Thursday, July 14, 2011

आतंकियों के बढ़ते हौसले और हमारी संकीर्ण राजनीति

१३ जुलाई की शाम फिर एक बार मुंबई की व्यस्त जिन्दगी में भूचाल गया | टीवी चैनलों पर फिर से वही लाशो की दिल दहलाने वाली फुटेज और घायलों की चीख पुकार और फिर से वही हमारे राजनीति के महापुरुषों का अपनी राजनीति की रोटी सेकने वाले बयाँ और फिर से वही हम जैसे आम आदमी के दिमाग में आक्रोश की लहर | मुझे तो ये लगता है की अब हमें ऐसे घटनाओ के लिए अभ्यस्त हो जाना चाहिए| क्यूंकि हमारी धर्मनिरपेक्ष सरकार को ऐसे धमाके पसंद है जिससे वो अपनी राजनीति आगे बढ़ा सके या दुसरे शब्दों में कहे तो वो ही ऐसे घृणित काम को बढ़ावा देती है अब हमारे देश के तथाकथित प्रधान मंत्री के दावेदार और कांग्रेस के अमेठी से सांसद राहुल गाँधी को ही ले लीजिये उनका मानना है की हम हर हमले को रोक तो नहीं सकते ना ये बयाँ ही बहुत कुछ साबित कर देता है हमारे भोले राहुल गाँधी के बारे में और हमारे मासूम से राहुल गाँधी जी को ये तो पता होना चाहिए की हम हर हमले को रोक नहीं सकते परन्तु हमले करने वाले को जरुर रोक सकते है हो सकता है उन्हें ये बात बताई गयी हो और वो ठहरे मासूम वो इस बात को कैसे जानेंगे |
अब हमारी सरकार ही ऐसे कामो को बढ़ावा देगी तो ऐसा होगा ही आपको लगता होगा की मैं गुस्से में ही सरकार को कोस रहा हु तो आप गलत है जनाब मैं ऐसे ही कुछ नहीं बोलता अब अगर कोई गलती करे और उसे गलती के बदले कोई सजा के बजाये उसकी खूब खातिरदारी और मेहमाननवाजी की जाये तो उसे देख के और भी कई लोग ऐसा करने की जरुर सोचेंगे | आखिर दुनिया में पहली बार जब दंड संहिता बना होगा तो उसके पीछे कुछ कुछ जरुर कारण होगा और एक सभ्य और अनुशासित समाज या देश के लिए एक सही दंड संहिता जरुर होना चाहिए ताकि हम दंड के जरिये अपराधियों को डरा सके अब जरा मैं अपने देश पर हमलो की एक सूची रहा हूँ |
पहले बात करते है भारतीय सेना के लाल किले के हमले की २२ दिसम्बर २००० को लश्कर- तैयबा के दो आतंकवादी भारतीय सेना के कैंप पर हमले करते है और दो जवानों और एक नागरिक को मार गिराते है सेना के जवाबी करवाई में दोनों हमलावर मारे भी जाते है और उसके बाद अशफाक नाम के सख्श और के खिलाफ करवाई होती है और अशफाक को फांसी की सजा सुनाई जाती है और नतीजा वही आज भी उसकी फाइल गृह मंत्रालय के किसी कोने में पड़ा होगा 
अब बात करते है संसद पर हुए हमले की 13 दिसम्बर 2001 को पांच सशस्त्र हमलावरों ने संसद भवन पर हमला बोल दिया था। जिस समय संसद पर हमला हुआ था तब वहाँ लगभग 300 सांसद और नेता मौजूद थे. इससे पहले कि चरमपंथी संसद भवन के भीतर पहुँच पाते वहाँ सुरक्षाबलों के साथ संघर्ष में वे मारे गए. आतंकवादियों द्वारा की गई अंधाधुंध गोलीबारी में दिल्ली पुलिस के पांच जवान, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की महिला सुरक्षाकर्मी, संसद भवन के दो सुरक्षाकर्मी और एक माली शहीद हो गए थे। गोलीबारी में एक पत्रकार भी गंभीर रूप से घायल हो गया था। बाद में उन्होंने दम तोड़ दिया। सुरक्षाकर्मियों ने संसद भवन पर हमला करने वाले सभी पांचों आतंकवादियों को मार गिराया था। भारतीय संसद पर हमले के मामले में चार चरमपंथियों को गिरफ़्तार किया गया था. बाद में दिल्ली की पोटा अदालत ने 16 दिसंबर 2002 को चार लोगों, मोहम्मद अफज़ल, शौकत हुसैन, अफ़सान और प्रोफ़ेसर सैयद अब्दुल रहमान गिलानी को दोषी करार दिया था. जिनमे से अफसान और प्रोफेसर सैयद अब्दुल रहमान को सबूतों के अभाव में रिहा कर दिया गया और मोहम्मद अफजल और सौकत हुसैन को सजा--मौत की सजा सुनाया गया शौकत और अफजल ने मौत की सजा बरकरार रखने के हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था जबकि दिल्ली पुलिस ने गिलानी और गुरु को बरी करने के फैसले के खिलाफ अपील की थी। जस्टिस पी.