Wednesday, January 8, 2014

पहले भारत या पहले आप?

दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार के कई फैसले महत्वपूर्ण सवाल खड़े करते हैं

किसी कॉलम में ऐसे विचार लिखना आसान नहीं हैं जो लहर के खिलाफ हों खासतौर से उन अच्छे इरादे वाले लोगों के खिलाफ जिन्हें हमने खुद प्रोत्साहित किया है। मुझे ऐसी ही दुविधा का सामना करना पड़ा जब मैंने आप और उनके संभल कर चलने की जरूरत के बारे में लिखा। आम आदमी पार्टी इन दिनों सबकी पसंद है। मीडिया उसकी तारीफ करते नहीं थक रहा है। गरीब उसे अपना मसीहा मानते हैं। बोर हो चुके अमीर एक्जीक्यूटिव अपनी नौकरी छोड़कर आंदोलन में शामिल हो रहे हैं। बड़ी संख्या में युवा आप को बढ़ाने के लिए आगे आ रहे हैं। केजरीवाल के प्रधानमंत्री बनने और लोकसभा चुनाव जीतने की चर्चा है।

आप इस तरह की प्रशंसा और समर्थन की हकदार है। वह ईमानदार, विनम्र और उत्साह से भरी है। पार्टी तेजी से जनमत को स्वीकार करती है, भले ही इसके लिए उसे अपने पुराने रुख में बदलाव करना पड़े। अनुकूल प्रतिक्रिया के मामले में वह मौजूदा राजनीतिक पार्टियों, जिनकी अगुआई ऐसे डायनासोर कर रहे हैं जो अपनी पूंछ में आग लगने के बावजूद टस से मस नहीं होते हैं,के बीच अलग खड़ी नजर आती है।

अगर आप अपने दांव सही तरीके से चलती है तो वह अगले दशक में प्रमुख राष्ट्रीय पार्टी बन जाएगी। हालांकि आप को महसूस करना होगा कि मुख्य चिंता आप नहीं है बल्कि देश है। दुख की बात है कि आप की ताजा नीतियां और फैसले राष्ट्रीय हित के संदर्भ में कई बड़े सवाल खड़े करते हैं।

वोटरों की नजर में हीरो बनने के लिए आप ने दिल्ली में मुफ्त पानी सप्लाई और बिजली की दरों में सब्सिडी आधारित विचित्र कटौती की घोषणा की है। आंकड़े धुंधली तस्वीर पेश करते हैं लेकिन कुछ अनुमानों के अनुसार इससे दिल्ली सरकार को एक वर्ष में हजारों करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ेगा। इस धन का उपयोग अस्पताल, स्कूल, फ्लाईओवर बनाने, रोजगार पैदा करने और कई अन्य उद्देश्यों के लिए हो सकता था। आप ने बिजली सेक्टर में कथित भ्रष्टाचार को कम करने और उससे हुए फायदे को बिजली टैरिफ में कमी के बतौर जनता तक पहुंचाने का वादा चुनाव में किया था। लेकिन सब्सिडी के आधार पर टैरिफ में रियायत का निर्णय गैर जिम्मेदाराना है। यदि आप के बिजली टैरिफ फैसले को भारत भर में लागू कर दिया जाए तो लाखों करोड़ रुपयों का खर्च आएगा। ऐसे उपायों से देश की वित्तीय स्थिति चरमरा जाएगी और उत्पादक व उपयोगी निवेश के लिए बहुत कम धनराशि बचेगी। निजी क्षेत्र की कंपनियों को भी गलत संकेत गया है और वे बिजली सेक्टर में धन लगाना बंद कर देंगी। ऐसा करके आप ने वाहवाही लूटी है पर क्या इससे भारत का भला होगा?

आप द्वारा दिल्ली के कॉलेजों में दिल्ली वासियों के लिए 90 प्रतिशत आरक्षण की पहल पर भी गौर कीजिए। इनमें से कई कॉलेज नेशनल ब्रांड बन चुके हैं। इससे आप को दिल्ली में कुछ वोट मिल सकते हैं। हालांकि, कई स्तरों पर होने वाले नुकसान पर ध्यान दीजिए। इससे देश भर के छात्र सर्वश्रेष्ठ कॉलेजों में दाखिला लेने से वंचित हो जाएंगे। कॉलेजों को प्रतिभाशाली छात्रों से वंचित होना पड़ेगा। उनके ब्रांड को आघात पहुंचेगा। यह निर्णय भारत को विभाजित करेगा। लोगों पर दिल्ली में बसने के लिए दबाव बढ़ेगा। शहरी ढांचे पर बोझ पड़ेगा। इसके कारण अभिभावक अपने बच्चों को विदेश भेजने के लिए प्रोत्साहित होंगे। विदेशी मुद्रा का नुकसान होगा। क्या हमें इस सब पर बहस नहीं करनी चाहिए? दिल्ली के श्रेष्ठ कॉलेज पूरे देश में शाखाएं क्यों नहीं खोलते हैं।

