Saturday, August 13, 2011

आजाद भारत की प्रमुख समस्याएं


अगर हम आजाद भारत की प्रमुख समस्याओ के बारे में सोचे तो बहुत सारी बाते ध्यान में आती है, भ्रष्टाचार, अशिक्षा, गरीबी आदि आदि बहुत सारी समस्याए और जब हम समस्याओ की जड़ में जाते है तो हमारे दिमाग में सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस आती है, आइये देखते है कैसे?
भ्रष्टाचार: भ्रष्टाचार हमारे देश के लिए एक अभिशाप सा है आजादी के चाहे वो आजादी के तुरंत बाद जीप घोटाला हो यार फिर बोफोर्स दलाली का मुद्दा हो या फिर हमारे मधु कोड़ा जी की ४००० करोड़ का घोटाला हो, ए. राजा और कन्हीमोझी द्वारा किया गया १७६,३७९ करोड़ का महा घोटाला, हमारे माननीय सुरेश कलमाड़ी जी के द्वारा किया गया राष्ट्रमंडल खेल घोटाला सब यहाँ चलता है और हैरत की बात तो ये है की इन सब महानुभावों को सजा होने के बावजूद सता पार्टी के रास्ट्रीय सचिव के द्वारा ये कहना की ये सभी निर्दोष है बिना कहे ही ये कह देती है की हमारी महान सरकार भी इस बंदरबाट में शामिल थी सोचिये इतने बड़े बड़े घोटाले जहा हो रहे हो और उसके बाद भी कोई देश अगर संसार में आर्थिक शक्ति के रूप में उभर रहा हो तो अगर ये घोटाले अगर नहीं होते तो हमारे देश के बहुत बहुत दूर तक कोई नहीं होता निसंदेह हम आज विश्वशक्ति के रूप में उभरे होते|
निरंकुश लोकतंत्र: वैसे कहने को तो हमारा देश विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है लेकिन आप इस बहकावे में न आये तो ही बेहतर है क्यूंकि  हमारे देश की प्रमुख पार्टी के हरकतों से हमें जरा सा भी आभास नहीं होता की हम किसी लोकतान्त्रिक देश के वासी है आइये एक नजर डालते है की ऐसा क्यों हम बोल रहे है, याद कीजिये अपने स्वतंत्रता के दिनों की वो संघर्ष जिसमे हमारे देश के नायको ने अहिंसक और हिंसक दोनों तरह के आन्दोलन चला रखी थी और उन दिनों हमारा देश गुलाम था और हमारे देश में पराये देश की राजशाही थी फिर भी उन विदेशियों को अहिंसक प्रदर्शन करने पर उन्हें कुछ खास ऐतराज़ नहीं था लेकिन अब इस कांग्रेस की सरकार को हम क्या कहे जो की इस देश से लोकतंत्र का नामोनिशान  मिटाने पर तुली है अगर हम इंदिरा गाँधी के तानाशाही को अगर एक गलती को भूल भी जाये तो क्या वर्तमान सरकार की गलतिया भुलाने वाली है| याद कीजिये ५ जून की वो काली रात जहा शांति से प्रदर्शन कर रहे एक संत पर सरकार के इशारो पर लाठिया चलाई गई जिसमे सैकड़ो लोग घायल हुए और साथ में हमारे देश की आत्मा भी छलनी हो गयी, अन्ना हजारे जी को लेके ही देखिये उन्होंने अनशन करने का फैसला लिए लेकिन हमारी सरकार तो पहले साफ साफ मना कर रही थी और उसके बाद उसने ३ दिनों की इजाजत दी है, तो क्या अब इस लोकतान्त्रिक देश में हम अपने विरोध को भी प्रदर्शित नहीं कर सकते और भले ही कुछ वाम पंथी या कुछ ज्यादा पढ़े लिखे लोग जैसे की अरुंधती रॉय और भी इनकी जमात के लोग इसे लोकतंत्र का सही कदम कहे लेकिन हम जैसे अनपढ़ लोग इसे तानाशाही कहते हैं और कांग्रेस का तो यही मकसद भी है इस देश से लोकतंत्र को हटाये और अपने तानाशाही जमाये
