Monday, January 24, 2011

स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति और राजनीति


अब जबकि हम कल अपना 62 वा गणतंत्र दिवस मनाएंगे लेकिन क्या हम सही मायनो में आजादी के ६२ साल बाद भी आजाद हो गए है | मुझे तो नहीं लगता क्यूंकि जिस संबिधान के बनने के उपलक्ष्य में हम ये गणतंत्र दिवस मानते है आज उसका ही खुले आम उलन्घन हो रहा है, वो भी उलन्घन करने वाला भी कोई अलगवादी या फिर माओवादी नहीं बल्कि किसी राज्य का मुख्यमंत्री हो और उसे परोक्ष रूप से देश की केंद्रीय सता से स्वीकृति मिली हो तो ये सारी बाते ऐसा ही भ्रम पैदा करती है की क्या हम आजाद है ?
संबिधान के धारा 19 (1) (अ) के मुताबिक हमारे देश के सभी नागरिक कुछ भी बोलने और किसी भी प्रकार के अभिव्क्ति के लिए स्वतंत्र है, अगर ऐसा नहीं भी है तो किस देश के कानून में लिखा है की आप अपने राष्ट्रीय पर्व के दिन आप अपने देश के किसी हिस्से में अपना राष्ट्रीय झंडा नहीं फहरा सकते | अगर देश गुलाम रहता तो बात कुछ समझ में भी आती लेकिन किसी आजाद देश और वो भी दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र देश में ये बात तो समझ के परे है | और इसके पीछे तर्क ये दिया जा रहा है की इस से माहौल बिगड़ेगा, उमर अब्दुल्ला की मानें तो इस यात्रा से राज्य में तमाम मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी। वह शायद देश के पहले ऐसे राजनेता हैं जो दुनिया को यह संदेश देने में लगे हैं कि गणतंत्र दिवस के दिन उनके शासन वाले राज्य में राष्ट्रीय ध्वज फहराने से समस्याएं खड़ी हो जाएंगी। आखिर राष्ट्रीय ध्वज फहराने से किसी भी तरह की परेशानी क्यों खड़ी होगी? सवाल यह भी है कि इस आयोजन से किसे और क्या परेशानी हो रही है? क्या उमर को उस परेशानी की परवाह है जिसकी चर्चा कुछ अलगाववादी नेता कर रहे हैं? आखिर उमर अब्दुल्ला को अलगाववादियों की परेशानी से क्यों परेशान होना चाहिए? यह भी एक विडंबना ही है कि कश्मीर समस्या का समाधान तलाशने की राह खोज रहे केंद्र सरकार के वार्ताकार भी उमर अब्दुल्ला की भाषा बोल रहे हैं, लेकिन किन्हीं अज्ञात कारणों से वे भी यह बताने के लिए तैयार नहीं कि इस यात्रा से किसी का क्या अहित हो रहा है? क्या यह सोच राष्ट्रीय चिंता का विषय नहीं बननी चाहिए कि 26 जनवरी के दिन राष्ट्रीय ध्वज फहराने को एक समस्या-सिरदर्द के रूप में रेखांकित किया जा रहा है। जब इस दिन सारे राष्ट्र में लगभग हर गली-कूचे में राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है तो फिर लाल चौक में क्यों नहीं फहराया जा सकता? क्या श्रीनगर का लाल चौक भारत का हिस्सा नहीं? क्या इस स्थल की अपनी ऐसी कोई सत्ता है जो राष्ट्रीय प्रतीकों को स्वीकार नहीं कर सकती? क्या ऐसा भी कुछ है कि भाजपा को राष्ट्रीय ध्वज फहराने का अधिकार नहीं? यदि एक क्षण के लिए यह मान भी लिया जाए कि भाजपा इस आयोजन के जरिए अपना कोई राजनीतिक हित साधना चाहती है तो इसके आधार पर यह सिद्ध करने की कोशिश का क्या मतलब कि यह अनुचित कृत्य है? दुर्भाग्य से उमर अब्दुल्ला यही कर रहे हैं। बेहतर हो कि उमर अब्दुल्ला इस पर विचार करें कि वह भाजपा के इस आयोजन का विरोध कर देश-दुनिया को क्या संदेश दे रहे हैं? उन्हें यह भी बताना चाहिए कि इस आयोजन का विरोध कर उनके कौन से राजनीतिक हित पूरे हो रहे हैं अथवा होने वाले हैं?
और ये महाशय उमर अब्दुला जी उस दिन कहा थे जब रामादान के आखिरी दिन उसी श्रीनगर के लाल चौक जिसे की श्रीनगर का दिल कहा जाता है अलगावादियों ने पाकिस्तानी झंडा फहराया था उस दिन उनका प्रशासन क्या कर रहा था | और ये तो एक तरह से अलागावादीयो के सामने घुटने टेकने जैसी बात हो गयी और उन्हें शाह मिल गया की हिंसा और अराजकता के नाम पर आज उन्होंने झंडा फहराने से रोका कल क्या पता क्या कर दे | और हम अलगावादियों के अनुसार अपने कार्यक्रम चलते रहे तो कुछ दिन बाद हमें दिल्ली में भी स्वतंत्रता दिवस या कुछ और राष्ट्रीय पर्वो को रोकना पड़ सकता क्यूंकि जो लोग कश्मीर में ऐसा चाहते है हो सकता है कुछ दिन बाद ऐसे लोग देश के और हिस्सों में भी हो जाये और उनको राष्ट्रीय पर्वो से कुछ आपति हो तब हम क्या करेंगे, क्या ये घटना एक स्वतंत्र देश के संप्रभुता पर सवालिया निशान नहीं लगाएगी ऐसे में जबकि हमारे पडोसी मौके की ताक में है हमें एकता का परिचय देना चाहिए और हमारी सरकार छद्म धर्मनिरपेक्षता में अपनी राजनीति की रोटिया सेंक रही है|
वैसे भी हमारा देश दुनिया का एक मात्र ऐसा देश है जहा राष्ट्रवाद को आतंकवाद से भी खतरनाक माना जाता है पता नहीं हमारी सरकार इसमें कौन सा धर्मनिरपेक्षता का सन्देश देना चाहती है वैसे जो भी हो रहा है वो सही नहीं हो रहा है और कांग्रेस जो की 74 में आपातकाल जैसी गलती कर चुकी है है और उसका परिणाम भी उसने भुगता था इस गलती की भी उसे सजा भुगतनी पड़ेगी
हुजुर! ये पब्लिक है सब जानती है
-- अक्षय कुमार ओझा
akshaykumar.ojha@gmail.com

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