Sunday, May 31, 2015

राजीव गाँधी के कारनामे जरुर पढ़े

बहुत पहले जब राजीव गांधी प्रधान मंत्री थे तो एक शाह बानो case हुआ था । हुआ यूँ था कि शाह बानो नामक एक मुसलमान औरत को उसके शौहर ने 3 बार तलाक़ तलाक़ तलाक़ कह के पिंड छुड़ा लिया । उसने अपने मियाँ जी को घसीट लिया । ऐसे कैसे तलाक़ ? खर्चा बरचा दो । गुज़ारा भत्ता दो ।
मियाँ जी बोले काहे का खर्चा बे ? शरीयत में जो लिखा है उस हिसाब से ये लो 100 रु मेहर की रकम और चलती बनो । तलाक ..........
शाह बानो बोली ठहर तुझे तो मैं बताती हूँ । और बीबी शाह बानो court चली गयी । मामला सुप्रीम court तक गया । और अंततः supreme court ने शाह बानो के हक़ में फैसला सुनाते हुए उनके शौहर को हुक्म दिया कि अपनी बीवी को गुज़ारा भत्ता दो । ये एक ऐतिहासिक फैसला था । भारत के supreme court ने सीधे सीधे इस्लामिक शरीयत के खिलाफ एक औरत के हक़ में फैसला दिया था । पूरे इस्लामिक जगत के हड़कंप मच गया । भारत की judiciary ने शरियत को चुनौती दी थी ।
राजीव गांधी सरकार मुसलामानों के दबाव में आ गयी और उसने अपने प्रचंड बहुमत के बल पे संविधान संशोधन कर supreme court के फैसले को पलट दिया और कानून बना के मुस्लिम औरतों का हक़ मारते हुए मुस्लिम शरीयत में judiciary के हस्तक्षेप को रोक दिया । शाह बानो को कोई गुज़ारा भत्ता नहीं मिला ।
पिछले दिनों अमित शाह और राजनाथ सिंह ने कहा कि राम मंदिर बनाने के लिए और धारा 370 हटाने के लिए 370 सीट चाहिए । आपिये अपोले congi commi बड़ा बवाल काट रहे हैं इस बयान पे .......
क्यों चाहिए राम मंदिर के लिए या धारा 370 हटाने के लिए 370 सीट ?
राम मंदिर का मुकदमा supreme court में लंबित है । सरकार के पास दो विकल्प हैं । या तो court के फैसले का इंतज़ार करे या सुप्रीम कोर्ट को नज़रअंदाज़ कर हिंदुओं को खुश करने के लिए संसद में प्रस्ताव पास कर वो ज़मीन राम मंदिर के लिए दे दे । उसके लिए सरकार के पास दो तिहाई बहुमत चाहिए संसद में यानी 370 सीट ।
धारा 370 हटाने के लिए भी संविधान में संशोधन करना पडेगा । उसके लिए भी 2/3 बहुमत चाहिए माने 370 सीट ।
एक तीसरा विकल्प भी है । BJP/ NDA प्रस्ताव लाये और कांग्रेस और अन्य पार्टियां संसद में उसका समर्थन करें ।
अब सवाल congi commi आपियों अपोलों से .........
बोलिये करेंगे समर्थन ? आज यदि मोदी सरकार संसद में धारा 370 हटाने के लिए प्रस्ताव ले के आये तो क्या कांग्रेस समर्थन करेगी ।
सरकार मंदिर बनाने के लिए संसद में प्रस्ताव लाये की विवादित भूमि रामजन्म भूमि ट्रस्ट को दे दी जाए ...... ऐ कांगियों ......... कम्युनिस्टों ......... आपियों ?
समर्थन करोगे ?
खाली गाल बजाने आता है ? बोलो न हाँ करेंगे समर्थन .......लाओ प्रस्ताव ।
तब तो बेटा मुसलामानों का पिछवाड़ा चाटने लगोगे ।
Ajit Singh

हम हिन्दुओं के लिए शिवाजी महाराज की स्मृति क्यों आवश्यक है ??? भाग --1 आइये अपना इतिहास समझें !!!!!

लगभग 1400 साल पहले विश्व में इस्लाम का भयानक काला अन्धेरा छाना आरम्भ हुआ था ,,,भारत के सिंध ने तो लगभग तभी इस्लाम के भयानक घाव झेले थे !!!!! लेकिन राजपूतो के संघर्ष से बाद में तीन सौ साल मुस्लिम लुटेरे भारत में नहीं आ पाए ,,,,लेकिन उसके बाद जब मुस्लिम दरिंदो की बाढ़ आई तो उसने समस्त उत्तर और पश्चिम भारत को पद दलित कर दिया ,,,सोमनाथ का मंदिर टूट गया ,,,दिल्ली के सिंहासन पर सन 1250 तक पठानों का कब्जा हो चुका था !!!!! उस समय तक य्त्तर भारत में राजपूत इन पठानों ,,तुर्कों ,,आदि से भरसक संघर्ष कर रहे थे !!!!!!!

लेकिन तब तक दक्षिण शांत था ,,,,देवगिरी के राज्य में शान्ति व्याप्त थी !!!ये महाराष्ट्र के यादव राजाओं की राजधानी थी ,,,मराठा गेरुआ ध्वज स्वाभिमान से लहराता था !!!!वहां बहुत प्रचंड पहाडी किला था !!!भयंकर खाइयों में मगर भरे थे !!!!शत्रु आने की सोच भी नहीं सकता था !!!सह्याद्री पर्वत और विशाल समुद्र महाराष्ट्र की दौलत थी !!!वहां के भिल्लम सिंघनदेव,,कृष्णदेव और महादेव आदि राजाओं के राज में अनेक विद्वानों ,,महापुरुषों और कलावन्तो ने संरक्षण पाया था !!!!1294 में वहां के राजा थे रामदेव राव !! वे उत्तर और पश्चिम भारत में हो रहे भयानक इस्लामी आतंक से बिलकुल बेखबर थे !!!फरवरी में राजा रामदेव अपनी सेना के साथ अपने धारागढ़ किले से बाहर थे ,,,,दिल्ली के अलाउद्दीन खिलजी ने हवा और बिजली की तरह भयानक आक्रमण कर दिया !!!समस्त महाराष्ट्र स्तब्ध था इन नराधमो के भयानक अत्याचारों से ,,,,भयानक लूटपाट और रक्तपात मचाया गया ,,,बेखबर और बिना तय्यारी के राजा रामदेव ने पीछे से आक्रमण किया !!! लेर्किन दुर्दांत पठानों के आगे उनकी सेना के पाँव उखड गए !!!बिना शर्त अपमान जनक समर्पण करना पडा !!!!!खिलजी ने करोड़ों रूपये और रामदेव की कन्या की मांग की !!!!! मांग पूरी हुई !!!!!!!!!

देवगिरी की इज्जत लुट गयी !!!सैकड़ों सालों से उत्तर भारत इस्लामी आतंक से लड़ रहा था लेकिन महाराष्ट्र मौन होकर सुख की नींद में था !!!!!!! अब वहां बर्बादी छा गयी !! 6 फरवरी 1294 से वहां परतंत्रता का भयानक अन्धेरा छा गया !!! मराठे वीर मुस्लिम सुल्तानों के गुलाम बन गए !!!!मराठा धरती ,,,संस्कृति ,,,धर्म ,,धरा ,,,प्रतिष्ठा सब जंजीरों में जकड गए !!!!!एक एक करके तीन सदियों तक विभिन्न सुलतान महाराष्ट्र को पैरो से कुचलते रहे ,,,उनकी ताकत थे महाराष्ट्र के ही मराठा गुलाम !!!!!!स्वाभिमान बेच कर मराठा वीर गुलामी में ही शौर्य मानने लगे !!!!,,,विवेक खोकर आपस में ही लड़ कर अपनी ताकत दिखाते रहते ,,लेकिन कभी स्वाधीन बनने की कल्पना भी नहीं करते थे !!!! ज्ञानेश्वरी का ज्ञान अँधेरे में डूब चुका था !!!!ऐसे भयानक काल में 1560 में संत एकनाथ ने जन्म लिया !!!!वे अपनी भक्ति की धारा से मराठों की विवेक शक्ति को सींचने लगे !!!!उनमें धर्म के छुपे तत्व को जागृत करने लगे !

भयानक परतंत्रता के काल में संत एकनाथ ने 1560 में जन्म लेकर ,,महाराष्ट की धरा को भक्ति के रस से सींचा !!गहन अन्धकार में उन्होंने मराठों की सोयी विवेक शक्ति को जगा कर धर्म का बीजारोपण किया !!!उन्होंने 1607 में परलोक गमन किया !!!उनके जीवन की संध्या पर महाराष्ट्र के पूर्व में धर्म की कुछ उज्जवल किरणें फूटती दिखी !! वेरुल के भोंसलो के वंश में दो पुत्र हुए मालोजी और विठोजी !!!दोनों निजाम के दरबार में नौकर थे !!!उनमें दरबारी कार्यों के अलावा कुछ धर्म बुद्धि उदित हुई !!!वे माता भवानी एवं भगवान् शंकर के भक्त थे !!!!मालोजी ने घृषनेश्वर ज्योतिर्लिंग के मंदिर का पुनुरुद्धार कराया !!!!शिंगणापुर में मालोजी ने विशाल तालाब बनवाकर वहां अन्न सत्र आरम्भ किया !!!

पुणे के जन मानस में धर्म की आनंद लहरी नाचने लगी !!!!!15 मार्च 1598 को मालो जी के घर एक पुत्र ने जन्म लिया ,,नाम रखा गया --शहा जी !!! दो वर्ष बाद दुसरे पुत्र शरीफ जी ने जन्म लिया !!!!!1605 में इन्दापुर में भयंकर युद्ध हुआ ,,,,मराठे वीरों ने निजाम की और से अद्भुत पराक्रम दिखाया !!!! मालोजी मारे गए ,,,सुलतान मराठों की वीरता देखकर आतंकित सा था !!!!!,शहा जी की माता उमाबाई साहेब सती होने चली !!!देवर विठोजी ने बच्चो के छोटे होने का हवाला देकर रोका !!!!! विठोजी के भी 8 पुत्र थे !!खेलो जी ,,मम्बा जी ,,,संभा जी ,मालो जी ,,,नागो जी ,,परसों जी ,,,त्रयम्बक जी और कक्का जी !!!!1608 में शहा जी 10 वर्ष के हुए !!!विठोजी ने उनका विवाह सिदखेड के जाधव वंश के लखुजी जाधव की लाडली जिजाऊ से तय किया !!!!जल्दी ही शरीफ जी का भी विवाह दुर्गा बाई से हुआ !!!!!मालो जी ने पुणे की जनता में धर्म की लहरे उत्पन्न की थी ,,अब उनकी संतति वहां की जनता को आनंद प्रदान करने लगी !!!!,,,,भोंसले और जाधव मराठा वीरों के बल पर ही निजाम की सल्तनत टिकी हुई थी !!!! दोनों सुलतान के खिदमतगार थे !! !इन्दापुर में मराठा वीरो के पराक्रम से निजाम इनसे आतंकित सा रहता था !!!! लेकिन ये मराठे वीर बुद्धिहीनो की तरह ,,अपना स्वराज्य स्थापित करने के स्थान पर निजाम की गुलामी को ही गौरव मानते थे !!!! उनकी वीरता आपस में ही निकलती रहती थी !!!!हिन्दू द्रोही मुस्लिम शासक के राज्य को मजबूत करने में उनकी ताकत लग रही थी !!!!!!1622--- एक दिन निजाम का दरबार बर्खास्त हुआ ,,,,लखु जी अपने महल में लौट गए !!!शहा जी उनके भाई ,,अन्य भोंसले और जाधव योद्धा बाहर निकल रहे थे !!!!

