Friday, May 8, 2015

रविन्द्र पाटिल

रविन्द्र पाटिल एक ऐसा गवाह था जिसने सलमान को गाड़ी चलाते औरगरीबो पर गाडी चढ़ाते देखा था। वो एक कांस्टेबल था। उसने कभी अपना बयान नहीं बदला। बेचारे को बयान बदलने के लिए करोडो के लालच दिए गए, पुलिस और नेताओ का बहुत दबाव बनाया गया, नौकरी से हटा दिया गया और जैल में भी रखा गया म
गर इस ईमानदार और खुद्दार आदमी ने कभी अपना बयान नहीं बदला। बेचारे को अपनी जान बचाने के लिए अपने घर परिवार को छोड़कर मुम्बई से भागना पड़ा। 

चोरी छुपे घरवालो से मिलना पड़ता था। रविन्द्र पाटिल डिप्रेशन का शिकार हो गया और 4 साल बाद जब मुम्बई लौटा तो उसको भीख माँगने पर मजबूर होना पड़ा। उसके बाद ये बीमार पड़ गया और एक दिन सरकारी अस्पताल में इलाज के दौरान इस नौजवान की मौत हो गयी। मगर इसने कभी अपना बयान नहीं बदला। सलमान की वजह से इस ईमानदार पुलिस वाले की जिंदगी खराब हो गयी और उसकी मौत हो गयी। क्या सलमान को या उसके परिवार वालो को या मीडिया को या सलमान फेन्स को या देशवासियो को रविन्द्र पाटिल का ज़रा सा भी ग़म है?

क्या किसी ने भी पता किया कि के घरवालो पे क्या बीती? वो कितना रोये थे? जबकि न्यूज में बस सलमान की बहनो, भाइयो, माँ बाप और फेन्स तक को रोते दिखाया जा रहा है। सलमान खान न केवल फूटपाथ पर सोने वाले गरीबो का हत्यारा है बल्कि रविन्द्र पाटिल की मौत का भी जिम्मेदार है। आज रविन्द्र पाटिल को इन्साफ मिला है। देर से ही सही, कम ही सही मगर गुनहगार सलमान को उसके किये की सज़ा मिलके ही रही। आज पूरा मीडिया उस दोषी के पक्ष में खड़ा है ना की उस इमानदार के साथ..  रविन्द्र पाटिल

फिर भी सत्यमेव जयते।
सलमान ने शुरुआत से ही इस मामले से जुड़े गवाहों और तथ्यों को गुमराह करने की कोशिश की लेकिन कोर्ट ने चश्मदीद गवाह को ही सुनवाई का आधार माना। वह गवाह जो 4 अक्टूबर, 2007 को मर चुका है। सिपाही रविंद्र पाटिल इस केस के मुख्य गवाह थे। वही रविंद्र पाटिल जिनकी गवाही इस केस के फाइनल फैसले पर असर डाल गई।

रविंद्र पाटिल के करीबी इस फैसले से बेहद सुकून में हैं। उनके मुताबिक मौत से पहले रविंद्र पर इस मामले में अपना बयान बदल लेने के लिए बेहद दबाव था। इसका जिक्र कई फ्रीलांस ब्लॉगर्स ने अपने ब्लॉग में भी किया था, जिन्हें बाद में हटा लिया गया। कुछ लोगों ने शक जताया कि ब्लॉगर्स ने ऐसा सलमान के दबाव में आकर किया, क्योंकि सभी ने अपने पोस्ट के लिए लिखित माफी मांगी थी।
गौरतलब है कि पाटिल ही एकमात्र ऐसे गवाह थे, जिनका कहना था कि कार ऐक्सिडेंट सलमान के नशे की हालत में तेज रफ्तार पर कार चलाने से हुआ। वह कोई टेक्निकल एरर नहीं था। पाटिल ने अपना यह बयान मरते दम तक नहीं बदला।

इन ब्लॉग्स की मानें तो पाटिल सिपाही रैंक पर थे। फोर्स में सबसे छोटी और कमजोर रैंक पर। वह अकेले इस मामले में कुछ भी कर पाने में अक्षम थे। 2006 में जब सलमान ने मुंबई के बेस्ट डिफेंस लॉयर को हायर किया, तो पहला टारगेट पाटिल को ही बनाया गया।

क्रॉस एग्जामिनेशन में उसे घेर लिया गया। उसी से परेशान होकर पाटिल एक दिन घर से भाग गया, जिसकी कंप्लेंट पाटिल के भाई ने पुलिस में करवाई थी। यह बात हैरान करने वाली थी कि मामले की एफआईआर करने वाला पुलिसिया सिपाही ही मामले में फंसा दिया गया था।

पाटिल के खिलाफ अरेस्ट वॉरंट जारी किए गए, तो डर के मारे पाटिल ने तारीख पर जाना बंद कर दिया। बाद में उसे पकड़कर आर्थर रोड जेल भेज दिया गया। पाटिल ने क्राइम ब्रांच में अपनी दुहाई भेजी, जिसे अनसुना कर दिया गया।

बहरहाल, जब पाटिल जेल से छूटा तो उसे पुलिस में वापस नौकरी नहीं मिली। तकरीबन एक साल के शोषण के बाद 2007 में मुंबई के एक सरकारी हॉस्पिटल में पाटिल भर्ती पाए गए, जिन्हें मुंबई की रेड लाइट्स पर भीख मांगते वक्त बेहोश होने पर हॉस्पिटल लाया गया था। पाटिल के परिवार वालों के पास उनकी कोई सूचना नहीं थी। सरकारी वॉर्ड के बेड नंबर 189 पर दवाइयों के अभाव में पाटिल लंबे वक्त तक तड़पते रहे और उनकी टीबी विकराल रूप लेती गई।

कुछ ही दिन बाद उनकी मौत हो गई। उनके भाई ने उनका अंतिम संस्कार किया। जिस दोस्त ने पाटिल से आखिरी बार मुलाकात की थी, उसने कहा कि मरते दम तक पाटिल की दो इच्छाएं थीं। एक थी दोबारा पुलिस में भर्ती होना और दूसरी थी सलमान को सजा दिलवाने की कोशिश करना। लेकिन पाटिल के मामले में मौत से पहले न सही, मौत के बाद उनकी एक आखिरी इच्छा पूरी हुई।



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