Saturday, June 20, 2015

धर्म को स्थिर रखने हेतु कठोर नियमो का पालन आवश्यक होता है......

धर्म को स्थिर रखने हेतु कठोर नियमो का पालन आवश्यक होता है... धर्म कोई गुड्डे-गुड़ियों का खेल नही कि समाज के किसी एक वर्ग, समुदाय को प्रसन्न करने हेतु... Testing Testing खेलते रहें आप ।
ऐसे ही नही किसी को अवतार लेकर महाभारत रचता पड़ता है... परन्तु बिना हड्डी की जिव्हा से धर्मविरुद्ध वाणी का उपयोग करने में अधिक परिश्रम भी नही लगता ।
आज भारत में या विश्व में धर्म का जो भी निम्नतर स्तर आप पाते हैं उनके अपराधी वे समाज सुधारक हैं जिन्होंने धर्म-शास्त्रों के अध्ययन किये बिना... अपने सुधार कार्यक्रमो को धर्म से ऊपर रखा ।




इन्ही लोगों द्वारा समर्थित लोकतन्त्र और धर्म-निरपेक्षता के योग से बने कैंसर का आईना देखिये... कि बुरे को बुरा कहना अपराध होता है और और अच्छे को बुरा कहना बुद्धिजीवी और अभिव्यक्ति की स्व्तंत्रता ।
आगम शास्त्रों में लिखे गए धर्म के नियमो के विरुद्ध जाकर स्वयं को बुद्धिजीवी सिद्ध करने वालों की हठधर्मिता, बालपन, अज्ञानता और महामूर्खता ने आज सम्पूर्ण विश्व को विनाश के कगार पर खड़ा कर दिया है ।
ऐसे लोग कभी स्वयम् के व्यापार, व्यवसाय आदि में नियमो का उल्लंघन नहीं करते... असफलता और हानि के भय से, वहां वे अपने व्यवसाय से स्नबन्धित अभ्यस्त लोगों को ऊँचे वेतन देकर अपना कार्य करवाते हैं ... परन्तु धर्म के विषयों पर गूगल wikipedia से दो-चार श्लोक पढ़ कर यही लोग कुतर्क करते हुए Testing Testing खेल जाते हैं ... क्योंकि धर्म में हानि से इनके परिवार और व्यवसाय पर कोई प्रत्यक्ष हानि नही पहुँचती ।
जब धर्म की बात आती है तो एक चाय बेचने वाला भी देवालयों को छोड़कर शौचालयों को पूजने की कु-शिक्षा देता दिखाई देता है... संसार भरा पड़ा है ऐसे नासखेत बुद्धिजीवियों से ।
Perception, Conception और Misconception में वही अंतर होता है जो आकाश से लेकर भूमि तथा और भूमि से लेकर पाताल तक का अंतर होता है ।
धर्म के कार्य धर्मशास्त्रों पर ही छोड़ दिजिए... धर्म को आगे बढ़ाने का कार्य धर्म को अनुभव करने से चलता है... अनुमान, विपर्यय, निद्रा या स्मृति के आधार पर नही ।
जय श्री राम कृष्ण परशुराम
लवी भरद्वाज सावरकर 

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