दरवाजे पर भारी भीडभाड हो गयी !!!!तभी खंडागले का हाथी बिदक गया ,,वो भीड़ को कुचलने लगा !!!लखु जी के पुत्र दत्ता जी जाधव अपने सैनिको के साथ उसे रोकने का प्रयास करने लगे ,,,हाथी ने उन सैनिको को कुचल दिया !!!दत्ता जी क्रोध में पागल हो कर हाथी को मारने भागे !!! भोसले योद्धाओं ने कहा आप हाथी को मत मारें ,,हम इसे संभाल लेंगे !!!!!लेकिन दत्ता जी ने अपने घातक वारों से हाथी को मार डाला और उसके बाद भोसले वीरो पर टूट पड़े !!!! संभा जी भोंसले के प्रहार से निजाम के दरबार में ही दत्ता जाधव मारे गए !!!!लखु जी तक खबर पहुँची ,,,वे आँखों में रक्त लिए तलवार लेकर भागे !!!!!क्रोध में अपने जवान शहा जी पर ही प्रहार किया ,,,,,वे गिर गए ,,,,,लखु जी के दुसरे प्रहार में संभा जी मारे गए !!!तभी शोर सुन कर निजाम छज्जे पर आया !!!चिला कर मराठा वीरों को फटकारता हुआ बोला क्यों यहाँ शोर शराबा करते हो ,,दफा हो जाओ !!!!!!!सारे मराठे चुप होकर निकल गए ,,,एक हाथी के पीछे जाधव और भोसले वीर एक दुसरे के खून के प्यासे होकर शत्रु बन गए !!!!!!!!---क्षण भर में रिश्ते तार तार हो गए !!!!!

जीजा बाई अत्यंत दुखी हो गयी !!!एक ही झटके में सगा भाई और देवर दोनों मारे गए ,,,किसके लिए रोयें ???,किसको कोसे ???स्वराज्य की क्रान्ति का सपना जन्म से पहले ही मर गया !!!!!मराठे यूँ ही स्वाभिमान शून्य होकर ,,आपस में वैर ठान कर मलेच्छो के राज्य को मजबूत करते थे !!!!जीजा बाई माता भवानी के मंदिर में जाकर फूट फूट कर रोने लगी !!! हे माँ क्या कभी ये गुलामी के अँधेरे चंतेंगे ???क्या कभी कोई ये कुत्तों की तरह लड़ना छोड़ कर स्वाराज्य स्थापना के विषय में सोचेगा ????कब ये हिन्दू कीड़े मकोड़े जैसी जिन्दगी से उबरेंगे ??????हे माँ तू मराठो में स्वाभिमान जगा !!! हे मा तू उन्हें ये मलेच्छ राज्य नष्ट करने की प्रेरणा दे !!!!! सब वैर के बाद भी जेजाबाई और शहाजी के मध्य प्रेम अमिट था !!!
-बलराज जी (गौसेवक )

Friday, May 29, 2015

चाचा नेहरु के कारनामों में से एक और !

कश्मीर पर चीन का अवैध कब्ज़ा ! अरुणांचल को अपना मानता है चीन !
ऐसी ख़बरों से भरे पड़े अखबार तो देखे होंगे आपने ? एक और भारत का हिस्सा है जिसकी बात नहीं होती | इस हिस्से पर अमरीका की नज़र तब पड़ी थी जब सुनामी आया था | अचानक अमरीकियों को दिखा की भारत का एक हिस्सा चीन से इतना नजदीक है | इसका नाम कोको आइलैंड इसलिए रखा गया था क्योंकि काले पानी की जेल में खाने की आपूर्ति, ज्यादातर नारियल की आपूर्ति इसी द्वीप से होती थी |

अंडमान निकोबार का हिस्सा है एक कोको आइलैंड | इसका इतिहास 1882 से देखा जाना चाहिए, उस वक्त ये अधिकारिक तौर पर ब्रिटिश बर्मा का हिस्सा बना था | 1937 जब बर्मा भारत से अलग कर के एक अलग क्राउन कॉलोनी बना दिया गया तो ये बर्मा का हिस्सा रह गया | 1942 में बाकि अंडमान निकोबार के साथ इसे जापान ने हथिया लिया था | जब 1948 में बर्मा अंग्रेजों से आजाद हुआ तो ये बर्मा का हिस्सा बन गया |
2003 में भारत के रक्षा मंत्री जॉर्ज फ़र्नान्डिस ने BBC को बताया था की इस द्वीप को जवाहरलाल नेहरु ने 1950 में ही बर्मा को दान कर दिया था और इस तरह भारत ने अपने ही घर में घुसपैठ करने का चीन को मौका दे दिया | अगर किसी ग़लतफ़हमी में हैं तो जान लीजिये की 1959 में जनरल ने विन ने यहाँ एक जेल बनाई थी, 1962 में जब उनका तख्ता पलट हुआ तो इस जेल को बर्मा का डेविल्स आइलैंड कहा जाने लगा | 1969 में इसकी जेल को बड़ा कर दिया गया ताकि ज्यादा राजनैतिक कैदियों को वहां डाला जा सके | 1971 में एक हड़ताल के बाद यहाँ से कैदियों को ले जा कर रंगून के इन्सेन जेल में डाल दिया गया और कोको आइलैंड को बर्मा की नौसेना को दे दिया गया |
फ़िलहाल यहाँ गूगल मैप से हवाई पट्टी, राडार स्टेशन वगैरह यहाँ दिख जाते हैं | यहाँ रखी चीनी मिसाइल कोलकाता तक तो कभी भी पहुँच जाएगी |
-Anand Kumar

Thursday, May 28, 2015

पतंजलि के खिलाफ षड्यंत्र के पीछे उत्तराखंड की खान्ग्रेस सरकार

स्‍वामी रामदेव के खिलाफ आज भी जारी है कांग्रेसी साजिशों का दौर, भाई शिकायत करने गया था, पुलिस ने कहा हमने आपको गिरफतार कर लिया

कांग्रेस किस घटियापन पर उतर सकती है, इसे देखना हो तो स्‍वामी रामदेव के साथ रोज-रोज रचे जा रहे कुचक्र को देख लीजिए। कांग्रेस जब केंद्र में थी तो उन पर 1000 से अधिक मुकदमा दर्ज किया गया था। आज उत्‍तराखंड में कांग्रेस है तो वहां उनके शिकायतकर्ता भाई को ही अभियुक्‍त बना कर गिरफतार कर लिया है।

कांग्रेस के दिल्‍ली प्रदेश अध्‍यक्ष जयप्रकाश अग्रवाल ने कुछ दिन पूर्व ही स्‍वामी रामदेव के खिलाफ जहर उगलते हुए कहा था कि मोदी सरकार ने ब्‍लैकमनी का 15 लाख रुपए मांगने वाली जनता से बाबा रामदेव को बचाने के लिए जेड श्रेणी की सुरक्षा दी है और सच यह है कि पिछले करीब-करीब एक साल से बाबा रामदेव के फूड पार्क पर गुंडे छोड़ दिए गए हैं। उत्‍तराखंड में कांग्रेस के हरीश रावत की सरकार है। कभी पतंजलि योगपीठ के सामने ब्‍लैक मनी के नाम पर धरना कराने की कोशिश की गई तो कभी स्‍थानीय ट्रांसपोर्टरों को बाबा की फैक्‍टरी पर हमला करने के लिए भेज दिया गया। बुधवार को भी स्‍थानीय कांग्रेसी नेताओं के शह पर फूड पार्क पर हमला किया गया, जिसमें एक व्‍यक्ति की जान चली गई और 12 लोग घायल हो गए।

बाबा रामदेव पर दबाव बनाने के लिए स्‍थानीय कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने सड़कपर जाम भी लगाया और स्‍वामी रामदेव पर फायरिंग कराने का मनगढंत आरोप भी लगा रहे हैं। मीडिया की हालत तो यह है कि 'आजतक' जैसे चैनल के शब्‍द देखिए, '' गांव वालों ने बाबा रामदेव पर आरोप लागते हुए कहा की बाबा ने गांव वालों पर कई राउंड गोली फायर करवाए।'' न इस खबर की पुष्टि के लिए किसी गांव वाले का नाम दिया गया है और न ही वहां आजतक का रिपोर्टर ही मौजूद था, क्‍योंकि घटना के वक्‍त मैं स्‍वयं हरिद्वार में मौजूद था। घटना के वक्‍त केवल स्‍थानीय ईटीवी का रिपोर्टर मौजूद था। हद हो गई है।

रस्‍सी जल गई लेकिन ऐंठन नहीं गई। कांग्रेस 50 सीट के अंदर सिमट गई है, लेकिन अपनी घटिया हरकतों से बाज नहीं आ रही है और न ही मीडिया ही अपने 2जी व कोलगेट लूट से की गई अय्याशी को ही भूल पा रही है।

बुधवार को बाबा रामदेव के हरिद्वार स्थि‍त पतंजलि फूड एंड हर्बल पार्क पर जिन ट्रक यूनियन के सदस्‍यों ने हमला किया था, उसमें से अधिकांश स्‍थानीय दबंग हैं, जिनका कांग्रेस पार्टी से संबंध हैं। इनकी दबंगई और दादागिरी से पिछले एक साल से पदार्था स्थित फूड पार्क जूझ रहा था। स्‍थानीय पुलिस और प्रशासन से कई बार इसकी शिकायत भी की गई, लेकिन पुलिस ने कभी कोई एक्‍शन नहीं लिया। उल्‍टे इसके लिए दबाव डालती रही कि आपसी समझौता कर लो।

आरोप है कि इन स्‍थानीय ट्रांसपोर्टरों की दादागिरी इतनी बढ गई थी कि वह बाबा की फैक्‍टरी में बाहर के ट्रांसपोर्टरों को माल ढुलाई करने से खुलेआम रोकते थे, स्‍थानीय ट्रक को ही फैक्‍टरी में लगाने और वास्‍तविक किराए से डेढ़ से दो गुणा अधिक किराया देने के लिए कामकाज को ठप कर देते थे। 10 हजार की जगह 20 हजार रुपए किराया मांगते थे। बाहरी ट्रकों को पतंजलि से माल लेकर जाने देने के लिए प्रति ट्रक 300 रुपए हर ट्रिप के हिसाब से हफता वसूले थे और स्‍थानीय पुलिस शिकायत के बावजूद इन पर कोई कार्रवाई नहीं करती थी।

