Wednesday, June 3, 2015

हम हिन्दुओं के लिए शिवाजी महाराज की स्मृति क्यों आवश्यक है ??? भाग --2 आइये अपना इतिहास समझें !!!!!

लखुजी राजे और उनके दामाद शहाजी राजे में सदा के लिए वैर ठन गया !!लेकिन शहाजी और जीजाबाई का प्रेम कम नहीं हुआ !!!! 1624भातवाड़ी में निजाम की फौजों की लड़ाई दिल्ली की मुगलिया और बीजापुर की आदिलशाही फौजों से हुई !! शहाजी और उनके भाई आदि भोसले वीरो ने अद्भुत पराक्रम दिखा कर निजाम को जीत दिला दी !!!! उनके भाई शरीफ जी युद्ध में मारे गए !!!! दोनों इस्लामी सल्तनतों की जीत हार मराठों पर निर्भर थी ,,,लेकिन वे कभी अपना स्वराज्य स्थापित करने के बारे में नहीं सोचते थे !!!!!सुल्तानों की लड़ाइयों में मराठो के खानदान कट मरते थे ,,,जनता भयानक कष्ट झेलती थी !!!महाराष्ट्र की जनता वहां के क्षत्रियों के तलवारों से घाव ही पा रही थी !!!!गोमान्तक --गोवा में पुर्तगाली इसाई भयानक अत्याचार कर रहे थे ,,लेकिन कोई उनसे बचाने वाला नहीं था !!!!! ब्राह्मण छोटी छोटी बातों में बड़े विवाद खड़े करके झगड़ो को जन्म देते रहते थे !!!!शहाजी निजाम की और से मराठवाडा में मुगलों से लड़ रहे थे !!! इस बीच जीजाबाई गर्भवती हुई !!!शहाजी लगातार युद्ध रत होने से जिजाऊ की रक्षा के लिए चिंतित थे ,,,उन्हें पुणे परगने की कोठी में रखा गया !!!!!!,,,जीजाबाई का मायका तो छूट ही चुका था !!!!जीजाबाई को ना घूमने का मन करता ना स्वादिष्ट भोजनों का !!!!उन्हें पहाडो पर चड़ने के,, किलो पर ध्वज फहराने के,,, हाथी पर छत्र के नीचे बैठने के और खूब दान धर्म करने के स्वप्न आते थे !!!!


पथरीला सह्याद्री का अंचल भी जीजाबाई के इन भावो से कोमल हो गया ,,,,,,,मानो किसी सात्विक क्शात्रानी के गर्भ से कार्तिकेय ,,,अभिमन्यु या राम जी के सामन किसी बालक के आगमन की तय्यारी कर रहा हो !!!! मुस्लिम सुलतान बहुत ही क्रूर और सनकी थे !!!कब किस पर प्रसन्न हो जाए और कब नाराज होकर गर्दन उतरवा दें ,,ये खुदा को भी पता नहीं होता था !!!!!निजाम ने दौलताबाद को राजधानी बनाया !!!!उसका एक मून्ह्लागा सरदार था हमीदखां !!!उसकी सुन्दर बीवी की खिद्मातो से प्रसन्न होकर निजाम ने उसे सरदारी बख्श दी ,,,,,हमीद खान ने निजाम को लखु जी जाधव के विरुद्ध भड़का कर कहा की वो गद्दार है उसे मार दिया जाना चाहिए !!!!!उस समय लखु जी का डेरा देवगिरी के पास कुत्लघ हौज के पास था !!!!लखु जी जाधव अपने पुत्र ,,अच्लोजी अचलोजी ,,,रघो जी और यशवंत राव के साथ निजाम के दरबार में आदाब बजाने गए !!! सुलतान तो क्रोध में भरा बैठा था !!! दिन था श्रावण पूर्णिमा 25 जुलाई 1629 !! जैसे ही जाधव वीरों ने झुक कर सलाम किया ,,सुलतान आसन छोड़ कर उठा और चला गया !!!!! 