एक बार फिर वही बात आती है। इस कदम से आप को फायदा हो सकता है लेकिन क्या इससे भारत को फायदा हुआ है। आप ईमानदार हो सकती है लेकिन यदि आप राष्ट्र के खजाने को नुकसान पहुंचाती है और अपनी पार्टी के लाभ के लिए नेशनल ब्रांड्स को नष्ट कर सकती है तो क्या आप पूरी तरह पवित्र है? या कि आप अब पवित्र नहीं रही?

आप में आम आदमी की जीवनशैली के प्रति दंभ और संपन्नता के लिए हिकारत का नजरिया भी दिखता है। अनाप-शनाप उपभोग गलत है। पर अच्छे रहनसहन के लिए प्रयास करना और कड़ी मेहनत,ईमानदारी से कमाए धन को खर्च करना कैसे नैतिक दृष्टि से उचित नहीं है? पिछले दशक में लाखों भारतीयों ने कठिन परिश्रम करके अपनी जीवनशैली को बेहतर बनाया है। इससे हमारा प्रति व्यक्ति जीडीपी बढ़ा है। क्या हमें इसे हतोत्साहित करना चाहिए? क्या हम ईमानदार लेकिन गरीब भारत चाहते हैं? क्या आप गरीब समर्थक है या गरीबी समर्थक है?

ऐेसा क्यों हो रहा है? आप अभी से गलती क्यों कर रही है? पहला कारण-लोकसभा चुनाव लडऩे की जल्दबाजी हो सकता है। दूसरा कार- भारत की जरूरत के अनुरूप दृष्टि का अभाव है। आप भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की उपज है। अब वे राष्ट्रीय पार्टी बनना चाहते हैं। आप जो बनना चाहती है, उसके लिए नए सिरे से सोच विचार की जरूरत है। उसे शासन चलाना सीखना होगा। यह भी स्पष्ट होना चाहिए कि वह कैसे भ्रष्टाचार मुक्त भारत और युवाओं के लिए लाखों रोजगार देने वाली मजबूत अर्थव्यवस्था को साकार कर सकती है। इसमें समय लगेगा। हालांकि, आसन्न चुनाव और उसे मिला समर्थन इस महत्वपूर्ण प्रक्रिया में बाधा डाल रहे हैं। इस जल्दबाजी में आप ऐसे गलत लोगों को आकर्षित करने का जोखिम उठा रही है जो बेहतर भारत पर सत्ता को तरजीह देते हैं। अगर आप लोकसभा चुनाव की दौड़ से हट जाती है तो केवल समर्पित लोग पार्टी में शामिल होंगे।

आप के 2014 का लोकसभा चुनाव लडऩे से त्रिशंकु संसद और खिचड़ी सरकार बनने के आसार बढ़ जाएंगे। इसका जो भी अर्थ हो पर कई विदेशी सरकारें, निवेशक और स्थानीय उद्योगपति महसूस करते हैं कि नरेंद्र मोदी भारत को तरक्की के रास्ते पर वापस ला सकते हैं। मैं नहीं जानता कि वे वर्तमान आप के बारे में ऐसा ही सोचते हैं। ऐसी स्थिति में भारत के लिए क्या अच्छा है? अपनी सभी बुराइयों के साथ कांग्रेस को भारत पर शासन करने का सबसे अधिक अनुभव है जबकि आप को नहीं है। क्या उक्त अनुभव बेमतलब है? 2014 में जब हम भारत के बारे में सोचें तब क्या हमें इन फैक्टर पर विचार नहीं करना चाहिए। विजय के जोश में लोग बहक जाते हैं और बड़ी लड़ाई की तैयारियों की अनदेखी करते हैं। आप को इसके बारे में विचार करना चाहिए। नागरिकों को भी किसी राजनीतिक पार्टी की प्रगति के बजाय देश हित को वरीयता देनी चाहिए। देश की कमान ऐसे लोगों के हाथों में सौंपनी चाहिए जो न सिर्फ ईमानदार हों बल्कि देश को आगे ले जा सकें।

पहले भारत या पहले आप?


लेखक- चेतन भगत 
साभार- दैनिक भास्कर