बुधवार को फैक्ट्री पर करीब 200 लोगों के साथ इन स्‍थानीय गुंडों ने हमला कर दिया। कर्मचारियों ने भी अपने बचाव में प्रतिकार किया। प्रत्‍यक्षदर्शियों का कहना है कि इससे उत्‍पन्‍न भगदड़ में एक यूनियन वाले के सिर में चोट लगी, जिसके कारण उसकी मौत हो गई। लेकिन पुलिस ने इसे फायरिंग में मौत दिखाया है ताकि फूड पार्क के प्रबंधक रामभरत को दबोच कर बाबा रामदेव पर दबाव बना सके। और ऐसा ही हुआ।

यदि फूड पार्क के कर्मचारियों के हमले में यूनियन का व्‍यक्ति मरता तो रामभरत पुलिस से शिकायत की जगह अपने वकीलों से सलाह कर अग्रिम जमानत जैसी कोशिश करते दिखते, न कि आराम से पुलिस को शिकायत दर्ज कराते। वह पुलिस को शिकायत दे रहे थे और पुलिस ने अवैध तरीके से पहले उन्‍हें उठाया और बाद में शिकायतकर्ता को ही अभियुक्‍त बना दिया। रामभरत पर पहले भी एक कर्मचारी के अपहरण का अरोप कांग्रेस सरकार ने लगवाया था, लेकिन बाद में उस कर्मचारी नितिन त्‍यागी व उसके दादा ने मान लिया था कि उसने कांग्रेसी नेताओं के कहने पर यह आरोप लगाए थे।

स्‍थानीय प्रशासन की मिलीभगत पर शक इससे भी गहरा रहा है कि यह फूड पार्क पथरी थाना के अंतर्गत आता है और रामभरत को गिरफ्तार करने रानीपुर थाना से पुलिस आयी थी। रानीपुर थाना पुलिस पहले उनका शिकायत दर्ज करने के नाम पर उन्‍हें ले गई और बाद में शाम में कहा कि आपके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर ली गई है।

वैसे भी ह‍रीश रावत कांग्रेस के उन नेताओं में हैं, जिनका दिन 'सोनिया चालीसा' से शुरू और रात 'राहुल चालीसा' पढकर समाप्‍त होती है। सोनिया-राहुल के विरोधी बाबा के भाई पर हत्‍या का मामला दर्ज कराने पर आज हरीश रावत से मैडम और युवराज बहुत खुश होंगे और कांग्रेसी पूरी जिंदगी इसकी आस में ही तो बिताते हैं।

केजरीवाल की राजनीति देश को तोड़ने की साजिश है

दिल्ली विधानसभा में जो हुआ, वह शर्मनाक है. जो लोग आज चुप हैं, केजरीवाल के साथ खड़े हैं, वे भारत में तानाशाही को निमंत्रण दे रहे हैं. ऐसे लोग देश को तोड़ने की साजिश में शामिल हैं. केजरीवाल ने राज्य सरकारों से केंद्र के खिलाफ विद्रोह करने के लिए उकसाने का पाप किया है. दरअसल, केजरीवाल सरकार प्रजातंत्र की सबसे खतरनाक बीमारी से ग्रसित है. इस बीमारी का नाम है बहुमत की तानाशाही. ठीक वैसा ही, जैसा कि प्रजातंत्र के नाम पर कम्युनिस्ट पार्टियों की तानाशाही सोवियत रूस में थी. चीन और दक्षिण कोरिया में है. आम आदमी पार्टी के नेताओं के बयानों को सुनकर लगता है कि उन्हें भारत के प्रजातंत्र की समझ नहीं है. वे हर बात पर जनता द्वारा चुनी सरकार...जनता द्वारा चुनी सरकार की रट लगाते हैं और कहते हैं कि विधानसभा Sovereign है यानी संप्रभु है. मतलब यह कि जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि कुछ भी कर सकते हैं. अब इन्हें कौन बताए कि डेमोक्रेसी और मोबोक्रेसी में फर्क होता है. आम आदमी पार्टी जो दलील दे रही है, वो प्रजातंत्र को भीड़तंत्र की ओर लेकर जाता है. यहीं से अराजकता यानी एनार्की की शुरुआत होती है.

दो दिन के विशेष सत्र में आप के विधायकों ने अशिष्टता की सारी सीमाएं लांघ दी हैं. कांग्रेस से आम आदमी पार्टी में आई अलका लांबा ने यहां तक कह दिया कि लेफ्टिनेंट गवर्नर केंद्र के नेताओं को मोटा माल पहुंचाते हैं. बीजेपी के एक विधायक ने जब इसका विरोध किया, तो उसे मार्शल के जरिए सदन से बाहर कर दिया गया. ठीक वैसे ही, जैसे योगेंद्र यादव के लोगों को पार्टी की मीटिंग से बाहर किया गया था. एक और महाशय हैं. लाल बहादुर शास्त्री के पोते आदर्श शास्त्री...उन्होंने तो हद ही कर दी. संविधान के अनुच्छेद 155 में संशोधन किए जाने और उप राज्यपाल के खिलाफ महाभियोग चलाए जाने का प्रस्ताव रख दिया. केजरीवाल भी पीछे नहीं थे. अजीब बात है. केजरीवाल को इस बात की ग्लानि भी नहीं है कि दस दिन के लिए एक अस्थाई कैबिनेट सेक्रेटरी की नियुक्ति जैसे छोटे से मामले को संवैधानिक संकट में तब्दील कर दिया. दरअसल, यह राजनीति नहीं, नौटंकी है.
एक सवाल यह उठता है कि जो असेंबली में हुआ, वह सही है या गलत? दिल्ली विधानसभा में जो प्रस्ताव पास हुए हैं, वह न सिर्फ महत्वहीन हैं, बल्कि संविधान-विरोधी भी हैं. केंद्र के नोटिफिकेशन को असेंबली में फाड़ने से वह खत्म नहीं हो जाता है. मामला अगर राज्य और केंद्र के अधिकार क्षेत्र का है, तो फैसला करने का हक सिर्फ और सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के पास है. किसी असेंबली या हाईकोर्ट के पास यह अधिकार नहीं है कि वह राज्यों और केंद्र के बीच के विवाद को सुलझा सके.
आम आदमी पार्टी ने सदन के अंदर गवर्नर पर आरोप लगा कर मर्यादा और परंपरा का उल्लंघन किया है. पहली बात तो यह कि सदन के अंदर अगर कोई व्यक्ति मौजूद न हो, तो उस पर आरोप लगाना गलत है. लोकसभा, राज्यसभा और देश के अलग-अलग विधानसभाओं में इस नियम का कड़ाई से पालन होता है, लेकिन ऐसा लगता है कि दिल्ली विधानसभा भारत की जनता द्वारा चुनी गई एकमात्र विधानसभा है, जहां केजरीवाल जो चाहे कर सकते हैं. बिना सबूत के आरोप लगा सकते हैं. किसी को भी दलाल बता सकते हैं. दिल्ली में 67 सीटों का दंभ ऐसा है कि केजरीवाल ये भी भूल गए हैं कि लोकसभा चुनाव में जनता ने उनका सूपड़ा साफ कर दिया था. मीडिया भी इस बात को भूल गई है कि आम आदमी पार्टी जमानत जब्त कराने में विश्व रिकॉर्ड बना कर बैठी है. सब ये भी भूल गए हैं कि दिल्ली की जनता ने ही लोकसभा चुनाव में शुन्य यानी जीरो थमाया था. बावजूद इसके अगर आम आदमी पार्टी “जनता द्वारा चुनी सरकार” की दलीलें देती है, तो यह मान लेना चाहिए कि उन्हें संविधान की जरा भी जानकारी नहीं है.

आम आदमी पार्टी को यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत एक प्रजातांत्रिक गणराज्य है. प्रजातंत्र और गणराज्य का फर्क समझना जरूरी है. यूरोप के कई देश जैसे इंग्लैंड, स्पेन, स्वीडन, नॉर्वे, डेनमार्क, नीदरलैंड, मलेशिया, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और जापान जैसे देशों में प्रजातंत्र है, लेकिन ये गणराज्य नहीं हैं. ये रिपब्लिक नहीं हैं. वहीं, रूस, चीन, क्यूबा, उत्तर कोरिया जैसे कई देश ऐसे हैं, जो गणतांत्रिक तो हैं, पर प्रजातान्त्रिक नहीं हैं. भारत गणतांत्रिक भी है और प्रजातान्त्रिक भी. इसके फर्क को समझना जरूरी है. वरना केजरीवाल जैसे जनोत्तेजक नेताओं के झांसे में आने का खतरा बना रहेगा. दोनों में यह फर्क है कि गणतंत्र में संविधान सर्वोच्च होता है और प्रजातंत्र में जनता. प्रजातंत्र में बहुमत निरंकुश और सर्वशक्तिमान बन जाता है. बहुमत के विरुद्ध अल्पमत को कोई संरक्षण नहीं होता. ऐसी स्थिति में तानाशाही और प्रजातंत्र में फर्क खत्म हो जाता है. केजरीवाल इसी किस्म के प्रजातंत्र के प्रवर्तक हैं.
भारत के संविधान निर्माताओं ने इसी आशंका के चलते हमारे संविधान में मूलभूत अधिकारों को परिभाषित किया और इन मूलभूत अधिकारों की सीमा के बाहर से प्रजातंत्र की शुरुआत की. वहीं... गणतंत्र में विधि का विधान यानी कानून का राज होता है. गणतंत्र में निर्वाचित सरकार के अधिकार संविधान की सीमाओं में बंधे होते हैं. बहुमत का शासन बहुसंख्यक के शासन में न बदल जाये, इसलिए हमारे संविधान निर्माताओं ने प्रजातंत्र पर थोड़ा लगाम लगाकर संविधान को सर्वोपरि बनाया था. यही वजह है कि भारत में हम प्रजातंत्र दिवस नहीं, बल्कि गणतंत्र दिवस मनाते हैं. केजरीवाल की बातों से यही लगता है कि उन्हें गणतंत्र और प्रजातंत्र का फर्क समझ में नहीं आया है. केजरीवाल जिस प्रजातंत्र के प्रवर्तक हैं, वह दरअसल भीड़तंत्र है. वह तानाशाही और अराजकता की ओर ले जाने वाला रास्ता है.
जिन लोगों को लगता है कि दिल्ली से उठा विवाद सिर्फ भारत के संघीय ढांचे का सवाल हैं, उन्हें सचेत हो जाना चाहिए. यह मसला अब गणतंत्र के खिलाफ एक विद्रोह का बनता जा रहा है. केजरीवाल ने देश भर के गैर-भाजपा मुख्यमंत्रियों को केंद्र सरकार के खिलाफ उकसाने और विद्रोह करने का आमंत्रण देकर उन शक्तियों को ताकत दी है, जो भारत को टुकड़े-टुकड़े करना चाहती हैं. भारत की व्यवस्था को चकनाचूर करना चाहती है. ऐसी शक्तियों का विरोध करना हर देशभक्त का दायित्व है. भारत माता की जय का नारा लगाने वालों यह पता होना चाहिए कि जब भारत के ही टुकड़े हो जाएंगे तो किसकी जय करोगो.
केजरीवाल शायद अपनी धुन में हैं. उन्हें दुनिया भर की शक्ति चाहिए...पावर चाहिए.. तब उनकी भूख मिटेगी. अगर आप में से कोई बता सकता हो, तो ये बात उन्हें जरूर बताएं कि महात्मा गांधी के पास कभी कोई सत्ता नहीं थी...पावर नहीं था...कुर्सी नहीं थी...लेकिन भारत के सबसे शक्तिशाली नेता रहे. अगर यह नहीं बता सकते, तो कम से कम ये जरूर पूछिएगा कि केजरीवाल साहब, क्या नमक के कर्ज अदायगी का वक्त आ गया है? क्या फोर्ड फाउंडेशन के एजेंडे को लागू किया जा रहा है?

