Monday, August 29, 2011

खेल रत्न पुरस्कार का नाम राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार होना चाहिए या ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार ?


आज 29 अगस्त को भारत के दिग्गज हाकी खिलाड़ी ध्यानचंद की जयंती होती है और इसे खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। लेकिन इसके अवसर पर जो  खेलरत्न पुरस्कार मिलता है वो राजीव गाँधी खेलरत्न पुरस्कार क्यों कहा जाता है ?
क्या मेजर ध्यानचंद खेलरत्न पुरस्कार कुछ ज्यादा अच्छा नहीं लगता जो जबरजस्ती राजीव गाँधी का नाम इसमें ठूस दिया गया है | जहा तक मेरी समझ है उसके अनुसार राजीव गाँधी बस राजनीती का खेल ही अच्छे से खेलते थे बोफोर्स घोटाले और भी कितने खेले गए उनके खेल अभी तक उनकी याद ताजा कर जाती है और भगवन की दया से उनका भी जन्म और मरण दिवस बड़े धूम धाम से बैनर और पोस्टरों के साथ साथ समाचार पत्रों के मुख्य पृष्ठ पर उनकी तस्वीर के साथ मनाई जाती है | फिर ये क्या लालच है की देश के एक महान सपूत जिसने हमें 3 बार विश्व विजेता बनाया उसके जन्मदिन के अवसर पर मिलने वाले पुरस्कार में राजीव गाँधी के नाम को ठूस दिया गया है
आइये जरा हम जानते है मेजर ध्यानचंद के बारे में :
हाकी के जादूगर के नाम से मशहूर मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को प्रयाग [इलाहाबाद] में हुआ था। पिता सेना में थे। पिता का तबादला झांसी होने के बाद ध्यानचंद स्थाई रूप से वहीं बस गये। लकड़ी की टहनी और कपड़े की गेंद से हाकी खेलने वाले ध्यानचंद की प्रतिभा देखकर उन्हें 16 साल की उम्र में ही सेना में नौकरी मिल गई।
ध्यानचंद हाकी में इतने ही मशहूर थे जितना की क्रिकेट में डान  ब्रैडमैन और फुटबाल में पेले की है ध्यानचंद ने हमें लगातार 1928 , 1932 , 1936 में हमें विश्व विजेता का ख़िताब दिलाने वाले इस महान खिलाडी की विदेशों में कितनी कद्र है इसका नमूना विएना में लगी उनकी मूर्ति है और अभी चंद रोज पहले ही लंदन के जिमखाना क्लब में एक एस्ट्रोटर्फ स्टेडियम भी ध्यानचंद को समर्पित किया गया है। 1936 बर्लिन ओलंपिक में उनके खेल के का खेल देखकर जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने सेना में ऊंचे पद की पेशकश की, जिसे ध्यानचंद ने ठुकरा दिया। जबकि उस समय वह भारतीय सेना में सिपाही के पद पर तैनात थे। हमें तो नहीं लगता की कोई भी राजनेता इतना देश के प्रति निष्ठावान हो सकता है | करियर में हजार से ज्यादा गोल दागने वाले इस जादूगर ने तीन दिसंबर 1979 को अंतिम सांस ली।
ध्यानचंद के बारे में एक बार डान ब्रैडमैन ने कहा था कि 'वह गोल ऐसे दागते थे जैसे कोई बल्लेबाज रन बनाता हो।' 1935 में भारतीय हाकी टीम आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के दौरे पर थी। भारतीय टीम एक मैच के लिए एडिलेड में थी और ब्रैडमैन भी वहां मैच खेलने आए थे। इस दौरे में 48 मैच खेले गए और ध्यानचंद ने 201 गोल दागे थे। ब्रैडमैन ने कहा कि यह किसी बल्लेबाज ने बनाए या हाकी खिलाड़ी ने।
ध्यानचंद के नाम सम्मान
* 1956 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया।
* उनके सम्मान मे दिसम्बर 1980 में डाक टिकट जारी किया गया।
* खेलों में ध्यानचंद अवार्ड 2002 में शुरू किया गया।
अब ऐसे देश के महान सपूतो के साथ किसी का भी नाम जोड़ देना सीधे तौर पर उनकी बेइज्जती है और हम सभी को इसके खिलाफ एक अभियान चलाना चाहिए की अगर ध्यानचंद की जयंती के तौर पर मनाया जाने वाले खेल दिवस के दिन मिलने वाले पुरस्कार को हमें ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार करना चाहिए की राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार
भगवान् का लाख लाख शुक्र है की आज भी हमारे देश का नाम हिंदुस्तान है नहीं तो ये लोग तो देश का नाम भी गान्धिस्तान या नेहरुस्तान कर देते
-- अक्षय कुमार ओझा
Contact me at: akshaykumar.ojha@gmail.com

2 comments:

  1. अक्षय जी ऐसा नहीं है कि राजीव जी का योगदान केवल नकारात्मक है उन्होंने देश के युवाओं को बहुत कुछ दिया भी है जैसे व्यस्क मताधिकार.और शायद इसी कारण युवाओं का खेल से सीधा सम्बन्ध होने के कारण उनके नाम पर यह पुरुस्कार किया गया है.खेल में मेजर ध्यानचंद के नाम से भी पुरुस्कार हैं .अपनी सोच में कुछ सकारात्मकता भी लाइए.


    न छोड़ते हैं साथ कभी सच्चे मददगार

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  2. शालिनी जी धन्यवाद् !!
    माफ़ कीजियेगा पर एक खेल प्रेमी होने के चलते ध्यानचंद के जयंती के दिन किसी भी नेता का नाम देख कर रहा नहीं गया पर आप ही सोचिये राजीव गाँधी ने बहुत कुछ युवाओ के लिए किया पर उनकी जिंदगी साफ सुथरी नहीं है और ध्यानचंद के साथ उनकी तुलना तो की ही नहीं जा सकती किसी भी कीमत पर और क्या ये मुफ्त में नाम पाने की लालच नहीं है जो कुछ भी हो उसमे नेहरु खानदान का नाम ठूंस दिया जाता है

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