ये मुस्लिम सरदारों के लिए इशारा था !!! सारे इन जाधव वीरो पर तलवार लेकर धोखे से टूट पड़े !!!! कुछ ही देर में चारो वीरो की लाशें दरबार में मुस्लिम दरिंदो ने बिछा दी !!!!! जीजाबाई का पूरा मायका एक साथ मिट गया !!!!!!जीजाबाई भयानक दुःख से त्रस्त हो गयी !!शहाजी भी इस धोखे और दगाबाजी से बिफर उठे !!!!!उन्होंने निजाम की नौकरी छोड़ दी !!!!पुणे आ गए ,,आस पास की आदिलशाही रियासतों पर धावे डालने लगे !!!!पुणे की जागीर में उन्होंने स्वाराज्य स्थापित कर दिया ,,,एक दिन उनके चचेरे भाई खेलो जी की पत्नी गोदावरी स्नान के लिए गयी !!सरदार महाबत खान उसे बलात उठा कर लगाया !!!!! जब जीजाबाई की जेठानी का ये हाल था तो महाराष्ट्र की लाखों निरीह कन्याने कैसे भयानत आतंक से त्रस्त होंगी इसकी कल्पना की जा सकती है !!!!! बीजापुर का आदिलशाह स्वाराज्य की बात से भड़क गया ,,,,शहाजी पर आक्रमण के लिए ,,उसने रायाराव नाम के सरदार को भारी फ़ौज के साथ भेजा !!!!!इस गदार मराठे ने पुणे की हिन्दू जनता पर भयानक अत्याचार किये !!!पुणे परगना और गाँव को जला कर राख कर दिया !!!सब बर्बाद करके पुणे में गधे का हल चलवाया !!!! परकोटे उखाड़ दिए !!!!शहाजी को लगातार योद्धों के कारण इधर उधर भागना पडा !!!!!!

जीजाबाई गर्भवती अवस्था में साथ ही रहती थी ,,,,,उनकी रक्षा के लिए उन्होंने जीजाबाई को जुन्नर परगने के शिवनेरी दुर्ग पर रखा !!!ये प्राचीन किला था ,,किलेदार शिघो जी विश्वासराव शहाजी के रिश्तेदार थे और विश्वासी थे !!!!!किला पहाड़ों जंगलो से घिरा हुआ था ,,अन्दर शिवाई माता की गुफा थी ,,,बारूद के बड़े गोदाम थे ,,,बड़ी झील थी !!!!!आस पास की चोटियों पर गणपति ,,भीमशंकर ,,कुकडेश्वर ,,कालभैरव म्बा ,,,अम्बिका आदि का मानो पहरा था !!!!! जीजा बाई यहाँ मार्गशीर्ष मॉस में नवम्बर 1629 में पहुँच कर बहुत प्रसन्न हुई !!!!गर्भवती जीजाबाई की सेवा और रक्षा के लिए भोंसले वीरो के वफादार मल्हार भट्ट ,,राजो पाध्ये ,,नारोपंत हन्मंते और गोमाजी नाइक आदि को रखा गया ,,जो उनके लिए जी जान न्योछावर करने के लिय तय्यार थे !!!!महल तैयार करके ,,चूना पुतवाया गया ,,,देवताओं के मंगल चित्र दीवारों पर आंके गए !!!!जमीन पर सरसों छिडकी गयी !!!! 19 फरवरी सन 1630 को शुक्ल नाम के संवत्सर में उत्तरायण में ,,फाल्गुन कृष्ण 3 ,,शुक्रवार को शिशिर ऋतू में हस्त नक्षत्र के सिंह लग्न में सूर्यास्त के बाद रात्री में जीजाबाई ने शिवाजी को जन्म दिया !!!! सब और मंगल ध्वनी गूँज उठी !!!!

जिस समय शिवनेरी दुर्ग शिवाजी के जन्म से प्रसन्नता में डूबा था उस समय शहाजी ,,मजबूरन आदिलशाह की नौकरी कर रहे थे और उसके लिए उस समय दर्याखान रोहिल्ले से युद्ध रत थे !!!!!!!!!संभवतः उनकी नीति यही थी की उनके पुत्र का पालन पोषण उनकी पुणे की जागीर में भली भाँती हो सके !!!!!उन्ही दिनों 1 मार्च 1630 को दिल्ली का बादशाह शाहजहाँ दक्खन विजय के लिए भारी सेना के साथ निकला ,बुरहानपुर तक कब्जा किया !!!!भोंसलो के कुलापाध्याय मल्हार भट्ट ने शिवाजी के समस्त संस्कार विधिविधान से कराये !!!!!

शिवाजी का बचपन सह्याद्री की कंदराओं ,,घाटियों ,,नदियों ,,नालों और शिखरों पर मावले बालको के साथ बीता ,,,,,हथियार चलाना ,,किले बनाना ,,किले जीतना ,,घोड़े दौडाना और व्यूह रचना ये उनके बचपन के मनोरंजन थे !!!!!!!1637 में शहाजी ने शिवाजी को राजकाज की शिक्षा देने के लिए दादा कोण देव को नियुक्त किया ,,,सात वर्ष के शिवाजी माता जीजाबाई के साथ पुणे की जागीर की व्यवस्था के लिए आये ,,,,,उजड़े हुए पुणे में सर्वप्रथम वहां कसबा गजानन मंदिर का निर्माण कराया ,,,दादा जी पन्त ने मंदिर के नेरित्य में जीजाबाई के लिए लाल महल का निर्माण कराया !!!!अब उजड़ा हुआ पुणे बसने लगा ,,,,,भयभीत किसान जुटे ,,,हर जाती के लोग निडर होकर आने लगे ,,,जंगली जानवरों को मार भगाया गया !!!!!!मनहूसियत दूर करने के लिए स्वयम शिवाजी ने सोने का हल चला कर भूमि शुद्ध की ,,फसलें लहलहाने लगी ,,,मंदिरों के मंगल दीप जल उठे !!!बहन बेटियाँ भय रहित हुई ,,,,शिवाजी लाल महल में राजनीति की पेचीदगियां और युद्ध कला के पैंतरे सीखने लगे !!!!