अपने देश में 17 लाख विस्थापित बेघर लोग : भाग (1)


यह चौंकाने वाली जानकारी हो सकती है कि जम्मू-कश्मीर का जम्मू क्षेत्र आज एशिया में विस्थापितों या कहें कि शरणार्थियों की सबसे घनी आबादी वाला इलाका है। मंदिरों और तीर्थस्थानों के लिए जाने जाने वाले जम्मू को भारत में शरणार्थियों की राजधानी का दर्जा भी दिया जा सकता है। जगह-जगह से विस्थापित करीब 17 लाख लोग यहां तरह-तरह के मुश्किल हालात में रहते हैं। 

किसी एक राज्य में चौकाने वाली लाखों की बेघर आबादी कौन है और बेघर कैसे है ? 

पिछले दो दशक के दौरान जब-जब जम्मू-कश्मीर में शरणार्थियों का जीवन जी रहे लोगों का जिक्र हुआ तो सबसे पहले या केवल कश्मीरी पंडितों का नाम सामने आया। कश्मीर घाटी की तकरीबन तीन लाख लोगों की यह आबादी 1989-90 के दौरान आतंकवादियों के निशाने पर आ गई थी। अपनी जमीन-जायदाद और दूसरी विरासत गंवा चुके इस समुदाय का एक बड़ा हिस्सा जम्मू क्षेत्र में रहते हुए घाटी में वापस लौटने का इंतजार कर रहा है। कश्मीरी पंडित काफी पढ़ी-लिखी कौम है और यह आतंकवाद का शिकार भी हुई जिससे इसकी चर्चा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर लगातार होती रही. इसी दौरान बाकी के तकरीबन 14 लाख लोगों की समस्याओं पर शेष भारत या कहीं और कोई गंभीर चर्चा नहीं सुनाई दी।

इन लोगों में एक बड़ा वर्ग (लगभग दो लाख लोग) बंटवारे के समय पश्चिम पाकिस्तान से आए उन हिंदुओं का है जिन्हें भौगोलिक दूरी के साथ-साथ सांस्कृतिक रूप से जम्मू अपने ज्यादा नजदीक लगा और वे यहीं आकर अस्थायी तौर पर बस गए। इन्हें उम्मीद थी कि भारत के दूसरे प्रदेशों में पहुंचे उन जैसे अन्य लोगों की तरह वे भी धीरे-धीरे जम्मू-कश्मीर की मुख्यधारा में शामिल हो जाएंगे। आज 67 साल हुए लेकिन समाज की मुख्यधारा में शामिल होने की बात तो दूर वे यहां के निवासी तक नहीं बन पाए हैं। आज इन लोगों की तीसरी पीढ़ी मतदान करने से लेकर शिक्षा तक के बुनियादी अधिकारों से वंचित है।

इससे मिलती-जुलती हालत उन 10 लाख शरणार्थियों की भी है जो आजादी के समय पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर पर हुए पाकिस्तानी सेना और कबाइलियों के हमलों से विस्थापित होकर जम्मू आ गए थे। ये लोग भी पिछले छह दशक से अपने पुनर्वास की बाट जोह रहे हैं।

इसके अलावा 1947-48, 1965 और 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध से विस्थापित हुए भारत के सीमांत क्षेत्र के लगभग 2 लाख लोग भी जम्मू के इलाके में ही हैं। बेशक भारत इन युद्धों में विजयी रहा लेकिन इन दो लाख लोगों को इसकी सबसे बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। कभी अपने-अपने इलाकों में समृद्ध किसान रहे हमारे देश के ये लोग उचित पुनर्वास के अभाव में मजदूरी करके या रिक्शा चलाकर अपना जीवनयापन कर रहे हैं।

इन लाखों लोगों के साथ घट रही सबसे भयावह त्रासदी यह है कि जम्मू-कश्मीर जैसे राज्य में ही जहां मानवाधिकारों को लेकर जबरदस्त हो-हल्ला होता रहता है - इनके मानवाधिकारों की कोई सुनवाई नहीं है। सरकार और राजनीतिक पार्टियों से लेकर आम लोगों तक कोई इनकी बातें या जायज मांगें सुनने-मानने को तैयार ही नहीं।

ये अनुमानित 17 लाख बेघरों के आंकड़े साल 2012-13 के हैं और हम सहज अंदाजा लगा सकते हैं कि बीते समय के साथ यह संख्या लगातार बढ़ रही होगी जनसंख्या में सामान्य औसत बढ़त दर के मुताबिक। 

जारी... 17 लाख बेघर लोग : भाग (2)

Wednesday, May 27, 2015

सोनिया गांधी की सच्चाई


भारत से लूटकर एंटोनिआ माइनो उर्फ़ सोनिया गांधी ने खरबों रुपये जमा कर रखे हैं विदेशी बैंकों में।
अमेरिकी वेबसाइट बिजनेस इनसाइडर ने यह दावा किया है। साइट के मुताबिक सोनिया के पास 948 अरब रुपये की संपत्ति है। सूची में केजरीवाल का आका जिंदल समूह का नाम भी है। उनकी संपत्ति करीब 658 अरब रुपये आंकी गई है। दरअसल सबसे पहले यह खबर जर्मनी के अखबार 'डी वेल्ट' में प्रकाशित हुई थी। इस अखबार के व‌र्ल्ड लग्जरी गाइड सेक्शन में दुनिया के सबसे रईस 23 नेताओं की सूची प्रकाशित की गई थी। इसमें सोनिया गांधी चौथे स्थान पर हैं। बिजनेस इनसाइडर ने अखबार का हवाला देते हुए यह सूची प्रकाशित की है। http://www.jagran.com/news/national-sonia-worlds-fourth-richest-politician-9008314.html#sthash.H7FGdPj1.dpuf

इटली में पैदा हुई सोनिया गांधी उर्फ एंटोनिया माईनो के संरक्षण में भारत में करोड़ों अरबों रूपए के घपले घोटालों को अंजाम दिया है।
कांग्रेस अध्‍यक्ष सोनिया गांधी के खरबों रुपये स्विस बैंक के खाते में जमा है. इस खाते को राजीव गांधी ने खुलवाया था.

स्विस पत्रिका Schweizer Illustrierte के 19 नवम्बर, 1991 के अंक में प्रकाशित एक खोजपरक समाचार में तीसरी दुनिया के 14 नेताओं के नाम दिए गए है। ये वो लोग हैं जिनके स्विस बैंकों में खाते हैं और जिसमें अकूत धन जमा है। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का नाम भी इसमें शामिल है।
यह पत्रिका कोई आम पत्रिका नहीं है. इस पत्रिका की लगभग 2,15,000 प्रतियाँ छपती हैं और इसके पाठकों की संख्या लगभग 9,17,000 है जो पूरे स्विट्ज़रलैंड की व्यस्क आबादी का छठा हिस्सा है।

रुसी खुफिया एजेंसी ने भी अपने दस्‍तावेजों में लिखा है कि रुस के साथ हुए सौदा में राजीव गांधी को अच्‍छी खासी रकम मिली थी, जिसे उन्‍होंने स्विस बैंके अपने खातों में जमा करा दिया था. इस खाता को राजीव गांधी ने खुलवाया था.

एक सूचना जो संसार भर में साझा की गयी अपने भारत का मीडिया उसे दिखने का सहस नहीं जुटा पाया ! ऐसा भी कहा जाता है की खबर को दबाने के लिए भारत की मीडिया को साध लिया (Manange) गया था ! लोकतन्त्र लंगड़ा हुए जा रहा था पर लोकतन्त्र की एक तथाकथित टाँग अर्थात मीडिया लोकतन्त्र को शक्ति प्रदान करने की बजाए राजीव गांधी की रक्षा कवच बनकर खड़ा हुआ था ! ये खबर यदि झूटी थी तो कांग्रेस ने सत्तासीन होने के बाद भी इसके विरुद्ध कोई कार्यवाही क्यों नहीं की !

खैर, मुद्दा यह है की कांग्रेस वाले बताये की विदेश में देश का अपमान किसने किया ! उस मोदी ने जिसने विदेशी जमीन पर खड़े होकर देश के वास्तिविक हालातो का सच कहने का साहस दिखाया या उस राजीव गांधी ने जिसका नाम फोटो खाता संख्या और लूट की रकम का खुलासा विदेशी जमीन पर कोई विदेशी पत्रकार विदेशी पत्रिका में कर रहा था !

इसके पहले राजीव गांधी पर बोफोर्स में दलाली खाने का आरोप लग चुका है. डा. येवजेनिया एलबर्टस भी अपनी पुस्‍तक 'The state within a state - The KGB hold on Russia in past and future' में इस बात का खुलाया किया है कि राजीव गांधी और उनके परिवार को रुस के व्‍यवसायिक सौदों के बदले में लाभ मिले हैं. इस लाभ का एक बड़ा भाग स्विस बैंक में जमा किया गया है.

रुस की जासूसी संस्‍था केजीबी के दस्‍तावेजों में भी राजीव गांधी के स्विस खाते होने की बात है. जिस वक्‍त केजीबी दस्‍तावेजों के अनुसार सोनिया गांधी अपने अवयस्‍क लड़के (जिस वक्‍त खुलासा किया गया था, उस वक्‍त राहुल गांधी वयस्‍क नहीं थे) के बदले संचालित करती हैं. इस खाते में 2.5 बिलियन स्विस फ्रैंक है, जो करीब 2.2 बिलियन डॉलर के बराबर है. यह 2.2 बिलियन डॉलर का खाता तब भी सक्रिय था, जब राहुल गांधी जून 1998 में वयस्‍क हो गए थे. गांधी परिवार ने कभी इस रिपोर्ट का औपचारिक रूप से खंडन नहीं किया और ना ही इसके खिलाफ विधिक कार्रवाई की बात कही.