क्षेत्रवाद और जातिवाद आधारित राजनीति: चूँकि हमारा देश के बहुत लोग या तो अशिक्षित है या फिर उतने ही शिक्षित है जितना नहीं होना चाहिए, आज जबकि हमारे पड़ोसियों की नियत हमारे प्रति एक दम से ठीक नहीं है हमें और हमारे नेताओ को एकता दिखाना चाहिए ताकि हमारे अंदर राष्ट्रीयता की भावना आये और हम मजबूत हो इसके उलट हमारे देश के नेता अपना काम साधने  के लिए देशद्रोह जैसा काम करने से भी नहीं चुकते एक थोडा सा भी पढ़ा लिखा इन्सान बता सकता है की हमारे पड़ोसियों की नियत है हमारे देश को बहुत सारे टुकडो में बाँट देना ताकि हम बहुत कमजोर हो जाये और  हमारे पडोसी हमारे टुकड़े हुए राज्यों के साथ मनमानी कर सके और हमारे नेता जैसे की मुंबई का ठाकरे घराना और कांग्रेस का तो मुख्य एजेंडा ही जातिगत राजनीति है एक दुसरे में बैर करवा के अपना उल्लू साधना इन लोगो का ही काम है| ठाकरे घराना तो उतर भारत, दक्षिण भारत ऐसे बोलते है जैसे की वो किसी दुसरे देश का उल्लेख कर रहे हो जो कम चीन और पाकिस्तान को करना चाहिए वो काम तो कांग्रेस और ठाकरे घराना ही करते है| इन लोगो का उपाय भी चल जाता है क्यूंकि इन लोगो के पास अशिक्षितों की फ़ौज है जो आँख मुद के इनको समर्थन देते
धर्मनिरपेक्षता: मेरा मानना है की आजाद भारत की सबसे बड़ी यही समस्या है वैसे तो इस शब्द में बहुत ही अच्छी और महान अर्थ छुपा हुआ है जिसका मतलब ये होता है की हमारा देश किसी भी धर्म का पक्ष नहीं लेता और हमारी सरकार की नजर में सभी धर्म बराबर है लेकिन आजकल इस शब्द का अर्थ पूरी तरह से बदल गया हैं, आजकल इस शब्द का सहारा लेकर बहुत सारे छद्म बुद्धिजीवी सरेआम कानून का उल्लंघन ही नहीं कर रहे बल्कि खुल्लम खुल्ला कानून का मजाक भी बनाते है| ये कितना खतरनाक है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है की सरकार को एक धर्म सम्प्रदाय को छोड़ के और किसी धर्म की सुध ही नहीं रहती है अगर किसी ने हिन्दुओ के लिए भूल से भी कोई अधिकार की बात कर दे तो देखिये कैसे संकीर्ण और छद्म सेकुलरिस्ट कैसे अपने सर पर आसमान को उठा लेते है मुझे तो बस यही लगता है की बस इसी शब्द के जरिये हमारे देश की एक प्रमुख पार्टी अपने वोते बैंक का उपाय भी करती है और इसके लिए वो हिन्दू लोगो और उनकी भावनाओ की धज्जिया उड़ाने से बिलकुल भी नहीं चुकती| अभी कुछ साल पहले ही हमारे देश के भावी युवराज माननीय राहुल गाँधी जी ने तो हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले भगवा रंग को ही आतंक का प्रतीक मान लिया था और महाशय को लश्कर-इ-तोएबा, इंडियन मुजाहिदीन, सिमी आदि से ज्यादा उन्हें भगवा धारी साधुओ और राष्ट्रवादी संस्था जैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से डर लगने लगा था, अब राहुल गाँधी जी को ये कौन बताये की भगवा रंग हमारी संस्कृति और आस्था से जुड़ा हुआ है| क्या ९० करोड़ हिन्दुओ के भावनाओ के साथ खेलने से पहले राहुल गाँधी ने एक बार भी सोचा था और अगर इसके उलट अगर कोई और नेता किसी खास धर्म के बारे में कुछ बोल दिया होता तो सारे देश में हंगामा मचना ही था और बाकायदा कांग्रेस ने तो खास कर इसके लिए एक नेता को भी रखा है जिसका और कुछ कम नहीं है बस उसका यही कम है की जितना हो सके किसी खास धर्म की बड़ाई और हिन्दुओ की भावनाओ के साथ खिलवाड़ करे उनको कोई रोकने वाला नहीं है और हम ठहरे हिन्दू हमें भी कोई खास फर्क नहीं पड़ता अगर कोई हमारे धर्म या हमारे खिलाफ कुछ करे तो और जो रही बात राहुल गाँधी की तो बेचारे को पता ही क्या है हिन्दू और हिंदुत्व के बारे में जनाब का बस चले तो राष्ट्रीय ध्वज में से भी भगवे रंग को हटा देते या फिर ये भी हो सकता है की आगे से हटा भी दिया जाये | आजतक तो हमने बस आतंक का नाम बस इंसानों और समुदायों के साथ सुना था हमारे युवराज ने तो आतंक का रंगीकरण भी कर दिया जो अपने आप में हास्यास्पद है
अब हमारे देश का क्या होगा जब महात्मा गाँधी जैसे संत का नाम लेकर कोई पार्टी अगर ऐसा दुराचार करे तो फिर इस देश का भगवान् ही भला करे
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