Wednesday, December 19, 2012

देश के रँगे हुए सियार


दोस्तों पुरे देश में एक ज्वाला भड़का हुआ है और ये हमारे देश और खुद हमारा बोया हुआ आग है जो आज सबको जला रहा है आज जो धरना प्रदर्शन हो रहा है और युवा साथी और बहने भाग ले रही है देख के तो दिल में उम्मीद आती है लेकिन बस कैमरे पर अपनी छवि के अलावा इनमे सच का कोई भी गुस्सा या प्रतिशोध नहीं है इस घटिया समाज पर और ये खुद जो आज प्रदर्शन कर रहे है वो ही इसको बढ़ावा देने का काम करते है इनको देशी शब्द और राष्ट्रीयता से उतना ही चिढ है जितना की एक सांड लाल कपड़ो से चिढ़ता है इस से पहले की आप मुझे गाली दे या फिर कुछ बोले मैं आपको कुछ दिखाना चाहूँगा 
1) अमेरिका में हर साल तकरीबन 96000 बलात्कार होते है और प्रति 100000 तकरीबन 33 बलात्कार होते है 
2) ब्रिटेन में हर साल तकरीबन 16000 बलात्कार होते है और प्रति 100000 उनका आंकड़ा तकरीबन 29 है 
3) आस्ट्रेलिया में हर साल तकरीबन 19000 बलात्कार होते है और प्रति 100000 उनका आंकड़ा तकरीबन 92 के करीब आता है 
4) बेल्जियम में हर साल तकरीबन 3000 बलात्कार होते है और उनका प्रति 100000 आंकड़ा 29 आता है 
वैसे ही हर एक पश्चिमी और यूरोपीय देशो में बलात्कार बड़े पैमानों पर होती है और वो इसके लिए गंभीर भी नहीं है क्यूंकि उनके समाज में खुलापन है और वो इस से इतना चिंतित भी नहीं है
अब जरा आइये अपने देश की स्थिति समझते है 
80 के दशक में हमारे देश में प्रति साल बलात्कार 700 और प्रति 100000 ये आंकड़ा करीब 0.17 आता था 
90 के दशक में हमारे देश में प्रति साल बलात्कार 1800 और और प्रति 100000 ये आंकड़ा करीब 0.70 आता था 
2000 के दशक में यही बलात्कार का आंकड़ा बस दस सालो में ही बढ़कर अचानक ही 6000 और प्रति 100000 ये आंकड़ा करीब 1.6 गया 
और 2008 में यही आंकड़ा 6000 से बढ़कर करीब 9000 हो गया और प्रति 100000 ये आंकड़ा करीब  1.9 करीब गया और अभी वर्तमान में हमारे देश में एक साल में कम से कम 19000 बहनों के साथ ऐसा कुकर्म होता है और प्रति 100000 ये आंकड़ा करीब करीब 2.5 के पर जा चूका है फिर भी ये पश्चिमी देशो के मुकाबले बहुत ही कम है और आज के हमारे यही युवा जो फेसबुक और रोड पर और इंडिया गेट पर हाथ में मोमबतिया लेके खड़े रहते है और लगता है की हमारे देश में कितने सुसंस्कृत युवा रहते है, लेकिन इन रँगे हुए सियारों को कोई जनता नहीं है की जब जिस्म और मर्डर फिल्म आती है और कोई भी फिल्म जो की समाज में अपने परिवार वालो के साथ नहीं देख सकते है तब आप देखेंगे की ये ही रँगे हुए सियार वह भीड़ बनाये हुए है चाहे वो गूगल पर सन्नी लिओनि का सर्च हो या पूनम पाण्डेय और शर्लिन चोपड़ा के फोल्लोवेर्स हो सब यही है नहीं तो इन दो टेक की लडकियों की क्या औकात थी की ये पुरे भारत में लडकियो के प्रति सोच ही बदल के रख देती लेकिन ये हमारे रँगे हुए सियार ही है जो इन्हें आँखों और पलको पर बैठाते है अगर ये फिल्मे देखते तो इन फिल्मो के जो भांड निर्माता फिर से हिम्मत नहीं करते लेकिन वो जब देखते है की हमारे देश के युवा को बस सेक्स चाहिए तो वो वही बनाते है क्यों सामाजिक मुद्दे पर फिल्मे फ्लॉप हो जाती है और बस उन्हें समाज का एक छोटा सा वर्ग ही पसंद करता है और क्यों एक छिछोरे से इन्सान को सुपर स्टार बना दिया जाता है वो इमरान जिसे एक सीधा संवाद बोलने नहीं आता वो आज का सुपर स्टार है क्यों बस इन्ही सियारों के वजह से कई ऐसी गन्दी लड़किया जिन्हें सभ्य समाज में देखना भी एक शर्म है वो आज टीवी और फिल्मो में आती है और तमाम विज्ञापनों में आती है क्यूंकि विज्ञापन बनाने वाला जनता है की इसका उपयोग युवा ही करता है और आज तो चाहे वो साबुन हो या खाने का कोई सामान या फिर पूजा या फिर कपडे का कोई विज्ञापन उसमे इतनी अश्लीलता परोसी जाती है क्यों क्यूंकि हम वही देखना पसंद करते है और इसी लिए वो बनते है हमें याद रखना चाहिए की किसी भी समाज को वही माहौल मिलता है जैसा की वो खुद चाहता है क्या हमने आज तक किसी अश्लील फिल्म को फ्लॉप करवाया है नहीं ? हम क्या गन्दी औरतो को अपना स्टार क्यों बनाते है ? हम बिग बॉस और रोडीज जैसे प्रोग्राम देखते है क्यू
क्यूंकि हम पर पश्चिमी सभ्यता एक दम जादू कर रखा है हम हर एक लाइन में cool, chill, fun  और  enjoy बोलते ही है हमें सीधापन पसंद नहीं है सीधा सा देहाती बोल के आपको बगल कर दिया जाता है। तो जब हम पश्चिमी सभ्यता को सर पर चढ़ाएंगे तो उसी ने अनुसार बलात्कार, और हमारी मानसिक नैतिकता का तो गिरना ही है तो फिर ये झूठा प्रदर्शन क्यों ? ये दोगलापन क्यों जब आप खुद ही आधुनिक बन ने का भुत है तो फिर आप खुद समाज में ये गंदगी फैला रहे हो और अब प्रदर्शन तो मत करो 
अगर थोडा सा भी बदलाव महसूस किया हो ये पढ़ के तो कसम ले लो की आज के बाद ही कोई c ग्रेड स्टार की d ग्रेड फिल्म देखेंगे ही पश्चिमी सभ्यता के पीछे भागेंगे अपनी संस्कृति ऐसे ही पूरी दुनिया में बेजोड़ है कहा गया वो दौर जब पूर्व और पश्चिम टाइप की फिल्मे बनती थी हम ही इस देश का भविष्य है और हमें ही तय करना है की कैसे समाज में हमें रहना है 
~~ अक्षय 

2 comments:

  1. Ek Kadwa Sach Jise Inkar Nahi Kiya Ja Sakta. Bahut Sundar Likha Hai Aapne. Ek Geet Yaad Aa rahi hai...
    Ek Chehre Pe Kai Chehre Lagate Hain Log......

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