1948 से 2014 तक कांग्रेस द्वारा लूटी गयी कुल अवैध वित्तीय प्रवाह की कीमत कम से कम 462 बिलियन डालर के आसपास आंकी गई है, जो लगभग 20 लाख करोड़ के बराबर है।
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Tuesday, May 26, 2015

गाँधी नेहरु का प्रपंच

भारत में ढोंगी लोग बहुत लोकप्रिय होते है आप गाँधी को ही देख लीजिये शायद इतिहास में यही पढ़ाया जाता है कि गाँधीजी. . .आइये आज जानते है उनकी कुछ महानताए
महानता 1. . . . . .शहीद-ए-आजम भगतसिंह को फांसी दिए जाने पर अहिंसा के महान पुजारी गांधी ने कहा था. . .हमें ब्रिटेन के विनाश के बदले अपनी आजादी नहीं चाहिए।’’ और आगे कहा. . .‘‘भगतसिंह की पूजा से देश को बहुत हानि हुई और हो रही है वहीं (फांसी) इसका परिणाम गुंडागर्दी का पतन है। ऐसे बदमाशो को फांसी शीघ्र दे दी जाए ताकि 30 मार्च से करांची में होने वाले कांग्रेस अधिवेशन में कोई बाधा न आवे" ।
अर्थात् गांधी की परिभाषा में किसी को फांसी देना हिंसा नहीं थी ।

महानता 2 . . . . . . इसी प्रकार एक ओर महान्क्रा न्तिकारी जतिनदास को जब आगरा में अंग्रेजों ने शहीद किया तो गांधी आगरा में ही थे और जब गांधी को उनके पार्थिक शरीर पर माला चढ़ाने को कहा गया तो उन्होंने साफ इनकार कर दिया अर्थात् उस नौजवान द्वारा खुद को देश के लिए कुर्बान करने पर भी गांधी के दिल में किसी प्रकार की दया और सहानुभूति नहीं उपजी, ऐसे थे हमारे अहिंसावादी गांधी।

महानता 3 . . . . . जब सन् 1937 में कांग्रेस अध्यक्ष के लिए नेताजी सुभाष और गांधी द्वारा मनोनीत सीतारमैया के मध्य मुकाबला हुआ तो गांधी ने कहा. . .यदि रमैया चुनाव हार गया तो वे राजनीति छोड़ देंगेलेकिन उन्होंने अपने मरने तक राजनीति नहीं छोड़ी जबकि रमैया चुनाव हार गए थे।

महानता 4 . . . . . .इसी प्रकार गांधी ने कहा था. . . . .पाकिस्तान उनकी लाश पर बनेगालेकिन पाकिस्तानउनके समर्थन से ही बना । ऐसे थे हमारे सत्यवादी गांधी ।

महानता 5 . . . . . . इससे भी बढ़कर गांधी और कांग्रेस ने दूसरे विश्वयुद्ध में अंग्रेजों का समर्थन किया तो फिर क्या लड़ाई में हिंसा थी या लड्डू बंट रहे थे ? पाठक स्वयं बतलाएं ?

महानता 6 . . . . . .गांधी ने अपने जीवन में तीन आन्दोलन (सत्याग्रह) चलाए और तीनों को ही बीच में वापिस ले लिया गया फिर भी लोग कहते हैं कि आजादी गांधी ने दिलवाई।

महानता 7 . . . . .इससे भी बढ़कर जब देश के महान सपूत उधमसिंह ने इंग्लैण्ड में माईकल डायर को मारा तो गांधी ने उन्हें पागल कहा इसलिए नीरद चौधरी ने गांधी को दुनियां का सबसे बड़ा सफल पाखण्डी लिखा है।

महानता 8 . . . . . इस आजादी के बारे में इतिहासकार CR मजूमदार लिखते हैं भारत की आजादी का सेहरा गांधी के सिर बांधना सच्चाई से मजाक होगा।
यह कहना कि सत्याग्रह व चरखे से आजादी दिलाई बहुत बड़ी मूर्खता होगी।
इसलिए गांधी को आजादी का हीरोकहना उन क्रान्तिकारियों का अपमान है जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना खून बहाया। यदि चरखों की आजादी की रक्षा सम्भव होती है तो बार्डर पर टैंकों की जगह चरखे क्यों नहीं रखवा दिए जाते. . . . . .?

अगर आप सहमत है तो इसकी सच्चाई "Share" कर देश के सामने पाखण्डी को उजागर करें।. . . . . .जय हिन्द. . . . .जय भारत
शहीदे आज़म भगत सिंह को फांसी कि सजा सुनाई जा चुकी थी, इसके कारण हुतात्मा चंद्रशेखर आज़ाद काफी परेशान और चिंतित हो गए। भगत सिंह की फांसी को रोकने के लिए आज़ाद ने ब्रिटिश सरकार पर दवाब बनाने का फैसला लिया इसके लिए आज़ाद ने गांधी से मिलने का वक्त माँगा लेकिन गांधी ने कहा कि वो किसी भीउग्रवादी से नहीं मिल सकते।
गांधी जानते थे कि अगर भगतसिंह और आज़ाद जैसे क्रन्तिकारी और ज्यादा दिन जीवित रह गए तो वो युवाओं के हीरो बन जायेंगे। ऐसी स्थिति में गांधी को पूछनेवाला कोई ना रहता। हमने आपको कई बार बताया है कि किस तरह गांधी ने भगत सिंह को मरवाने के लिए एक दिन पहले फांसी दिलवाई। खैर हम फिर से आज़ाद कि व्याख्या पर आते है। गांधी से वक्त ना मिल पाने का बाद आज़ाद ने नेहरू से मिलने का फैसला लिया , 27 फरवरी 1931 के दिन आज़ाद ने नेहरू से मुलाकात की। ठीक इसी दिन आज़ाद ने नेहरू के सामने भगत सिंह की फांसी को रोकने की विनती की। बैठक में आज़ाद ने पूरी तैयारी के साथ भगत सिंह को बचाने का सफल प्लान रख दिया। जिसे देखकर नेहरू हक्का -बक्का रह गया क्यूंकि इस प्लान के तहत भगत सिंह को आसानी से बचाया जा सकता था। नेहरू ने आज़ाद को मदद देने से साफ़ मना कर दिया इस पर आज़ाद नाराज हो गए और नेहरू से जोरदार बहस हो गई फिर आज़ाद नाराज होकर अपनी साइकिल पर सवार होकर अल्फ्रेड पार्क की होकर निकल गए। पार्क में कुछ देर बैठने के बाद ही आज़ाद को पोलिस ने चारो तरफ से घेर लिया। पोलिस पूरी तैयारी के साथ आई थी जेसे उसे मालूम हो कि आज़ाद पार्क में ही मौजूद है।

आखरी साँस और आखरी गोली तक वो जाबांज अंग्रेजो के हाथ नहीं लगा ,आज़ाद की पिस्तौल में जब तक गोलियाँ बाकि थी तब तक कोई अंग्रेज उनके करीब नहीं आ सका।
आखिरकार आज़ाद जीवन भरा आज़ाद ही रहा और उस ने आज़ादी में ही वीरगति को प्राप्त किया।
अब अक्ल का अँधा भी समझ सकता है कि नेहरु के घर से बहस करके निकल कर पार्क में 15 मिनट अंदर भारी पोलिस बल आज़ाद को पकड़ने के लिए बिना नेहरू की गद्दारी के नहीं पहुँचा जा सकता था।
नेहरू ने पोलिस को खबर दी कि आज़ाद इस वक्त पार्क में है और कुछ देर वहीं रुकने वाला है। साथ ही कहा कि आज़ाद को जिन्दा पकड़ने की भूल ना करें नहीं तो भगतसिंह
की तरफ मामला बढ़ सकता है। लेकिन फिर भी कांग्रेस कि सरकार ने नेहरू को किताबो में बच्चो का क्रन्तिकारी चाचा नेहरू बना दिया और आज भी किताबो में आज़ाद को "उग्रवादी" लिखा जाता है।
लेकिन आज सच को सामने लाकर उस जाँबाज को आखरी सलाम देना चाहते हो तो इस पोस्ट को शेयर करके सच्चाई को सभी के सामने लाने में मदद करें।
- Mahaveer Singh Rathore 

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Monday, May 25, 2015

गौ हत्या: अंग्रेजो का रचित एक षड्यंत्र ~ हिन्दू जागृति मंच

गौ हत्या: अंग्रेजो का रचित एक षड्यंत्र ~ हिन्दू जागृति मंच

नेहरू/गांधी परिवार का सच (भाग- 3 ) .....

नेहरू/गांधी परिवार का सच (भाग- 3 ) .....

एस. सी. भट्ट की एक पुस्तक “The
great divide: Muslim
separatism and partition” (ISBN-13:9788121205917)
के अनुसार --जवाहरलाल नेहरू की बहन विजय लक्ष्मी अपने पिता के कर्मचारी सयुद हुसैन के साथ भाग गई.
तो मोतीलाल नेहरू जबरदस्ती उसे वापस ले आया और एक रंजीत पंडित नाम के एक आदमी के साथ उसकी शादी कर  ली. इंदिरा प्रियदर्शिनी को ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में भर्ती कराया गया था लेकिन वहां से बेकार प्रदर्शन के लिए बाहर निकाल दिया गया!.बाद में उसे शांतिनिकेतन विश्वविद्यालय में भर्ती कराया गया था, लेकिन, रवीन्द्रनाथ टैगोर ने उसे वहां से खराब आचरण के लिए बहर निकाल दिया !

शांति निकेतन से निकले जाने के बाद इंदिरा अकेलेपन से ग्रष्ट हो गयी!उसकी माँ कि तपेदिक से मृत्यु हो चुकी थी और बाप राजनीति में व्यस्त था! इस अकेलेपन में उसे साथ मिला फ़िरोज़ खान नाम के एक युवक का जो उन दिनों मोतीलाल नेहरु की हवेली में शराब आदि कि सप्लाई करने वाले एक पंसारी नवाब खान का बेटा था! फिर महाराष्ट्र के राज्यपाल डा. श्री-प्रकाश ने नेहरू को इस बारे में चेतावनी भी दी थी कि इंदिरा का फिरोज खान के साथ एक अवैध संबंध चल रहा था!फ़िरोज़ खान इंग्लैंड में पढ़ा हुआ एक युवक था जो इंदिरा से बहुत सहानुभूति रखता था! जल्दी ही इंदिरा ने अपना धरम फिर से बदल लिया और मुस्लिम धर्म अपना के फिरोज से लंदन कि एक मस्जिद में शादी करली! अब इंदिरा प्रियदर्शनी नेहरु का नाम बदल कर मैमुना बेगम हो चूका था!कमला नेहरु इस बात से जल भुन गयी! उधर जवाहर लाल नेहरु भी परेशान था क्यूंकि इससे फिर उसके राजनितिक जीवन पर असर पड़ना था!तो अब जवाहर लाल ने फ़िरोज़ खानको उसका उपनाम बदल कर गाँधी रखने को कहा! 

