Monday, July 6, 2015

दानवो का कानून: मासूम सी लड़की को बर्बरता से मारा

अल्लाह हू अकबर..के नारे लगाती हुई हजारों लोगों की भीड उस दरगाह के पास जमा थी.... 
भीड के बीच में बमुश्किल 22-23 बरस की एक कच्ची उम्र की प्यारी सी दिखती नवयौवना काले मनहूस बुर्के में लिपटी पडी हुई थी..उसे घेरे हुये लोग उसको लातों से मार रहे थे...कोई पत्थर से मार रहा था ..कोई बे-दर्द दूर से दौड़ कर आता और उसके ऊपर उछल उछल कर घुटनों या कुहनी के बल कूद रहा था ....उसे कुछ देर तक ऐसे ही पीटा गया ..बुरी से बुरी तरह.. फिर कुछ लोगों ने उसके पैर रस्सी से बांधे और रस्सी को मोटरसाइकिल से बांध उस महिला को डामर की पथरीली सड़क पर छीलने लगे ....मानो उसके बदन की सारी चमड़ी यूं ही पिघला देना चाह रहे हों.. और ऐसा हो भी रहा था..उस नाज़ुक बदन की सफ़ेद हड्डियां बदन के कई कोनों किनारों से खाल का पर्दा हटा लाल-श्वेत मिले-जुले रंग में बाहर झाँकने लगीं थीं..

फिर एक कठोर पथरीले चबूतरे पर बमुश्किल जीवन के दो दशक देख सकी उस बच्ची को उल्टा लेटा कर फिर मर्दाना (??) पैरों और बेदिल पत्थरों से उसे पीटा गया....लथेड़ा गया..... 
इस बीच चार सूरमा एक बडा सा पत्थर उठा कर लाये और उसे उस नाज़ुक सिर पर पटक दिया.. पत्थर को फिर उठाया..आदमकद ऊंचाई तक.. उठाया..फिर पटका ..उसके सिर को फाड दिया गया... कि कभी भविष्य के सुनहरी स्वप गढ़ने-संजोने वाला उसका मगज़ अब चबूतरे पर बेज़ान बिखरा हुआ था.....
वो नवयुवती अब तक सांसारिक कष्टों से बहुत दूर जा चुकी थी..... मर चुकी थी ..... तड़प-तड़प कर.. रिस-रिस कर ..... फिर भी नाम भर को मानवीय देह में शरण लिए बैठी मुहम्मद की ताबेदार उन बे-रहम पैशाचिक आत्माओं का मन नहीं भरा था..अब तक भी नहीं भरा था .. अभी और प्यास बाकी थी उनमें.. 
सुकोमल देह के अंदर स्थित गुर्दों.. ज़िगर और रक्त में लिपटे फेफड़ों और छाती के कपाट फाड़ कर बाहर आ गए धीरे-धीरे बंद हो रहे मांस का ठूठ बन चुके इंसानी दिल को उसकी देह से बाहर पत्थर पर बिखर कर दम तोड़ते देखने की.....
वो अधम नर कब के बेज़ान हो चुके फिर भी हलकी हरारत भरे उस अबला के जिस्म को घसीटते रहे..... मुर्दा.. किन्तु अब भी रेशम से मुलायम उसके बालों से पकड़ उसे खींचते रहे..
फिर कुछ लोगो ने उस पर पेट्रोल डाला और जला दिया....

सत्य घटना पर आधारित YouTube के इस वीडियो की जानकारी लेने की इच्छा हुई ..सर्च करने पर पता चला कि ...
ये महिला अफगानिस्तान की 23 बर्षीय सुंदर युवती ..फरखंदा मलिकजादा..थी..जो शुरू से पढने लिखने में होशियार थी और इसने इस्लामिक स्टडीज में डिप्लोमा कर रखा था....
इसकी निर्मम हत्या सिर्फ इस बात पर कर दी गई कि किसी टुच्ची दरगाह के ढहते-बुढ़ातेे एक मौलवी..जो शायद इस कमनीय देह को अपनी बहत्तरवीं हूर बनाना चाह रहा था....., ने इस पर आरोप लगाया कि ...इसने कुरान शरीफ को जलाकर बेअदबी की है....

बस.. फिर क्या था.. वही.. जो इस्लाम की रवायत है..

बिना सच को जाने समझे ही वहाँ मौजूद भीड ने सिर्फ एक मौलवी की बात पर ....
फरखंदा मलिकजादा की दरिंदगी से निर्मम हत्या कर दी....जब ये दरिंदगी हो रही थी तो उसका बाप और भाई भी वहाँ मौज़ूद थे..
पर बेबस कर कुछ न सके.. इस बे-इंतहा दरिंदगी को रोकने के लिए.. क्योंकि वो उनके अपने पड़ौसी थे..
यानी उनका अपना समाज..
-उदय तिवारी

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