Saturday, June 6, 2015

प्राचीन भारतीय संस्कृति की पहुच: अरब प्रायद्वीप में माँ दुर्गा का मंदिर, कुंद से निकलती है अग्नि

हिंदू धर्म में अग्नि को बहुत पवित्र माना जाता है। विभिन्न धार्मिक संस्काराें के लिए पवित्र अग्नि प्रज्वलित की जाती है। आपने हिमाचल प्रदेश में स्थित मां ज्वाला देवी के मंदिर के बारे में पढ़ा होगा जहां बहुत प्राचीन काल से ही माता की पवित्र ज्योति स्वतः जल रही है।

मां भगवती का ऐसा ही एक और पवित्र मंदिर है जहां कभी श्रद्धालुओं की भारी तादाद मां को नमन करती थी, लेकिन आज यहां सन्नाटा पसरा है। वास्तव में यह मंदिर भारत में नहीं है। यह हमारी सरदहद से बहुत दूर अजरबैजान में सुराखानी नामक स्थान पर स्थित है।
क्या है मंदिर का नाम
मंदिर को आतिशगाह तथा टेम्पल आॅफ फायर भी कहा जाता है। सर्दियों में यहां काफी ठंड पड़ती है और यह इलाका तेज हवाओं के लिए मशहूर है। यह मंदिर अग्नि को समर्पित है। इसकी इमारत किसी प्राचीन काल के गढ़ जैसी है। इसकी छत हिंदू मंदिरों जैसी है तथा पास ही मां भगवती का त्रिशूल स्थापित किया गया है। मंदिर के अंदर एक अग्निकुंड है। इसमें से आग की लपटें निकलती रहती हैं। यहां उस जमाने के कुछ लेख भी दीवारों पर अंकित हैं। इनके लेखन में गुरुमुखी लिपि का इस्तेमाल किया गया है। 
मंदिर का इतिहास
माना जाता है कि जब पुराने जमाने में भारत के व्यापारी इस रास्ते से कारोबार के लिए जाते थे तो उन्हाेंने मां ज्वालाजी के प्रति आस्था को अभिव्यक्त करने के लिए इस मंदिर का निर्माण करवाया। जब कोई भारतीय इस रास्ते से गुजरता तो वह मंदिर में आकर मां की शक्ति को नमन जरूर करता।
ऐतिहासिक जानकारी के अनुसार मंदिर के निर्माता का नाम बुद्धदेव है जो कुरुक्षेत्र के निकट मादजा गांव के निवासी थे। मंदिर पर संवत 1783 अंकित है। यहां स्थापित एक और शिलालेख पर मंदिर का द्वार बनाने वालों के नाम - उत्तमचंद और शोभराज लिखे हुए हैं।   इतिहास से जुड़े कुछ प्रमाण बताते हैं कि मंदिर के पुजारी भारतीय होते थे और यहां अनेक लोग मां को नमन करने आते थे। हालांकि इनमें भारतीयों की तादाद ही ज्यादा होती थी लेकिन स्थानीय लोग भी यहां आकर मनौती मांगते थे।
कहते हैं कि 1860 ई. में यहां से पुजारी चले गए थे। तब से फिर कोई पुजारी यहां नहीं आया। कुछ अन्य ऐतिहासिक विवरणों के अनुसार पहले यहां ईरान से भी लोग पूजा करने आते थे और यह कई शताब्दियों पुराना है। यहां तक कि 5वीं शताब्दी में भी इसका जिक्र आता है। बाद में यह हिंदुओं का एक प्रमुख पूजन स्थल बन गया। मंदिर में मुख्यतः व्यापारी आते थे और वे यहां निर्मित कोठरियों में विश्राम भी करते थे।
कभी थी रौनक, आज पसरा सन्नाटा

अजरबैजान एक मुस्लिम बहुल देश है। कभी यह सोवियत संघ का हिस्सा था। यहां एक म्यूजियम भी बनाया गया है जो बीते दौर की यादाें को सुरक्षित रखता है। इसमें व्यापारियों, धर्मगुरु, कर्मों के फल आदि को बताने वाली आकृतियां बनी हुई हैं। आज भी कुछ लोग जिज्ञासावश यहां आते हैं और मंदिर से जुड़ी परंपरा और इतिहास को जानने की कोशिश करते हैं। वीरान हो चुका ये मंदिर शायद खामोशी के साथ उस दौर को याद करता है जब यहां दूर-दूर से श्रद्धालु आते थे। तब यहां काफी रौनक होती थी लेकिन आज यहां सन्नाटा पसरा हुआ है।

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