और उसे विश्वास दिलवाया कि सिर्फ उपनाम खान कि जगह गाँधी इस्तेमाल करो और धरम बदलने कि भी कोई जरुरत नहीं है! ये सिर्फ एक एफिडेविट से नाम बदलने जैसा था! तो फ़िरोज़ खान अब फ़िरोज़ गाँधी बन गया लेकिन ये नाम उतना ही अजीब लगता है जितना कि अगर किसी का नाम बिस्मिल्लाह शर्मा रख दिया जाये !दोनों ने अपना उपनाम बदल लिया और जब दोनों भारत आये तो भारत कि जनता को बेवकूफ बनाने के लिए हिन्दू विधि विधान से शादी कर दी गयी! तो अब इंदिरा गाँधी कि आने वाली नसल को एक नया फेंसी नाम गाँधी मिल गया था! नेहरु और गाँधी ये दोनों नाम ही इस परिवार के खुद के बनाये हुए उपनाम हैं! जैसे एक गिरगिट अपना रंग बदलता है उसी तरह इस वंश ने अपनी गतिविधयों को छुपाने के लिए अपने नाम बदलें हैं! यह खबर मोहनदास करमचन्द गाँधी को मिली तो उन्होंने ताबडतोड नेहरू को बुलाकर समझाया, 

राजनैतिक छवि की खातिर फ़िरोज को मनाया कि वह अपना नाम गाँधी रख ले. उन्होंने कहा था की भारत की जनता मुझसे बहुत प्यार करती है .......और वो मेरे नाम को स्वीकार लेगी !. यह एक आसानकाम था कि एक शपथ पत्र के जरिये, बजाय धर्म बदलने के सिर्फ़ नाम बदला जाये... तो फ़िरोज खान (घांदी) बन गये फ़िरोज गाँधी । और विडम्बना यह है कि सत्य-सत्य का जाप करने वाले और "सत्य के साथ मेरे प्रयोग" लिखने वाले गाँधी ने इस बात का उल्लेख आज तक कहीं नहीं किया, और वे महात्मा भी कहलाये । ंअब बात करते हैं इस परिवार के उस झोल-झाल की जो आपने किसी हिंदी सिनेमा में भी नहीं देखा होगा!कौन किसका बेटा है और किसका बाप कौन है! शायद इन्हें खुद भी नहीं पता होगा- अब इंदिरा गाँधी को हुए दो बेटे! राजीव गाँधी और संजय गाँधी!संजय गाँधी का असली नाम रखा गया था संजीव गाँधी! (राजीव के नामके साथ तुकबंदी वाला, जैसे पहले नाम रखा करते थे लोग !)अब संजीव से संजय बनने के पीछे भी रोचक कहानी है!अब हुआ ये की जो ये संजीव गाँधी था,ये ब्रिटेन के अन्दर कार चोरी के केस में पकड़ा गया और इसका पासपोर्ट जब्त कर दिया गया!

अब इस चालबाज़ औरत इंदिरा गांधी के निर्देश पर, तत्कालीन भारतीय ब्रिटेन के राजदूत, कृष्णा मेनन ने वहां प्रभाव का दुरुपयोग करके , संजीव गाँधी का नाम बदलकर संजय कार दिया और एक नया पासपोर्ट जारी कार दिया! अब संजीव गाँधी संजय गाँधी के नाम से जाना जाने लगा!अब ये गलतफ़हमी भी दूर किये देता हूँ कि इंदिरा गाँधी के दोनों सपूत राजीव गाँधी और संजय गाँधी सगे भाई थे या नहीं! ये बात जग जाहिर थी कि जब राजीव
गाँधी का जनम हुआ तब इंदिरा गाँधी और उसके पति फिरोज (खान) गाँधी अलग अलग रह रहे थे, लेकिन उनमें तलाक नहीं हुआ था!
जय हिन्द !!
क्रमशः भाग ४ में पढ़े ........
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Friday, May 22, 2015

नेहरू/गांधी परिवार का सच (भाग- २ ) .....

मथाई जी ने एक पुस्तक
“Reminiscences of the
Nehru Age”(ISBN-13:9780706906219) 'लिखी ।

किताब से पता चलता है कि वहाँ जवाहर लाल नेहरू और माउंटबेटन एडविना (भारत, लुईस माउंटबेटन को अंतिम वायसराय की पत्नी) के बीच गहन प्रेम प्रसंग था..ये प्रेम सम्बंद इंदिरा गांधी के लिए महान शर्मिंदगी का एक स्रोत था! इंदिरा गाँधी अपने पिता जवाहर लाल नेहरु को इस सम्बंद के बारे में समझाने हेतु मोलाना अबुल कलाम आज़ाद कि मदद लिया करती थी।यही नहीं जवाहर लाल का सरोजिनी नायडू की पुत्री पद्मजा नायडू के साथ भी प्रेम प्रसंग चल रहा था, जिसे बंगाल के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया था!

 इस बात का खुलासा भी हुआ है कि जवाहर लाल नेहरु अपने कमरे में  पद्मजा नायडू कि तस्वीर रखते थे जिसे इंदिरा गाँधी हटा दिया करती थी । इन घटनाओं के कारन पिता-पुत्री के रिश्ते तनाव से भरे रहते थे! उपरोक्त सम्बन्धों के अतिरिक्त भी जवाहर लाल नेहरु के जीवन में बहुत सी अन्य महिलाओं से नाजायज़ ताल्लुकात रहे हैं! नेहरु का बनारस कि एक सन्यासिन श्रद्धा माता के साथ भी लम्बे समय तक प्रेम प्रसंग चला! ये सन्यासिन काफी आकर्षक थी और प्राचीन भारतीय शास्त्रों और पुराणों में निपुण विद्वान थी!श्रधा माता के बारे में-१९४८ में वाराणसी से एक सन्यासिन दिल्ली आई जिसका काल्पनिक नाम श्रद्धा माता था । वह संस्कृत की विद्वान थी और कई सांसद उसके व्याख्यान सुनने को बेताब रहते थे ।वह भारतीय पुरालेखों और सनातन संस्कृति की अच्छी जानकार थी । 

नेहरू के पुराने कर्मचारी एस.डी.उपाध्याय ने एक हिन्दी का पत्र नेहरू को सौंपा जिसके कारण नेहरू उस सन्यासिन को एक इंटरव्यू देने को राजी हुए । चूँकि देश तब आजाद हुआ ही था और काम बहुत था, नेहरू ने अधिकतर बार इंटरव्य़ू आधी रात के समय ही दिये । मथाई के शब्दों में - एक रात मैने उसे पीएम हाऊस से निकलते देखा, वह बहुत ही जवान, खूबसूरत और दिलकश थी - । एक बार नेहरू के लखनऊ दौरे के समय श्रध्दामाता उनसे मिली और उपाध्याय जी हमेशा की तरह एक पत्र लेकर नेहरू के पास आये, नेहरू ने भी उसे उत्तर दिया, और अचानक एक दिन श्रद्धा माता गायब हो गईं, किसी के ढूँढे से नहीं मिलीं । नवम्बर १९४९ में बेंगलूर के एक कॉन्वेंट से एक सुदर्शन सा आदमी पत्रों का एक बंडल लेकर आया । उसने कहा कि उत्तर भारत से एक युवती उस कॉन्वेंट में कुछ महीने पहले आई थी और उसने एक बच्चे  को जन्म दिया । उस युवती ने अपना नाम पता नहीं बताया और बच्चे के जन्म के तुरन्त बाद ही उस बच्चे को वहाँ छोडकर गायब हो गई थी ।

उसकी निजी वस्तुओं में हिन्दी में लिखे
कुछ पत्र बरामद हुए जो प्रधानमन्त्री द्वारा लिखे गये हैं, पत्रों का वह बंडल उस आदमी ने अधिकारियों के सुपुर्द कर दिया । मथाई लिखते हैं- मैने उस बच्चे और उसकी माँ की खोजबीन की काफ़ी कोशिश की, लेकिन कॉन्वेंट की मुख्य मिस्ट्रेस, जो कि एक विदेशी महिला थी, बहुत कठोर अनुशासन वाली थी और उसने इस मामले में एक शब्द भी किसी से नहीं कहा अब इस परिवार कि चालाकियों और षड़यंत्र के बारे में संदेह पैदा करने वाली कुछ घटनाओं को याद करते हैं ! नेताजी सुभाष चंद्र बोस और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी भारत के प्रधानमंत्री के पद के लिए जवाहरलाल नेहरू के प्रतियोगियों थे और उन दोनों को रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हो गई.इन सभी तथ्यों को जानने के बाद, वहाँ बाल दिवस के रूप में नेहरू के जन्मदिन को मनाना कहाँ तक उचित है!?
जय हिन्द !!
क्रमशः भाग ३ में पढ़े .......
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Thursday, May 21, 2015

नेहरू/गांधी परिवार का सच (भाग- १)

घटना शुरू होती है जवाहर लाल के पर -दादाओं से! इनमे दो नाम विशेष रूप सेलेना चाहूँगा!एक तो था राज कौल जिसके बाप का नाम था गंगू! गंगू ने सिखों के गुरुगोविन्द सिंह के बेटों को औरंगजेब के हवाले करवा दिया था गद्दारी करके !जिसके कारन हिन्दू और सिख गंगू को ढून्ढ रहे थे! अपनी जान बचाने के लिए गंगू कश्मीर से आकर डेल्ही आ गया जिसके बारे में औरंगजेब के वंशज, फरुख्शियर को पता चल गया! उसने गंगू को पकड़कर इस्लाम कबूल करनेको कहा! बदले में उसे नहर के पार कुछ जमीन देदी!दूसरा नाम है गियासुदीन गाजी जो राजकोल की औलाद था! यही था मोतीलाल नेहरु का बाप!अब ये जो गियासुदीन था वो 1857कि क्रांति से पहले मुग़ल साम्राज्य के समय में एक शहर का कोतवाल हुआ करता था! और 1857 कि क्रांति के बाद, जब अंग्रेजों का भारत पर अच्छे से कब्ज़ा हो गया तो अंग्रेजों ने मुगलों का क़त्ल-ए-आम शुरू कर दिया!ब्रिटिशर्स ने मुगलों का कोई भी दावेदार न रह जाये, इसके लिए बहुत खोज करके सभी मुगलों और उनके उत्तराधिकारियों का सफाया किया!दूसरी तरफ अंग्रेजों ने हिन्दुओं पर निशाना नहीं किया हालाँकि अगर किसी हिन्दू के तार मुगलों से जुड़े हुए थे तो उन पर भी गाज गिरी! अब इस बात से डरकर कुछ मुसलमानों ने हिन्दू नाम अपना लिए जिससे उन्हें छिपने में आसानी हो सके!