वी. रेड्डी और जस्टिस पी.पी. नवलेकर की बेंच ने इन अपीलों पर गुरुवार को 271 पेज का अपना फैसला सुनाया। संसद पर हमले को लोकतंत्र की सवोर्च्च संस्था पर हमला बताते हुए जस्टिस रेड्डी ने कहा कि अफजल के मारे गए उन आतंकवादियों के साथ सम्बन्ध होने के पुख्ता सबूत हैं, जिन्होंने इस जघन्य आतंकवादी हमले को अंजाम दिया था। इसमें कोई शक नहीं है कि संसद पर हमले के आपराधिक षड्यंत्र में वह सिर्फ शामिल था बल्कि इस घटना को अंजाम देने में वह सक्रिय रूप से लिप्त था। अफजल की मौत की सजा को जायज ठहराते हुए जस्टिस रेड्डी ने कहा, 'अगर अफजल को मृत्युदंड दिया गया, तभी समाज की सामूहिक अंतरात्मा संतुष्ट होगी।' सेशन कोर्ट और हाई कोर्ट द्वारा शौकत को सुनाई गई मृत्युदंड की सजा को सुप्रीम कोर्ट ने 10 साल की कठोर कैद में बदलते हुए कहा कि उसे हमले के षड्यंत्र की जानकारी थी, मगर वह संसद पर हमले की योजना बनाने में शामिल नहीं था।
और अब आते है २६ नवम्बर २००८ को हुए उस भीषण हमले पर जिसमे की १० आतंकवादी पडोसी देश से आते है और मुंबई में कत्ले आम मचाते है मारे जाते है और एक पकड़ा जाता है जो अभी तक मुंबई के जेल  में किसी अति विशिष्ट व्यक्ति की तरह रह रहा है सरकार उस पर हर महीने करोडो खर्च करती है भले ही हमारे देश में कई लोगो को भर पेट खाना नसीब हो लेकिन हमारी सरकार अपने पैसे उस कसाई को मन पसंद कबाब खिलाने में जरुर उड़ाती है जैसे वो हमारे देश का गुनाहगार होके हमारा राष्ट्रीय मेहमान हो, अभी तो आतंकी हमलो की बहुत बड़ी सूची है जैसे पुणे के जर्मन बेकरी कांड, २००५ दिवाली एक ठीक पहले एक बाजार में ब्लास्ट, काशी विश्वनाथ ब्लास्ट, ये सब हमले आतंकियों के बढ़ते हौसले को दिखाती है क्यूंकि हमारी धर्मनिरपेक्ष सरकार कोई भी फैसला करने से पहले धर्म जरुर देखती हैं ताकि उनके वोट बैंक पर कोई असर पड़े लोग मरते है तो मरे अब सरकार क्या करे ?
अब जब कोई दूसरा अपराधी ये देखेगा की अगर यहाँ अपराध करने पर ऐसा होता है तो वो एक बार भी करने से पहले सोचेगा नहीं की आगे क्या होगा वो तो करेगा और आगे का उसका कम हमारे आज के महापुरुष करेंगे | अब जब अफजल गुरु, कसाब, असफाक जैसे अपराधियों को मेहमान हम बनायेंगे तो उसके जैसे और भी अपराधी कोई भी आतंकी हमला करने से पहले क्यों सोचेगा हैरानी तो तब होती है जब उच्चतम न्यायलय भी इस मामले में कुछ नहीं करती और हम आम आदमी बस अपना अपना थोडा खून जला के चुप हो जाते है आखिर हमें अपने पेट के लिए भी तो सोचना है बस हमारी इसी कमजोरी को हमारी सरकार अच्छी तरह से जानती है और वो मनमानी करती है | आखिर हमारी सरकार तो अभी पूरा ध्यान आतंकवादियों से हटा के नरेन्द्र मोदी, RSS, बाबा रामदेव, और अन्ना हजारे के पीछे पड़ी हुई है कभी बाबा रामदेव के फंड की जाच करती है तो कभी नरेन्द्र मोदी के पीछे अपना पूरा ध्यान लगाती हैं तो अब आतंकवादियों के लिए समय कौन लगाये पहले अपने बिरोधियो को शांत कर दे फिर देखा जायेगा देश के बिरोधियो को |
धन्य हो हमारी कांग्रेस की सरकार !!
-- अक्षय कुमार ओझा
Contact me at: akshaykumar.ojha@gmail.com

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