.

समाधि मौजूद है, लेकिन इसके चारों ओर एक मकान बन चुका है और यहां तक कि वहां तक पहुचंने के सारे रास्ते बंद हैं. मकान में रहने वाले मुफ़्ती इफ़्तिख़ारुद्दीन का दावा है कि 1961 में पाकिस्तान सरकार ने एक योजना (1975) लागू की थी, जिससे तत्कालीन पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान में स्थानीय प्रमुख लोगों को ऐसी ग्रामीण संपत्ति मुफ़्त में दी गईं, जिनकी क़ीमत दस हज़ार रुपए से कम थी.

इसी योजना के तहत उन्हें भी जगह का मालिकाना अधिकार मिल गया और 1998 में उन्होंने इस मकान का निर्माण किया. हिंदुओं के नेता परम हंस जी महाराज का 1929 में निधन हो गया था. उन्हें श्रद्धांजलि देने दुनिया भर से कई हिंदू पाकिस्तान के क्षेत्र टेरी में स्थित उनकी इस समाधि पर आया करते थे.

1998 में यह मामला तब सामने आया जब कुछ हिंदू यहां पहुंचे तो पता चला कि समाधि को तोड़ने की कोशिश की गई. इसके बाद बात पाकिस्तान हिन्दू परिषद तक पहुंची और परिषद ने इस मामले का बीड़ा उठाया.
परिषद के अध्यक्ष और नेशनल असेंबली के सदस्य डॉक्टर रमेश वांकोआनी ने बताया कि पिछले बीस साल के दौरान वे सभी राजनीतिक लोगों से प्रांतीय और संघीय स्तर पर बात कर चुके हैं मगर किसी ने नहीं सुना, अंततः उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया.
सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2015 में सभी परिस्थितियों को देखते हुए, ख़ैबर पख़्तूनख़्वा की प्रांतीय सरकार को आदेश दिया कि वह इस समाधि में होने वाले तोड़फोड़ को रोके और हिंदुओं को उनकी जगह वापस दिलाए. मगर आज तक उस पर कोई अमल नहीं हुआ.
डॉक्टर रमेश कहते हैं, “तीर्थ स्थल तो ऐतिहासिक होते हैं, यह कोई मंदिर तो है नहीं कि क़ानून-व्यवस्था की स्थिति ख़राब होने के नाम पर मैं इसे कहीं और स्थानांतरित कर दूँ, यह तो समाधि है. एक ऐसी हस्ती का मंदिर जिसके करोड़ों श्रद्धालु हैं.”

मगर टेरी में यही अकेली समाधि या मंदिर नहीं है, जो बंद है.

पाकिस्तान हिंदू काउंसिल के मुताबिक़, इस समय देश भर में सभी धार्मिक अल्पसंख्यकों के ऐसे 1,400 से अधिक पवित्र स्थान हैं जिन तक उनकी पहुंच नहीं है. या फिर उन्हें समाप्त कर वहां दुकानें, खाद्य गोदाम, पशु बाड़ों में बदला जा रहा है.
ऐसा ही एक मंदिर, रावलपिंडी के एक व्यस्त बाज़ार में मौजूद है जिसे यमुना देवी मंदिर कहा जाता है और यह 1929 में बनाया गया था.
चारों ओर छोटी दुकानों में धंसा यह मंदिर केवल अपने एक बचे हुए मीनार के कारण अब भी सांसें ले रहा है.
उसके अंदर प्रवेश से पहले छतों से बातें करती ऊँची क़तारों में चावल, दाल और चीनी से भरी बोरियों से होकर गुज़रना पड़ता है.
वक़्फ़ विभाग के अध्यक्ष सिद्दीकुलफ़ारुख़ का कहना है कि, “जो योजना 1975 की है, मैं उसके बारे में जानता हूँ और इससे पहले क्या था, उसकी जानकारी मुझे नहीं है. संसद के बने इस योजना के तहत, इबादतगाह कोई भी हो, वह किराए पर नहीं दिया जा सकता, लेकिन इससे सटी भूमि को किराए पर दिया जा सकता है.”
विशेषज्ञों के अनुसार, सरकार की अनदेखी और ग़लत नीतियों के कारण देश में सबसे ज़्यादा प्रभावित होने वाले धार्मिक अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय से हैं, जिन्हें पिछड़े होने के कारण हमेशा नज़रअंदाज़ किया जाता रहा है.

उपमहाद्वीप के बंटवारे के समय, पश्चिमी पाकिस्तान या मौजूदा पाकिस्तान में, 15 प्रतिशत हिंदू रहते थे.
1998 में देश में की गई अंतिम जनगणना के अनुसार, उनकी संख्या मात्र 1.6 प्रतिशत रह गई और देश छोड़ने की एक बड़ी वजह असुरक्षा थी.
शोधकर्ता रीमा अब्बासी के अनुसार, “पिछले कुछ वर्षों में लाहौर जैसी जगह पर एक हज़ार से अधिक मंदिर ख़त्म कर दिए गए हैं. पंजाब में ऐसे लोगों को भी देखा है जो नाम बदल कर रहने को मजबूर हैं.”
वो कहती हैं, “इन सभी बातों की बड़ी वजह क़ब्ज़ा माफ़िया तो हैं, मगर साथ ही बेघरों के लिए सुरक्षा की कमी भी है, जो आतंकवाद के कारण अपना घर-बार छोड़कर पाकिस्तान के अन्य ऐसे क्षेत्रों में स्थानांतरित हो रहे हैं, जहां उनके धर्म स्थल क़रीब हैं.”उनके मुताबिक़, “मगर उन्हें वहाँ से डरा-धमका कर निकाल दिया जाता है ताकि वहां पहले से रह रहे लोगों को कोई कठिनाई न हो.”
मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि पाकिस्तान से पलायन कर गई हिंदुओं की नब्बे प्रतिशत आबादी का कारण बढ़ती असहिष्णुता और सरकार की उदासीनता है.
पाकिस्तान के वक़्फ़ विभाग में पुजारी की नौकरी करने वाले जयराम के अनुसार, “1971 के बाद देश में हिंदू संस्कृति ही समाप्त हो गई. कहीं भी अब शास्त्रों को नहीं पढ़ाया जाता, संस्कृत नहीं पढ़ाई जाती, यहाँ तक कि सिंध सरकार से एक बिल पास करवाने की कोशिश हुई कि सिंध में पाठ्यक्रम में संस्कृत को शामिल किया जाए, हिंदू बच्चों के लिए एक हिंदी शिक्षक दिया जाए, मगर वह विधेयक पारित नहीं हुआ. तो यदि इस प्रकार का क़ानून नहीं बन सकता तो वह दिन दूर नहीं जब पाकिस्तान में एक भी हिंदू नहीं रहेगा.”

-BBC