अब इस गियासुदीन ने भी हिन्दू नाम अपना लिया!डर और चालाकी इस खानदान कि बुनियाद से ही इनका गुण रहा है!इसने अपना नाम रखा गंगाधर और नहर के साथ रहने के कारन अपना उपनाम इसने अपनाया वो था नेहरु!
(उस समय वो लाल-किले के नज़दीक एक नहर के किनारे पर रहा करता था!) और शायद यही कारन है कि इस
उपनाम का कोई भी व्यक्ति नहीं मिलेगा आपको पूरी दुनिया में!एम् के सिंह कि पुस्तक
“Encyclopedia of Indian War of Independence” (ISBN:81-261-3745-9)
के 13वे संस्करण में लेखक ने

इसका विस्तार से उल्लेख किया है , लेकिन भारत सरकार हमेशा से इस तथ्य को छिपाती रही है !उस समय सिटी कोतवाल का दर्ज़ा आज के पुलिस कमिश्नर कि तरह एक बहुत बड़ा दर्जा हुआ करता था और ये बात जग-ज़ाहिर है
कि उस समय मुग़ल साम्राज्य में कोई भी बड़ा पद हिन्दुओं को नहीं दिया जाता था! विदेशी मूल के मुस्लिम लोगों को ही ऐसे पद दिए जाते थे! जवाहर लाल नेहरु कि दूसरी बहिन कृष्ण ने भी ये बात अपने संस्मरण में कही है
कि जब बहादुर शाह जफ़र का राज था तब उनका दादा सिटी कोतवाल हुआकरता था! जवाहरलाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा में कहा गया है कि उसने अपने दादा की एक तस्वीर देखी है जिसमे उसके दादा ने एक मुगल ठाकुर की तरह कपडे पहने हैं और चित्र में दिखाई देता है कि वह लंबे समय से और बहुत मोटी दाढ़ी रख रहा था, एक स्लिम
टोपी पहने हुए था और उसके हाथ में दो तलवारें लिए हुए था!उसने ये भी लिखा कि उसके दादा और रिवार को अंग्रेजों ने हिरासत में ले लिए था , जबकि असली कारण का उल्लेख तक नहीं किया! जोकि ये था कि वो लोग मुगलों से जुड़े हुए थे ! बल्कि बहाना ये बनाया कि क्यूंकि वो लोग कश्मीरी पंडित थे, इसलिए उनके साथ ऐसा किया गया!19 वीं सदी के उर्दू साहित्य, विशेष रूप से ख्वाजा हसन निज़ामी का काम , इस बात को पूरी तरह साबित करता है कि कैसे उस समय मुगलों और मुसलमानों को परेशानी उठानी पड़ी थी! और हर सम्भावना में नेहरु का दादा और उसका परिवार भी उन दिनों उनके साथ था!जवाहर लाल नेहरु एक ऐसा व्यक्ति था जिसे पूरा भारत इज्ज़त कि नज़र से देखता है! वह निस्संदेह एक बहुत ही अच्छा राजनीतिज्ञ और एक प्रतिभाशाली इंसान था! लेकिन कमाल कि बात देखिये कि उसके जनम स्थान पर भारत सरकार ने कोई भी स्मारक नहीं बनवाया है आजतक भी बनवाएं भी किस मुह से! बे-इज्ज़ती जो होगी! इनका कच्चा चिटठा बहार जो आ जायेगा! कारण में बतला देता हूँ! जवाहर लाल का जन्म हुआ था- 77 , मीरगंज, अलाहाबाद में! एक वेश्यालय में!अलाहाबाद में बहुत लम्बे समय तक वो इलाका वेश्यावृति के लिए प्रसिद्द है! और ये अभी हाल ही में वेश्यालय नहीं बना है बल्कि जवाहर लाल के जनम से बहुत पहले तक भी वहां यही काम होता था ।उसी घर का कुछ हिस्सा जवाहर लाल
नेहरु के बाप मोतीलाल ने लाली जान नाम कि एक वेश्या को बेच दिया था जिसका नाम बाद में इमाम-बाड़ा पड़ा!\
यदि किसी को इस बात में कोई भी संदेह है तो आप उस जगह की सैर कर आयें!कई भरोसेमंद स्रोतों और
encyclopedia.com और विकिपीडिया भी इस बात कि पुष्टि करता है!बाद में मोतीलाल अपने परिवार के साथ
आनंद भवन में रहने आ गए! अब ध्यान रहे कि आनंद भवन नेहरु परिवार का पैतृक घर तो है लेकिन जवाहर लाल नेहरु का जन्म स्थान नहीं!अब ज़रा इस परिवार के बहुत ही ज्यादा आदरनीय लोगो के चरित्र पर प्रकाश डालता हूँ !भारतीय सिविल सेवा के एम ओ मथाई जिन्होंने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के निजी सचिव के रूप में भी कार्य किया.
जय हिन्द !!
क्रमशः भाग २ में पढ़े

Saturday, May 16, 2015

सिकन्दर ने नहीं महाराज पुरु ने सिकन्दर को हराया था

सिकन्दर ने नहीं महाराज पुरु ने सिकन्दर को हराया था
झेलम और चेनाब नदियों के बिच पुरु का राज्य था. सिकन्दर के साथ हुई मुठभेड़ में पुरु परास्त हुआ किन्तु सिकन्दर ने उसका प्रदेश उसे लौटा दिया-झा एंड श्रीमाली, पृष्ठ १७१ 

