Saturday, November 7, 2015

देशद्रोही ताकतों के हाथो बिका हुआ है मोदी पर इल्जाम लगाने वाला रिटायर आईपीएस आरबी श्रीकुमार



जिस आईपीएस अधिकारी आरबी श्रीकुमार ने प्रख्यात वैज्ञानिक नम्बी नारायणन को 1994 के इसरो जासूसी कांड में झूठे फंसाकर देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम को धक्का पंहुचाया था, वही बाद में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली गुजरात सरकार के विरूद्ध मुहिम चला रही तीस्ता सेतलवाड जैसे राष्ट्र-विरोधी तत्वों से मिल गया है।

'गुजरात के पूर्व डीजीपी और गुजरात सरकार के खिलाफ दंगों और मुठभेड़ को उठाने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता के साथ जुड़े आरबी श्रीकुमार ने देशभक्त वैज्ञानिक नम्बी नारायण को एक सौदागर के रूप में बदनाम करने की कथित साजिश की और उनके विरूद्ध मामला बनाया। देश के हितों को नुकसान पहुंचाने वाले उनके इस जघन्य अपराध के बावजूद संप्रग सरकार ने उसके विरूद्ध अधिकांश आरोप वापस ले लिए।' नारायण ने 1970 के दशक की शुरुआत में भारत के लिक्विड फ्यूल टेक्नोलाजी की शुरुआत की जब पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम वैज्ञानिक थे और उनकी टीम सालिड मोटर्स पर काम कर रही थी। पोलर सेटेलाइट लांच व्हीकल में भी उनका योगदान है जिसकी बदौलत 2008 में चंद्रयान-1 भेजा गया।

                 तीस्ता सेतलवाड जैसे राष्ट्र-विरोधी  के  साथ पूर्व  आईपीएस अधिकारी आरबी श्रीकुमार

लेकिन दुर्भाग्यवश इसरो जासूसी मामले ने एक प्रतिभाशाली राकेट वैज्ञानिक का पूरा करियर खत्म कर दिया और इसका देश को नुकसान उठाना पड़ा। बाद में नारायणन को निर्दोष पाया गया। दिलचस्प बात यह है कि 2004 में ही साफ हो गया था कि कुछ लोगों के इशारे पर इसरो जासूसी मामले को मनगढंत बनाकर पेश किया गया है और इस तरह की शत्रुता इसरो और भारत के लिए हानिकारक है। इस मामले में धूर्तता करने वाला और कोई नहीं बल्कि एक ही व्यक्ति, श्रीकुमार है।'

लेकिन 2004 में संप्रग के सत्ता में आने पर चीजों ने पलटा खाया और श्रीकुमार को क्लीन चिट दे दी गई। गृह मंत्रालय ने एक आदेश जारी किया और बिना जांच के ही 9 में से 7 आरोप वापस ले लिए गए। बदले में श्रीकुमार से उम्मीद की गई कि वह राजनीतिक कारणों से गुजरात में भाजपा सरकार के खिलाफ झूठ और असत्य से भरे आक्षेप लगाएं। स्पष्ट रूप से श्रीकुमार को अपने राजनीतिक वादियों से निपटाने का काम दिया गया और वह आज भी उसे कर रहे हैं।' उनके अनुसार श्रीकुमार ने 4 नवंबर 2010 में तीस्ता सीतलवाड़ के पूर्व सहायक रईस खान के साथ बातचीत में स्वीकार किया कि जब मेरे खिलाफ आरोपपत्र दायर हुए तो तीस्ता ने मेरी मदद की।

1994 के दौरान श्रीकुमार तिरूअनंतपुरम में एसआईबी उप निदेशक थे और उन्हें इसरो जासूसी मामले की जांच सौपी गई। श्रीकुमार ने ना केवल नारायणन को सौदागर के रूप में बदनाम किया बल्कि उनका शारीरिक उत्पीड़न भी करने सहित उनके साथ दुव्र्यवहार किया। श्रीकुमार के इस आचरण पर 1999 में भारत सरकार ने उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की। उनके विरूद्ध चार्जशीट में कहा गया कि श्रीकुमार ने कानूनी औपचारिकताएं पूरी किए बिना केरल पुलिस की हिरासत से आरोपी व्यक्ति को अपने कब्जे में लिया और राज्य पुलिस को अलग करके स्वतंत्र जांच की। इसमैं यह भी कहा गया कि जासूसी कांड मामले में श्रीकुमार को यह बात पूरी तरह से पता थी कि उनकी टीम द्वारा तैयार रिपोर्ट विरोधाभास से भरी है। बाद में नारायणन सहित सभी आरोपी आरोपों मुक्त हो गए और 2001 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने नम्बी नारायणन को 10 लाख रूपए का अंतरिम मुआवजा देने का आदेश दिया।
- Jitendra Pratap Singh

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