दादा कोण देव ,,सोनो विश्वनाथ डबीर और बाल कृष्ण मजुमदार से शिवाजी शासन की समस्त कुटिलता सीखते !!!!!!महाभारत रामायण आदि ग्रंथो के पाठ उन्हें महान योद्धा और आदर्शवादी जीवन की प्रेरणा देते !!! 1640 में दस वर्ष की आयु में शिवाजी का विवाह 16 मई को फलटन के नाइक निम्बालकर की कन्या सईबाई से हुआ !!!!! सदियों बाद पुणे में मावलों की धरती स्वराज्य का सुख पा रही थी !!!!!विवाह के बाद जीजाबाई के साथ शिवाजी राजे को पिता से मिलने बेंगलोर जाना पडा !!!!!! यात्रा में उन्होंने बीजापुर रियासत में हिन्दुओं की भयानक दशा देखी ,,,गुलामी में स्वाभिमान शून्य समाज की दशा ने उन्हें बहुत व्यथित किया ,,,टूटे मंदिर ,,उजड़े गाँव ,,,,,उन्होंने ठान लिया बिना स्वराज्य के दशा सुधर नहीं सकती !!!!दो वर्ष बाद 1642 में राजे माता के साथ पूना लौटे ,,,रात दिन स्वराज के सपने उनकी आँखों में तैरते ,,,मित्रो के संग मंदिरों पहाडो ,,घाटियों गुफाओं में स्वाराज के सपने बुने जाते !!!!!

शिवाजी जागीर का राज काज संभालते ,,जागीर में एक गाँव था रांझे ,,,वहां का पटेल --बाबाजी भिकाजी गुजर पाटिल बहुत अय्याश था !!!!उसने नशे में वहां की अनेक औरतो से बलात्कार किया ,,शिवाजी के सामने मुकद्दमा आया !!!! शिवाजी की आँखे क्रोध से जलने लगी !!!बोले ये हमारे स्वराज पर कलंक है ,,,हमें माता बहनों की इज्जत के लिए ही हिन्दवी स्वराज चाहिए !!!! शिवाजी ने उसके हाथ पाँव तोड़ कर उसकी सम्पति जब्त करने का हुक्म दिया ,,दिन था 28 फरवरी 1645 !! उस समय शिवाजी मात्र 14 वर्ष 11 महीने !!!!पूरे परगने में न्याय की बात फ़ैल गयी ,,,लोगों को विशवास हो गया की अब भयानक अत्याचारों और बलात्कारों के जमाने बीतने लगे है !!!!!!!!11 वर्ष की आयु में शिवाजी राजे ने दादा कोण देव की उपस्थिति में रोड़ेश्वर महादेव के समक्ष प्रतिज्ञा ली थी की अपनी भूमि पर स्वाराज स्थापित करेंगे !!!अब राजे की भावना उछाल मार रही थी ,,,पुणे से दस कोस कानद घाटी में अभेध्य किला था तोरण दुर्ग !!!!!शिवाजी के साथी बगावत को तय्यार थे ,,,,,बस शिवाजी का इशारा हुआ और मराठे वीर चल पड़े तोरण दुर्ग को मुक्त कराने ,,,,,,,मावलो की सेना दुर्ग में घुस गयी ,,,तीन सौ सालों की गुलामी के बाद आदिलशाह के गुलाम किलेदार बने हुए ,,बगावत की बात सोच भी नहीं सकते थे !!! तोरंदुर्ग आजाद हुआ ,,किले पर भगवा पताका फहरा उठी !!!!!!,किले का सुधार करते समय बड़ा खजाना हाथ लगा ,,,इसे परमात्मा की इच्छा समझी गयी !!!!!!,तुरंत शिवाजी ने तीन कोस दूर मुरुम्ब देव के प्रचंड पहाडो में मजबूत दुर्ग बनाकर वहां राजधानी बनाना तय किया !!!!कार्य आरम्भ हो गया !!! 