सिविल सेवा की तयारी के दौरान दुर्भाग्यवश झा एंड श्रीमाली जैसे नीच और मुर्ख वामपंथी इतिहासकारों द्वारा लिखित ये मानक इतिहास हमें बार बार पढ़ना पढ़ा जो अपनी शौर्य और वीरता के लिए जगत प्रसिद्द महान राजा पुरु का इतिहास सिकन्दर महान का गुणगान करते हुए महज उपर्युक्त दो वाक्यों में सिमटा दिया है और हर बार उसके इस दो वाक्यों के पास अपना पेन्सिल और कलम तोड़ कर भड़ास निकालने को बाध्य होता क्योंकि हर बार मुझे ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के इतिहासकार रोबिन लेन फोक्स के द्वारा सिकन्दर पर लिखित इतिहास की पुस्तक “अलेक्जेंडर द ग्रेट” पर आधारित २००४ में बनी ओलिवर स्टोन की फिल्म “अलेक्जेंडर” मुझे याद आ जाता जिसमे इन धूर्त वामपंथी इतिहासकारों के इतिहास के विपरीत यह दिखाया गया की सिकन्दर की सेना पुरु सेना की वीरता और उसके गज सेना के आतंक से पस्त हो गयी और जब गुस्से में सिकन्दर खुद पुरु से द्वंद करने के लिए बढ़ा तो पुरु का पुत्र ने उसके घोड़े का अंत कर दिया तथा पुरु का तीर सीधे उसके पेट में जा धंसा और वह जमीन पर गिरकर बेहोश हो गया. यूनानी सैनिक उसे युद्ध भूमि से किसी प्रकार उठा ले भागे. सिकन्दर स्वस्थ हुआ परन्तु काफी कमजोर था और उसी हालात में वह वापस लौटने को बाध्य हो गया.
दूसरी तरफ १९५० के दशक में बनी सोहराब मोदी का फिल्म “सिकन्दर” भी इसी प्रकार युद्ध की घटना चित्रित किया है, परन्तु वह इन धूर्त वामपंथियों के मिथ्याचार का शिकार हो इसे एक टर्निंग पॉइंट दे देता है. सोहराब मोदी के फिल्म में सिकन्दर के घोड़ा को तीर लगने और उसके जमीन पर गिरने के बाद जब महाराज पुरु भाला से बार करने लगते हैं तो उन्हें सिकन्दर की ईरानी प्रेमिका को दिए वो वचन याद आ जाता है जो महाराज पुरु की वीरता से भयभीत सिकन्दर के प्राणों की भीख मांगने पुरु के पास आई थी और पुरु ने उसे वचन दिया था की वह सिकन्दर की हत्या नहीं करेगा. उस वक्त युद्ध से भागने के पश्चात सिकन्दर रात्रि में पुरु के सोते हुए सैनिकों पर हमला करता है और पुरु को बंदी बना लेता है.
सवाल है भारत के नीच और मक्कार वामपंथी इतिहासकार सिकंदर को महान और महाराज पुरु को पराजित क्यों घोषित करता है? इतिहास पर महान शोधकर्ता स्वर्गीय पुरुषोत्तम नागेश ओक कहते हैं की “असत्य का यह घोर इतिहास भारतीय इतिहास में इसलिए पैठ गया है क्योंकि हमको उस महान संघर्ष के जितने भी वर्णन मिले हैं, वे सबके सब यूनानी इतिहासकारों के किए हुए हैं”. वे आगे लिखते हैं, “ऐसा कहा जाता है की सिकन्दर ने झेलम नदी को सेना सहित घनी अँधेरी रात में नावों द्वारा पार कर पुरु की सेना पर आक्रमण किया था. उस दिन बारिस हो रही थी और पोरस के विशालकाय हाथी दलदल में फंस गए. किन्तु यूनानियों के इन वर्णनों की भी यदि ठीक से सूक्ष्म विवेचना करें तो स्पष्ट हो जायेगा की पोरस की गज सेना ने शत्रु शिविर में प्रलय मचा दिया था और सिकन्दर के शक्तिशाली फ़ौज को तहस-नहस कर डाला था”.
एरियन लिखता है भारतीय युवराज ने सिकन्दर को घायल कर दिया और उसके घोड़े बुक फेलस् को मार डाला.
जस्टिन लिखता है की ज्यों ही युद्ध प्रारम्भ हुआ पोरस ने महानाश करने का आदेश दे दिया.
कर्टियस लिखता है की “सिकन्दर की सेना झेलम नदी पर पड़ाव डाले था. पुरु की सेना नदी तैर कर उस पार पहुंचकर सिकन्दर की सेना के अग्रिम पंक्ति पर जोरदार हमला किया. उन्होंने अनेक यूनानी सैनिकों को मार डाला. मृत्यु से बचने के लिए अनेक यूनानी नदी में कूद पड़े, किन्तु वे सब उसी में डूब गए”.
कर्टियस हाथियों के आतंक का वर्णन करते हुए आगे लिखता है, “इन पशुओं ने घोर आतंक उत्पन्न कर दिया था, और उनकी चिग्घार ने घोड़ों को न केवल भयातुर कर दिया जिससे वे बिगडकर भाग उठते बल्कि घुडसवारों के ह्रदय भी दहला देते. उन्होंने इतनी भगदड़ मचाई की अनेक विजयों के ये शिरोमणि अब ऐसे स्थान की खोज में लग गए जहाँ इनको शरण मिल सके. अब सिकन्दर ने छोटे छोटे टुकड़ों में हाथियों पर हमले का आदेश दिया जिससे आहत पशुओं ने क्रुद्ध हो, आक्रमणकारियों पर भीषण हमला कर दिया, उन्हें पैरों तले रौंद देते, सूंड से पकड़कर हवा में उछल देते, अपने सैनिकों के पास फेंक देते और सैनिक तत्काल उनका सर काट देते.”
डीयोडोरस ने भी पुरु के हस्ती सेना का ऐसा ही वर्णन किया है. ओलिवर स्टोन ने अपने फिल्म में इस घटना को बारीकी से दर्शाया है. अस्तु, यह सब वर्णन स्पष्तः प्रदर्शित करता है की युद्ध या तो सुखी भूमि पर ही लड़ा गया था या भूमि के गीले पन का कोई प्रभाव नहीं पड़ा था और यूनानियों ने सिर्फ अपनी हार का गम मिटाने के लिए हाईडेस्पिस् (झेलम) की लड़ाई के बारे में मिथ्या फैलाया. रात्रि के अंधकार में छिप कर हमला कर पुरु को परास्त करने और दल दल में पुरु के हस्ती सेना के फंस जाने के सच्चे झूठे यूनानियों के लिखित इतिहास से इतना तो स्पष्ट हो जाता है की भारत के सीमावर्ती जंगलों में महीनों से सांप बिच्छू का दंश और हैजा मलेरिया आदि बिमारियों को झेलकर पहले से आक्रांत सिकन्दर की सेना पुरु की सेना से आमने सामने लड़ाई में जितने में सक्षम नहीं था इसलिए रात्रि के अंधकार और बारिस का सहारा लिया.
इथोपियाई महाकाव्यों का सम्पादन करने वाले श्री ई ए डव्लू बेंज ने अपनी रचना में सिकन्दर के जीवन और उसके विजय अभियानों का वर्णन सम्मिलित किया है. उनका कहना है की , “झेलम के युद्ध में सिकन्दर की अश्व सेना का अधिकांश भाग मारा गया था. सिकन्दर ने अनुभव कर लिया था की यदि मैं लड़ाई जारी रखूंगा, तो पूर्ण रूप से अपना नाश कर लूँगा. अतः उसने युद्ध बंद कर देने के लिए पोरस से प्रार्थना की. भारतीय परम्परा के अनुरूप ही पोरस ने शरणागत शत्रु का वध नहीं किया. इसके बाद दोनों ने एक संधि पर हस्ताक्षर किए. अन्य प्रदेशों को अपने सम्राज्यधीन करने में, फिर, पोरस की सहायता सिकन्दर ने की.”
मुझे बेंज की बातों में सच्चाई मालूम पड़ती है. भला एक साम्राज्यवादी विजेता अथक प्रयास और अपूरणीय क्षति के बाद विजित राजा को उसके राज्य के साथ साथ अपने द्वारा विजित अन्य प्रदेश भी दे सकता है ताकि वह और शक्तिशाली हो जाए? इसके अतिरिक्त इतिहास में इसप्रकार का कोई और उद्धरण तो मैंने नहीं देखा है, परन्तु विदेशियों के गुलाम वामपंथी इतिहासकार हमे यूनानियों की यही बात मानने को बाध्य करते हैं की सिकन्दर ने पुरु को परास्त किया फिर उदारता दिखाते हुए उसके राज्य लौटा दिए और फिर अपने विजित राज्य का एक हस्सा भी उसे दे दिया. यही तथ्य की पोरस ने सिकन्दर से अपना प्रदेश खोने की अपेक्षा कुछ जीता ही था, प्रदर्शित करता है की वास्तविक विजेता सिकन्दर नहीं महाराज पुरु थे और सिकन्दर को अपना विजित प्रदेश देकर संधि करनी पड़ी थी. हमे जो इतिहास पढाया जाता है वो मुर्ख वामपंथी इतिहासकारों का प्रपंच मात्र है. यह लिखित तथ्य भी की बाद में अभिसार ने सिकन्दर से मिलने से इंकार कर दिया था, सिकन्दर की पराजय का संकेतक हैं. यदि सिकन्दर विजेता होता तो उसकी अधीनता स्वीकार कर चूका अभिसार कभी भी उसकी अवहेलना करने की हिम्मत नहीं करता. लौटते वक्त सिकन्दर अपने ही द्वारा विजित क्षेत्रों से वापस लौटने की हिम्मत नहीं जूटा सका. नियार्कास के नेतृत्व में कुछ लोग समुद्र के रास्ते गए तो बाकी सिकन्दर के नेतृत्व में जेड्रोसिया के रेगिस्तान के रास्ते. उस पर भी रास्ते में छोटे छोटे कबीले वालों ने उसकी सेना पर भयंकर आक्रमण कर अपने जन धन और अपमान का बदला लिया. मलावी नामक जनजातियों के बिच तो सिकन्दर मरते मरते बचा था. प्लूटार्क लिखता है की “भारत में सबसे अधिक खूंखार लड़ाकू जाती मलावी लोगों के द्वारा सिकन्दर की देह के टुकड़े-टुकड़े होने ही वाले थे.....” बेबिलोनिया पहुँचते पहुँचते रास्ते में उसके काफी सेना नष्ट हो चुके थे. सिकन्दर का न सिर्फ अहंकार और युद्धपिपासा बुरी तरह दमित हुई थी बल्कि हार, अपमान और सामरिक नुकसान से वह बुरी तरह टूट चूका था और शायद यही कारण है की वह बहुत अधिक शराब पीकर नशे में धुत रहने लगा था और अधिक शराब पिने की वजह से ही वह सिर्फ २८ जून ३२३ BC में मर गया.
जरा सोचिये, यूनानी तो सिकन्दर की हार को जीत बताकर अपने देश की गौरवगाथा और अपना माथा ऊँचा रखने का प्रयास कर रहे थे, परन्तु नीच वामपंथी इतिहासकार अपने ही देश की गौरवगाथा को मिटटी में मिलाकर किसका भला कर रहे हैं? आपको यह भी बता दूँ की सिकन्दर की मौत पश्चात उसकी पत्नी ने ऑगस नामक एक पुत्र को जन्म दिया था, किन्तु कुछ महीनों के भीतर ही सिकन्दर की पत्नी एवं अबोध शिशु मार डाले गए. यदि सिकन्दर विजेता होता तो उसके मरणोंपरांत उसकी पत्नी और बच्चे की यह दुर्दशा नहीं होता.

भारत के मुसलमानों को सबक लेने वाली घटना


पूरी दुनिया के मुसलमानों के लिए भारत में तबाही मचाते भारत के मुसलमान म्यामांर के रोहिंग्या मुसलमानों से सबक ले सकते है, बहुत समय पहले बांग्लादेश के कुछ मुसलमान जाके म्यांमार बस गए | शांतिप्रिय बौद्ध लोगो ने इस शरणार्थी समूह को अपनाने लगा और पूरी तरह इन्हें वह आजादी मिल गयी और कुछ दशको बाद इनकी आबादी भी बढ़ी और फिर इन्होने दिखलाया अपना शांति प्रिय धर्म का कमाल और फिर लगे फ़ैलाने म्यांमार में शांतिप्रिय और पवित्र किताब की बाते| परिणाम आये दिन झगडे, दंगा, मार काट रोज की बाते होने लगी.

इसी बीच वह का शासन सेना के हाथो में चला गया और फिर सैन्य सरकार का ध्यान इन शांतिप्रिय लोगो पर पड़ी और सरकार ने इनके साथ सख्ती दिखाना शुरू किया तो शांतिप्रिय लोग सरकार के साथ भी लड़ने लगे, जिस देश ने उन्हें शरण दिया, रोजगार के मौके दिए उसी देश में आग लगाने में इन्होने जरा सा भी देर नहीं की. उसके बाद सैन्य सरकार ने अपने देश में रहने वाले रोहिंग्या मुसलमानो को अपना नागरिक मानने से इंकार कर दिया है और उनका भयंकर कत्लेआम हुआ, क्योकि पहले रोहिंगाया मुस्लिमो ने कई सालो तक म्यांमार में आतंक मचाया खूब कत्लेआम किया क्योकि उन्हें पता था की बौद्ध लोग शांतिप्रेमी और अहिंसक होते है| लेकिन जब वहां की सैन्य सरकार की खोपड़ी घूम गयी तब उसके इस पुरे समुदाय
के कत्लेआम का छुपा आदेश जारी कर दिया|

फिर बौधो ने पुरे देश से इस शांतिप्रिय सम्प्रदाय के लोगो को खदेड़ना शुरू किया बहुत मारे गए और पिछले दो महीने से चार बोट में करीब ५०० रोहिंग्या मुस्लिम समुद्र में इधर उधर भटक रहे है .. ये पहले बांग्लादेश गये सोचे यहाँ तो इस्लामिक सरकार है शरण दे देगी लेकिन बांग्लादेश सरकार ने इंकार कर दिया .. फिर ये दुसरे मुस्लिम देश मलेशिया गये .. वहां की नौसेना ने भी इन्हें खदेड़ दिया .. फिर ये विश्व के सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेशिया गये .. वहां की सरकार ने भी इन्हें शरण की अनुमति नही दी और दो दिनों तक लंगर लगाने के बाद वहाँ की नौसेना ने इन्हें खदेड़ दिया .. फिर ये थाईलैंड गये वहाँ भी इन्हें अनुमति नही मिली ... ये लोग अपना पेशाब पीकर जिन्दा है ..और अब तक करीब २१ लोगो की मृत्य हो चुकी है .. कल अलजजीरा पर दिखाया की ये अपने लोगो के मृत शरीरो को खाकर जिन्दा है ... इसमें कई बच्चे और महिलाये है.

इन्होने इस्लाम के जनक देश सऊदी अरब से भी इस्लाम और मानवता की खातिर शरण देने की अपील की लेकिन सऊदी अरब सरकार ने इन्हें सीधा मना ही नही किया बल्कि चेतावनी दिया की यदि ये सऊदी समुद्री सीमा में आये तो इन्हें खदेड़ दिया जायेगा ..या इनकी नौकाये डूबा दी जाएगी 

आज भी ये साउथ अंडमान समुद्र में अन्तर्राष्ट्रीय जल क्षेत्र में पड़े है ... कल जब दया करके थाईलैंड की सेना ने इनके नौकाओ पर खाने के पैकेट और पानी की बोतले गिराई तो कुछ पैकेट समुद्र में गिर गये .. इन लोगो ने अपनी जान की परवाह किये बगैर उन्हें उठाने के लिए उफनते समुद्र में छलांग लगा दी 

कल एक मुस्लिम सांसदों और तबलीग जमात के लोगो का एक दल राजनाथसिंह से मिलकर इन्हें भारत में मानवता के आधार पर शरण देने की मांग किया ... बस डर इस बात से है की कही भारत सरकार वोट बैंक के जाल में फंसकर इन्हें अपने यहाँ शरण न दे दे