Saturday, August 6, 2016

काश्मीर की एक कहानी

बात 1967 की है .....यानी कि पलायन करने के 23 वर्ष पहले की । श्रीनगर में एक विधवा काश्मीरी हिन्दू रहती थी जिसकी एक सुंदर , सुशिक्षित , सुसंस्कृत बेटी थी , जिसका नाम परमेश्वरी हंडू था। वह काश्मीरी बेटी स्टेट काॅपरेटीव विभाग में नौकरी करती थी एवं अपने माँ की सहारा थी । उसी विभाग में गुलाम रसूल नाम का एक काश्मीरी मुस्लिम भी काम करता था जो परमेश्वरी की सुंदरता पर मोहित हो गया था। एक तरफा प्यार में वो इतना पागल हो गया कि कोई और रास्ता न देख वह उसका अपहरण करवा कर उसे कहीं छुपा दिया। उसे अनेकों यातनाएँ दिया ..मार पीट करके उसे इस हालात तक ले आया कि वो उससे शादी करने को मजबूर हो गई । पर उसका अता पता किसी को नहीं चल पा रहा था।

परमेश्वरी की विधवा माँ के लिए ये हालात असहनीय बन गया ...वह एक जिंदा लाश बन गई । पर उसने हार ना मानते हुए उस समय के मुख्यमंत्री मोहम्मद सादिक तक अपनी गुहार लगाई...। पर हफ्तों तक सुनवाई नहीं हुई तो फिर वह पंडितों के नेताओं से मिली ।
अब तक यह बात काफी फैल चुकी थी , जिसकी वजह से पंडितों में भारी रोष हो गया था। समूची घाटी के पंडित इस घटना के विरोध में लामबंद होने लगे। धरना प्रदर्शन का दौर शुरू हो गया। पंडितों ने शांतिपूर्ण सत्याग्रह करने का फैसला किया..और अपनी बेटी को वापस लाने की इस मुहिम को एक दिशा देने के लिए एक कमिटी बनाई गई जिसका नाम रखा गया "हिन्दू एक्शन कमिटी "जिसका मुख्यालय श्रीनगर के शीतलनाथ भवन में बनाया गया। सात महीने तक शीतलनाथ परिसर में लगातार धरना प्रदर्शन चलता रहा ।
परिसर में जो जयकारे लगते थे वे थे...भारत माता की जय , हर हर महादेव , परमेश्वरी को वापस करो ,आदि। महिलाएँ, बच्चे, बूढ़े सभी आयु वर्ग के लोग इन प्रदर्शनों में रोजाना भारी संख्या में शामिल होने लगे।

इस प्रदर्शन की आँच जम्मू , दिल्ली , कलकत्ता , जयपुर, अमृतसर आदि शहरों तक पहुंचने लगी। अब घाटी के प्रदर्शनकारियों पर जुल्म शुरू होने लगे , पुलिस इनके उपर आँसू गैस,लाठीचार्ज एवं गोलियाँ तक चलाने लगी

राज्य सरकार के पास राजनैतिक मजबूरी थी परमेश्वरी के मामले को दबाने की ....क्योंकि मामला बहुसंख्यक मुस्लिमों को मनमानी को रोकने को लेकर भी था ....जिसे वे हर किमत पर करना चाहते थे , यही मुस्लिम मतदाता सरकार बनाते थे सो पक्षपात पूर्ण रवैया अपनाना सरकार को अनिवार्य हो गया।

अब तक चले प्रदर्शनों में आठ पंडितों की मौत हो चुकी थी..।वेटरन डोगरा नेता एवं विधायक प्रेमनाथ डोगरा ने विधान सभा में आवाज उठाई परंतु आवाज दबा दी गई। पंडितों के दो अखबार जो श्रीनगर से छपते थे..मार्तण्ड एवं ज्योति ....बंद करा दिए गए।
प्रदर्शन को और उग्र होता देख देश की प्रधानमंत्री ने अपने रक्षा मंत्री एस वी चाह्वाण को दुत बना कर मामले को शांत कराने के लिए श्रीनगर भेजा ,....बातें हुई ..मुख्यमंत्री ने दस दिनों के अंदर लड़की को घर वालों तक पहुँचाने का वादा किया ...चाह्वाण जी वापस दिल्ली आ गए पर वो दस दिन आज तक पूरा नहीं हो पाया।

उस पक्षपाती सरकार ने इतना अवश्य पता लगाया कि परमेश्वरी का नाम अब परवीन हो चुका है।

अब इस नालायक सरकार से उम्मीदें पूरी होती ना देख इस प्रदर्शन को पंडितों ने दिल्ली शिफ्ट कर लिया । उम्मीद ये भी थी कि वहाँ और भी हिन्दू भाइयों का साथ मिलेगा पर अफसोस ही रहा उन्हें , उनकी ये अकेली लड़ाई बन गई । दिल्ली में "हिन्दू महासभा " का भवन आंदोलन का केन्द्र बना । पंडितों ने भारी संख्या में गिरफ्तारी दी जिन्हें तिहाड़ जेल में रखा गया । प्रदर्शन को उग्र होता देख प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्री सादिक एवं काश्मीरी पंडित नेताओं की मीटिंग बुलाई ताकि गतिरोध समाप्त हो ..पर सादिक ने राजनैतिक मजबूरी बता कर प्रधानमंत्री के सुझाव को अनसुना कर दिया।

कोर्ट में केस चलता रहा पर एक बार भी लड़की को सरकार कोर्ट में पेश नहीं करवा पाई । हालाँकि कोर्ट का ये आदेश भी था सरकार के लिए कि वो हर हाल में कोर्ट मे उसकी उपस्थिति को सुनिश्चित कराए।

मुस्लिम धर्मान्थों के दबाव में सरकार हाथ पे हाथ धरकर बैठ गई , और यह मामला हमेशा के लिए दबा दिया गया।

काश्मीर घाटी में पंडितों द्वारा अपने अस्तित्व, इज्जत , प्रतिष्ठा के लिए लड़ी गई ये सबसे बड़ी लड़ाई थी ..
साभार:
Anand Kumar

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