सुलतान आदिलशाह तक बगावत की खबरे पहुँची !!!!उसे विशवास नहीं हुआ !!!!अनेको फरमान भेजे ..लेकिन शिवाजी के मंसूबे पलटने वाले नहीं थे !!!!1657 में दादा कोण देव चल बसे !!!!अब सारा भार अकेले शिवाजी पर था !!!! शिवाजी ने कोंढाना किले पर कब्जे की योजना बनाई ,,,,उन्होंने बापूजी मुद्गल देशपांडे को ये काम सौंपा ,,,,किलेदार था सिद्दी अनवर !!!! योजना इतनी बढ़िया बनी की बिना खून खराबे के ही ,,किलेदार को समर्पण करना पडा !!! तुरंत बाद शिवाजी ने शिरवल के सुभान्मंगल किले पर झपट्टा मारा ,,,किलेदार मियाँ रहमत मुहम्मद हाथ मलते हुए बीजापुर भाग गया !!!!!शिवाजी जीते !!!!!उन्ही दिनों जावली का दौलतराव चन्द्र राव मोरे अचानक चल बसा ,,,वह बीजापुर का दरबारी था !!!!! शिवाजी ने उसकी निःसंतान विधवा को यशवंत राव मोरे को दत्तक दे दिया और उसे जावली का उत्तराधिकारी चंद्र्राव घोषित कर दिया !!!!!आदिलशाह की आँखे क्रोध से जलने लगी !!!! उधर शहाजी राजे आदिलशाह के लिए जान लड़ाने में जुटे थे ,,एक और उसके लिए निजामशाही से लड़ते दूसरी और दिल्ली के मुगलों से लोहा लेते ,,,,लेकिन सुल्तानों की दगाबाजी प्रसिद्द है !!!!अफजल खान और लह्माजी ज्योति नाम के सरदारों के भड़काने पर सुलतान ने शहाजी को कैद करके ,,शिवाजी को काबू करने का षड्यंत्र रचा !!!!शहाजी उस समय जिन्जी में थे !!!!!वजीर मुस्तफा खान को जिम्मा सौंपा गया ,,17 फरवरी 1648 को वो 15 हजार फ़ौज लेकर जिन्जी रवाना हुआ !!!!शहाजी ने सोचा शायद जिन्जी का किला जीतने के लिए सहायता आई है !!!!मुस्ताफाखान ने अभिनय भी बहुत किया ,,,,

एक रात तो अचानक मुस्तफा खान और बाजी घोरपडे ने शहाजी के खेमे पर हमला किया ,,,गीदड़ो ने शेर को घायल करके फंसा लिया ,,,शहाजी को ,,चोरों की तरह बेडियो में कसकर पिजरे में डाल कर अपमानित करते हुए बीजापुर लाया गया !!!!! जुलाई 1648 में सरदार फत्तेखान को सात हजार सेना के साथ स्वराज पर आक्रमण के लिए भेजा गया !!!!!!!शिवाजी ,,जीजाबाई के साथ स्वाराज्य की व्यवस्था में इतने व्यस्त थे की उन्हें इन संकटों की आहट भी नहीं मिली ,,,भयानक सवाल था जीजाबाई के आगे !!! स्वाराज चाहिए या सुहाग ???आदिलशाह ने सोचा था लखुजी की पुत्री सुहाग के लिए भीख मांगेगी !!!!लेकिन शवाजी ने युद्ध ठान लिया ,,,फत्ते खान पुरंदर गढ़ के पास बेलसर गाँव में डेरा डाल कर पड़ गया !!!!उसने एक दल सुभान मंगल किले पर हमले के लिए भेजा ,,,,स्वाराज की एक चौकी तोड़ दी गयी ,,भगवा झंडा उतारा गया ,,शिवाजी सेना के साथ पुरंदर गढ़ पहुंचे ,,कावजी मल्हार को मावले जत्थे के साथ सुभान मंगल किले पर हमले के लिए भेजा गया !!!!! भारी हमला हुआ !!!थानेदार बालाजी हैबतराव मारा गया ,,,किला जीत लिया गया दुबारा मराठों का भगवा लहरा उठा !!!!!अब फत्ते खान पर छापे मार हमले आरम्भ हुए !!! गुस्से में उसने पूरी ताकत से पुरंदर गढ़ पर हमला बोला ,,पर शिवाजी की सेना ने ऐसे पत्थर लुद्काए की उसके सैनिक बेमौत मरने लगे ,,,,,उसकी सेना भाग ली ,,,शिवाजी राजे की सेना ने शाही फ़ौज पर भारी हमला कर दिया ,,,उसने बीजापुर जाकर ही दम लिया !!!!!शिवाजी ने समय गँवाए बिना कूटनीति चली ,,दिल्ली के मुगलों को पत्र लिख कर उनके साथ संधि की ,,,,,,मुगलों से आदिलशाह पर दबाव बनवाया !!!!!मजबूरन सुलतान को शहाजी को रिहा करके उनका सम्मान लौटाना पडा !!!!!

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